मंथन 89 में खास
२९ मई २०१४ऑपरेशन थिएटर में तो कुछ समय से रोबोट्स का इस्तेमाल हो ही रहा है, अब नाटक वाले थिएटर में भी ये रोबोट अपनी जगह बनाने लगे हैं. अगर सब ठीक रहा तो जल्द ही दर्शकों को रोबोट का ओपेरा शो देखने को मिलेगा. तैयारियां जोरों से चल रही हैं.
इस तरह की तकनीक अलग सोचने वाले दिमागों की ही उपज होती हैं. यूनिवर्सिटी में रोबोट या दूसरी तकनीकों के बारे में तो बहुत कुछ बताया जाता है, लेकिन छात्रों के लिए उन सब को टेस्ट करने की एक सीमा होती है. वे प्रयोग कर सकते हैं, पर जरूरी नहीं कि उन्हें वहां हर वह चीज करने का मौका मिले जो वे चाहते हैं. इसलिए शौकिया प्रयोग करने वाले कुछ लोगों ने अपनी खुद की ही लैब बना ली है. इस बारे में खास रिपोर्ट होगी मंथन में इस बार.
नष्ट होती चट्टानें
हमारी पृथ्वी बहुत सारे बदलावों से गुजर रही है. समुद्र का स्तर तो बढ़ ही रहा है, साथ ही महासागरों के पानी में एसिड भी बढ़ रहे हैं, जिससे समुद्री जैव विविधता खतरे में है, मूंगे की चट्टानें नष्ट हो रही हैं. ये चट्टानें तटों को समुद्र की बड़ी लहरों से बचाती हैं.
इनके गायब होने से बड़ी मुश्किल पैदा हो सकती है. इसे रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने एक तरकीब निकाली है. क्या है यह तरकीब, चर्चा होगी मंथन के इस अंक में.
भविष्य की तैयारी
जिन जगहों पर धूप बहुत होती है वहां इसका फायदा उठाया जा सकता है. सोलर पैनल से बिजली बनाई जा सकती है. दक्षिण अफ्रीका में हर साल ढाई हजार घंटे सूरज चमकता है. 2030 तक दक्षिण अफ्रीका की सरकार आठ गीगावॉट के सौर ऊर्जा पैनल लगाना चाहती है. इस बार मंथन में देखिए कि इस काम के लिए जर्मनी की कई कंपनियां दक्षिण अफ्रीका की कैसे मदद कर रही हैं.
साथ ही मंथन के इस अंक में आपको दिखाएंगे कुछ अनोखे डिजायनर पीस. घर की साज सजावट पर बहुत खर्च आता है. सोफा, मेज या अलमारी, नए घर के साथ नया फर्नीचर और कई बार तो नए बर्तन भी लिए जाते हैं. पर जरा हिसाब लगाइए कि किचन का सारा सामान लेना हो, तो कितना खर्च आएगा? क्या नींबू निचोड़ने के लिए भी हजारों रुपये खर्च कर के डिजायनर पीस लेंगे? देखिए इसी सिलसिले में खास रिपोर्ट, शनिवार सुबह 10.30 बजे डीडी नेशनल पर.
एसएफ/आईबी