हिमालय की हिफाजत
जर्मन एयरोस्पेस सेंटर (डीएलआर) हिमालय की तस्वीरें ले रहा है. यह पहला मौका है, जब खास 3डी कैमरे से हिमालय की तस्वीरें ली जा रही हैं. इनसे हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण में हो रहे बदलावों की जानकारी मिलेगी.
हिमालय की नए सिरे से फोटोग्राफी
जर्मन एयरोस्पेस सेंटर (डीएलआर) हिमालय की तस्वीरें ले रहा है. यह पहला मौका है, जब खास 3डी कैमरे से दुनिया की सबसे ऊंची और विशाल पर्वत श्रेणी की तस्वीरें ली जा रही हैं. तस्वीरों से हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण में हो रहे बदलावों की जानकारी मिलेगी.
विमान में खास कैमरा
कई परीक्षणों के बाद डीएलआर ने यह कैमरा सिस्टम बनाया है. इसके सहारे पूरे इलाके का 3डी मॉडल बनाया जाएगा. कैमरा एक खास कंटेनर में फिट किया गया है. 8,000 मीटर की ऊंचाई और माइनस 40 डिग्री सेल्सियस की ठंड में मशीन खराब होने का खतरा भी रहता है.
आंकड़ों का विश्लेषण
कंप्यूटर की मदद से डीएलआर के वैज्ञानिक रंगीन 3डी मॉडल बना सकते हैं. इस तकनीक के सहारे पहाड़ों की ढाल को बेहद सटीक ढंग से दर्शाया जा सकता है. इंसानी आंखें ऐसा नहीं कर पाती हैं. मॉडलों से भूस्खलन और हिमस्खलन के नुकसान का अंदाजा लगेगा.
अनोखा मिशन
यह पहला मौका है जब इलाके में एरियल कैमरे इस्तेमाल किए जा रहे हैं. मिशन के लिए डीएलआर के दो मोटर वाले जहाज ने दो हफ्तों तक यूरोप, मिस्र और पाकिस्तान के ऊपर उड़ान भरी. वैज्ञानिकों ने नेपाल के अन्नपूर्णा इलाके में बेस कैंप बनाया.
खास ट्रेनिंग
इलाके में विमान उतारना और वहां से उड़ान भरना बेहद मुश्किल है. पायलटों ने वहां जाने से पहले काठमांडू में खास फ्लाइट सिम्युलेटरों पर अभ्यास किया. इससे मदद मिली लेकिन चोटियों के करीब उड़ान भरते समय फुल ऑटोमैटिक कैमरे भी बड़ा सहारा बने.
टूरिज्म से नुकसान
हर साल लाखों पर्यटक इन वादियों में आते हैं. नेपाल की अर्थव्यस्था को इससे बड़ा पैसा मिलता है लेकिन इसका खामियाजा कुदरत को भुगतना पड़ता है. पर्वतारोहियों जितने ज्यादा होंगे, कूड़ा भी उतना ही ज्यादा होगा. इससे जमीन और भूजल दूषित होता है.
प्राकृतिक आपदाओं से बचाव
दुनिया भर में निकल रही ग्रीनहाउग गैसों का असर हिमालय पर साफ दिख रहा है. वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के मुताबिक हर साल ग्लेशियर कम से कम 10 सेंटीमीटर पीछे खिसक रहा है. बाढ़ और भूस्खलन गांव के गांव साफ कर दे रहे हैं.
ताकि खिलखिला उठे पर्वतराज
डीएलआर की रिसर्च का केंद्र हिमालय के ग्लेशियरों और बर्फ की झीलों पर है. ये आबादी वाले इलाके से बहुत दूर हैं. उम्मीद है कि रिसर्च से हिमालय को उसकी चमचमाती काया को लौटाने में मदद मिलेगी.