स्वात में पन्ने की खुदाई
पाकिस्तान की स्वात घाटी में बेशकीमती नगों की खदानें हैं. फजागट में सैकड़ों लोग गुजर बसर के लिए इसकी खुदाई पर निर्भर हैं.
रोजगार
फजागट में पन्ने की खदान में करीब 400 लोग काम करते हैं. खदान मालिक के मुताबिक यहां होने वाले खनन से सरकार को सालाना लगभग 1.20 करोड़ रुपये की रॉयल्टी मिलती है.
पुराने तरीके का इस्तेमाल
स्वात घाटी के फजागट में पन्ने की खदान 182 एकड़ में फैली है. पहाड़ी इलाके के भीतर कई किलोमीटर में फैली सुरंगों में अब भी पारंपरिक तरीके से खुदाई होती है. खुदाई के बाद पत्थर को छलनी में रख धोया जाता है.
लापरवाही से मुनाफा कम
आधुनिक खनन मशीनरी के अभाव में सिर्फ 20 एकड़ में खुदाई होती है. खान के आस पास बुनियादी ढांचे की भी कमी है. खान के भीतर की सुरंगें कच्ची हैं. खनिज विभाग आस पास बंद पड़ी खदानों को फिर से खोलने पर विचार कर रहा है.
जबरदस्त क्वालिटी
स्वात घाटी से निकलने वाला पन्ना अपनी क्वालिटी के लिए दुनिया भर में मशहूर है. यहां से निकलने वाले ज्यादातर पत्थर एक से लेकर पांच कैरेट के होते हैं. दाम तराशने और वजन पर निर्भर करता है. आम तौर पर इनका दाम 50 हजार से ढाई लाख रुपये तक होता है.
तालिबान का कब्जा
1996 में बंद हुई खदान पर 2005 में तालिबान ने कब्जा कर लिया. खदान मालिक के मुताबिक तालिबान ने पांच साल में खदान का हुलिया बिगाड़ दिया. तालिबान ने रत्नों की तस्करी कर पैसा भी कमाया.
पन्ने का उपयोग
पन्ने का इस्तेमाल आम तौर पर अंगूठियों और जेवरों में होता है. पहले इसका इस्तेमाल कई घड़ियों में भी किया जाता था. लेकिन दाम ज्यादा होने के चलते अब पन्ना जेवरों तक सिमट रहा है.
सस्ती नीलामी
खुदाई के बाद पन्ने की स्थानीय स्तर पर नीलामी होती है. नीलामी में इन्हें औने पौने दामों में खरीदा जाता है.
तराशना पड़ोस में
पाकिस्तान में इन बेशकीमती पत्थरों की कटाई और उन्हें तराशने की सुविधा नहीं है. यही वजह है कि खनन के बाद माल को भारत और थाइलैंड भेजा जाता है. पहले लोग स्वात के पन्ने को भारत का पन्ना कहते थे. लेकिन अब यह अपनी पहचान बना चुका है.
बाद में बेशकीमती
भारत और थाइलैंड में कटाई और तराशे जाने के बाद ये पत्थर दुबई, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दूसरे देशों में मंहगे दामों पर बिकते हैं.