1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हिट या फ्लॉप नहीं सोचतीं एकता

२३ सितम्बर २०१३

दर्जनों धारावाहिक बनाने वाली एकता कपूर ने फिल्मों से भी अपनी अलग पहचान बनाई है. मनोरंजन में योगदान के लिए उन्हें हाल में कोलकाता में सम्मानित किया गया. इस मौके पर डॉयचे वेले के साथ हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश.

https://p.dw.com/p/19lUb
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

आपने कम उम्र में ही छोटे से लेकर बड़े पर्दे तक काफी कुछ हासिल कर लिया है. अब आपको किस चीज से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है?

अपनी प्रतिभा की नए अंदाज में तलाश की जरूरत ही लगातार आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. इससे आपकी समझ व क्षमता और मजबूत होती है. अपना मूल्यांकन करने की इस प्रक्रिया से ही ऐसा कुछ नया करने का उत्साह पैदा होता है जो लोगों को पसंद आए. मैं कभी यह नहीं सोचती कि दर्शक इस धारावाहिक या फिल्म को पसंद करेंगे या नहीं. मैं हर बार अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करती हूं.

रचनात्मकता के लिहाज से टीवी और फिल्मों में से ज्यादा चुनौतीपूर्ण कौन है ?

मेरी नजर में इन दोनों माध्यमों की अपनी अहमियत है. टीवी पर बेहतरी के लिए निरंतर प्रयास करना एक कड़ी चुनौती है, लेकिन फिल्में अपनी अनिश्चितता के चलते बेहद चुनौतीपूर्ण होती हैं. एक ही दिन में हार और जीत दोनों हो सकती है. फिल्म रीलिज होने के दिन ही पता चल जाता है कि वह अच्छी है, औसत है या बकवास. इसलिए फिल्मों में खतरा ज्यादा है, लेकिन मुझे अब भी टीवी से ज्यादा प्यार है.

Ekta Kapoor Indien Bollywood Schauspielerin Kalkutta
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

आपने पिछली फिल्म वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई दोबारा पर काफी मेहनत की थी, लेकिन बॉक्स आफिस पर इसका प्रदर्शन खास नहीं रहा?

आदमी अपनी हर असफलता से कुछ न कुछ सीखता है. नाकामी से घबराए बिना आगे बढ़ना ही जिंदगी है. फिल्म का हिट या फ्लाप होना किसी के हाथ में नहीं होता. मेरा काम किसी फिल्म या धारावाहिक के निर्माण के दौरान अपनी पूरी प्रतिभा के साथ मेहनत करना है. उस काम में रोमांच होना चाहिए.

इस फिल्म की रीलिज के मुद्दे पर शाहरुख खान के साथ आपका विवाद भी हुआ?

Ekta Kapoor Indien Bollywood Schauspielerin Kalkutta
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

देखिए, जो हुआ सो हुआ. अतीत को भुला कर आगे बढ़ने में ही सबकी बेहतरी है. अब इन दलीलों में कोई दम नहीं है कि ऐसा होता तो वैसा होता या फिर ऐसा नहीं होता तो वैसा नहीं होता.

जोधा-अकबर सीरियल को लेकर भी काफी विवाद हुए हैं?

अब कोई विवाद नहीं है. सीरियल की कुछ बातों का विरोध कर रहे संगठनों के साथ बातचीत में यह मसला हल हो गया है. हमने तो पहले ही कह दिया है कि यह सीरियल कोई ऐतिहासिक और प्रामणिक दस्तावेज नहीं है.

आपके बनाए सीरियलों ने कई अभिनेता-अभिनेत्रियों को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया. ऐसे दर्जनों लोगों को स्टार बना कर कैसा महसूस होता है?

मैं किसी को स्टार बनाने वाली कौन होती हूं? उनके नसीब में बनना लिखा था, सो बन गए. मैंने पांच सौ से ज्यादा लोगों के साथ काम किया है. उनमें से सभी तो स्टार नहीं बने. हर आदमी की अपनी तकदीर होती है. लेकिन कामयाबी के बाद भी पैर जमीन पर ही रहने चाहिए.

कम समय के करियर में ही आपको कई अवार्ड मिल चुके हैं. कैसा महसूस होता है?

हां, यह सही है, लेकिन अब भी हर अवार्ड एक खुशी व रोमांच पैदा करता है. अवार्ड चाहे मुझे मिले या मेरे किसी धारावाहिक को, मुझे समान खुशी होती है. इनसे आगे और बढ़िया काम करने की प्रेरणा मिलती है.

इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः एन रंजन