हजारों सीरियाई लोगों को उनके देश भेजने की तैयारी में तुर्की
१५ अगस्त २०१९कई बार जबरन विस्थापन के लिए मजबूर हो चुके इस्तांबुल के सीरियाई लोगों को एक बार फिर या तो तुर्की में कहीं और या अपने देश में वापस जाना होगा जहां जंग की लपटें अभी बुझी नहीं हैं. इस वक्त वे लोग यह भी नहीं तय कर पाएंगे कि जाएं कहां. अहमद एस सात साल पहले अलेप्पो से भाग आए और तभी से इस्तांबुल में रह रहे हैं. यहां उनकी एक राशन की दुकान है. 20 अगस्त के बाद उनका क्या होगा उन्हें नहीं पता.
तुर्की की आर्थिक राजधानी इस्तांबुल में रहने वाले सीरियाई शरणार्थियों के गवर्नर ने 20 अगस्त की समय सीमा तय की है. इस तारीख के पहले इन लोगों को वहां जाना होगा जहां इन्होंने खुद को रजिस्टर कराया है या फिर उन्हें देश के बाहर निकाला जाएगा. तुर्की के गृह मंत्रालय के मुताबिक इस्तांबुल में 5,47,943 सीरियाई लोगों के नाम "अस्थायी संरक्षण" के तहत दर्ज है. गवर्नर के आदेश का असर उन 3 लाख सीरियाई लोगों पर हो सकता है जिनका नाम इस सूची में दर्ज नहीं है.
कई सीरियाई और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि जंग में तबाह सीरिया के इलाकों में लोगों को भेजा जाना जुलाई की घोषणा के बाद से ही जारी है. जंग से बचने के लिए करीब 36 लाख सीरियाई लोगों का तुर्की ने स्वागत किया और उन्हें "अस्थायी संरक्षण" दिया. यह शरणार्थी के दर्जे से थोड़ा अलग है और इसमें पूरा कानूनी संरक्षण नहीं मिलता. ऐसे में लोगों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है.
सीरिया से लगते तुर्की के सीमावर्ती इलाकों में गाजियनतेप, हाताय और सानलीउर्फा में बड़ी संख्या में सीरियाई लोग हैं लेकिन बहुत से लोग काम की तलाश में इस्तांबुल की तरफ आ गए हैं. तुर्की के मानवाधिकार संगठन से जुड़े गुलसेरेन योलेरी का कहना है कि महज 70-80 हजार सीरियाई लोगों के पास ही नौकरी का परमिट है.
ये लोग मुख्य रूप से खेती और दूसरे कामों में सस्ते मजदूर के रूप में काम करते हैं. तुर्की पिछले साल आर्थिक संकट में फंस गया ऐसे में ये शरणार्थी उसे चुभ रहे हैं और उसके लिए बोझ बनते जा रहे हैं.
सीरियाई लोग जानते हैं कि उनकी वतन वापसी खतरे से खाली नहीं है अब यहां रहना भी उनके लिए मुश्किल हो गया है. एक तरफ गरीबी है, दूसरी तरफ दस्तावेजों का अभाव, बेरोजगारी में उन पर परिवार से अलग होने और हिरासत में लिए जाने का खतरा मंडरा रहा है.
इस्तांबुल में अहमद की दुकान उन कई दुकानों में शामिल है जिन्हें स्थानीय लोगों ने जून में हमले का निशाना बनाया. तब यहां सोशल मीडिया पर अफवाह फैल गई थी कि एक सीरियाई लड़का तुर्की की लड़की को परेशान कर रहा है. अहमद बीवी बच्चों और मां बाप के साथ जब सीरिया से तुर्की आए तो खुद को उत्तर पश्चिमी बुरसा शहर में रजिस्टर कराया. वहां काम बहुत कम था और तब तुर्की की सरकार सीरियाई लोगों के तुर्की में इधर उधर जाने में दखल नहीं दे रही थी. अहमद वो घड़ी याद करते हैं जब "वापस अपने देश जाओ" के नारे लगाती भीड़ डंडे से उनकी दुकान के शटर को पीट रही थी.
जबरन भेजा जाना कोई नई बात नहीं है. बीते कुछ सालों में यहां तक कि तुर्की और यूरोपीय संघ में शरणार्थी समझौते के बाद भी तुर्की के अधिकारी लोगों को सीरिया वापस भेज रहे हैं क्योंकि यूरोपीय संघ ने इनकी ओर से आंख मूंद लिया है.
2015 में जब यह समझौता तब हुआ जब शरणार्थी संकट उफान पर था. उस वक्त यूरोपीय संघ ने तुर्की को 6 अरब यूरो की मदद देने का भी निश्चय किया था ताकि तुर्की सीरियाई शरणार्थियों को अपने यहां रखे. तुर्की इस बात पर रजामंद हुआ कि वह इन्हें अपने यहां रखेगा और यूरोप पहुंचने से रोकेगा. एमनेस्टी इंटरनेशल के तुर्की विशेषज्ञ एंड्रयू गार्डनर ने समाचार एजेंसी डीपीए से कहा कि यूरोप का रिकॉर्ड सीरियाई शरणार्थियों को सुरक्षा देने में बढ़िया नहीं है क्योंकि वे बड़ी संख्या में सीरियाई शरणार्थियों के मामले में तुर्की पर निर्भर हैं, वे अपनी जिम्मेदारी खुद नहीं उठा रहे हैं."
इस मामले में तुर्की के कानून और अंतरराष्ट्रीय समझौतों से यह बहुत साफ है कि वह जबरन लोगों को जंग वाले इलाकों में नहीं भेज सकता जहां उनकी जान को खतरा है, इसमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कथित रूप से अपराध किया है. बावजूद इसके ऐसी घटनाएं हो रही हैं. 18 साल के मुहम्मद वादाह को तुर्की की सरकार एक अपराधी मानती है. वह गाजियनतेप में छह साल पहले अलेप्पो से आए थे. वह वहीं रजिस्टर हुए, स्कूल गए और फुटबॉल खेला. अगस्त में उन्हें उत्तर पश्चिमी सीरिया के इदलीब में प्रत्यर्पित कर दिया गया. वादाह ने समाचार एजेंसी डीपीए को बताया कि उन्हें इस्तांबुल में पकड़ा गया वो नकली पासपोर्ट के सहारे जर्मनी जाने की कोशिश में थे. उनका कहना है कि उनसे जबरदस्ती एक दस्तावेज पर दस्तखत कराया गया जो उन्हें पढ़ने नहीं दिया गया. शायद वह उनकी "स्वैच्छिक वापसी" का दस्तावेज था.
बहुत से सीरियाई खुद भी वतन लौटते हैं लेकिन मानवाधिकार संस्था ह्यूमराइट्स वॉच का कहना है कि तुर्की के अधिकारी अकसर उन पर ऐसा करने के लिए दबाव बनाते हैं. मानवाधिकार आयोग के एसोसिएट इमरजेंसी डायरेक्टर गैरी सिम्पसन का कहना है, "तुर्की दावा करता है कि वह सीरियाई लोगों की स्वैच्छिक वापसी में मदद कर रहा है लेकिन वह उन्हें धमकी देता है कि जब तक वापसी के लिए रजामंद नहीं होंगे वह उन्हें जेल में रखेगा. उनसे जबरन कागजों पर दस्तखत कराए जाते हैं और युद्ध क्षेत्र में भेज दिया जाता है. यह ना तो स्वैच्छिक है ना ही कानूनी."
तुर्की की गृह मंत्री सुलेमान सोयलु जबरन भेजे जाने से इनकार करते हैं. उनका कहना है, "हमारे पास ऐसा कोई मौका नहीं कि अस्थायी संरक्षण लेने वाले लोगों को हम वापस भेज सकें."
तुर्की की यह कदम राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है. टर्किश जर्मन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुरात एर्दोवान का कहना है कि सरकार यह दिखाना चाहती है कि "शरणार्थियों का मामला उनके नियंत्रण में है" इसके साथ ही वह "पश्चिमी देशों की सरकारों पर भी दबाव" बनाना चाहती है. प्रोफेसर एर्दोवान ने कहा कि बहुत से शरणार्थी यूरोप आएंगे अगर तुर्की कठोर कदम उठाता है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि तुर्की के लिए इसे लागू कर पाना इतना आसान नहीं होगा. इससे कई शहरों में समस्या होगी.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोवान अकसर कहते हैं कि उनका देश सीरियाई लोगों को उनके घर पहुंचाना चाहता है. सरकार पहले से ही शरणार्थियों को उत्तर पश्चिमी सीरिया के उन इलाकों में भेज रही जो उसके नियंत्रण में हैं.
एनआर/ओएसजे (डीपीए)
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