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समाज

स्थानीय लोगों को नौकरी में तरजीह देने का फैसला कितना सही

रवि रंजन
२३ जुलाई २०१९

भारत में सबसे ज्यादा पलायन उत्तर प्रदेश राज्य से होता है. देश के कई राज्य पलायन की समस्या से जूझ रहे हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश सरकार ने एक कानून बना कर स्थानीय लोगों को तरजीह देने का प्रयास किया है.

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तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

आंध्र प्रदेश ने उद्योगों, कारखानों, निजी कंपनियों समेत पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी मॉडल) में चल रहे सभी प्रोजेक्ट्स में 75% नौकरी स्थानीय लोगों को देने का फैसला लिया है. इसके लिए राज्य सरकार ने एंप्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट इन इंडस्ट्रीज/फैक्ट्रीज एक्ट 2019 को पारित किया है. ऐसा करने वाला आंध्र प्रदेश भारत का पहला राज्य बन गया है.

स्थानीय लोगों को नौकरी में आरक्षण देने की सबसे बड़ी वजह पलायन है. लंबे समय से कई राज्यों में आरोप लगते रहे हैं कि बाहर के लोग आकर स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन लेते हैं. भारत में कई ऐसे राज्य हैं जहां नौकरियों और काम के अवसर तलाशने के लिए लोग पलायन करते हैं. 2011 के जनगणना के अनुसार नौकरी और व्यवसाय के लिए भारत के 10% लोगों ने पलायन किया. भारत की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले मुंबई में सबसे ज्यादा लोग पलायन कर पहुंचे. वहीं दूसरे स्थान पर दिल्ली है.

कहां के लोग करते हैं सबसे ज्यादा पलायन

जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक पलायन करने वाले राज्य की सूची में पहला स्थान उत्तर प्रदेश का है. यहां के एक करोड़ 22 लाख से ज्यादा लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं. उसकी मुख्य वजह नौकरी है. दूसरे स्थान पर नंबर आता है बिहार का. बिहार में  भी रोजगार की काफी कम संभावना होने की वजह से 73 लाख से ज्यादा लोग राज्य से बाहर रह रहे हैं.

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तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri

पलायन के मामले में तीसरा स्थान राजस्थान का है. यहां के 36 लाख से ज्यादा लोग काम करने के लिए दूसरी जगह पर पलायन कर चुके हैं. इसी तरह मध्य प्रदेश के करीब 29 लाख, कर्नाटक के 25 लाख, हरियाणा के 23 लाख, पंजाब के करीब 17 लाख, महाराष्ट्र के 24 लाख, पश्चिम बंगाल के 23 लाख, झारखंड के 16 लाख और पूर्वोत्तर भारत के नौ लाख से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं.

पलायन कर कहां जा रहे हैं

रोजगार की तलाश में सबसे ज्यादा लोग महाराष्ट्र पहुंच रहे हैं. करीब 91 लाख लोग दूसरे राज्यों से यहां रोजगार के लिए आ रहे हैं. दूसरे स्थान पर दिल्ली है. यहां अन्य राज्यों के 63 लाख से ज्यादा लोग आकर रोजगार और नौकरी कर रहे हैं. दूसरे राज्यों के 29 लाख से ज्यादा लोग गुजरात आकर नौकरी कर रहे हैं. हरियाणा में भी 36 लाख से ज्यादा बाहरी लोग आकर काम कर रहे हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश में करीब 40 लाख, मध्यप्रदेश में 27 लाख, राजस्थान में करीब 26 लाख बाहरी लोग नौकरी और रोजगार कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के कई शहर जैसे कि नोएडा, गाजियाबाद दिल्ली के करीब हैं. दिल्ली में भी नौकरी करने वाले लोग इन जगहों पर रह रहे हैं. इसके चलते कई सारी कंपनियां और संस्थान दिल्ली से नोएडा शिफ्ट हो रही हैं. पश्चिम बंगाल में करीब 24 लाख, झारखंड में करीब 22 लाख, छत्तीसगढ़ करीब 13 लाख, तमिलनाडु में 16 लाख बाहरी लोग आकर नौकरी तथा रोजगार कर रहे हैं.

आंध्र प्रदेश, जहां स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र में रोजगार के लिए 75% आरक्षण दिया गया है, वहां भी करीब 16 लाख बाहरी लोग नौकरी कर रहे हैं. भारत में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में 12 लाख और छत्तीसगढ़ में भी करीब 13 लाख से ज्यादा बाहरी लोग आकर काम कर रहे हैं. बिहार में भी कमोबेश हालात वही है. यहां भी 11 लाख से अधिक बाहरी लोग आकर रोजगार और नौकरी कर रहे हैं

आंध्र प्रदेश के फैसले में क्या है नया

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने चुनाव के दौरान वादा किया था कि वह स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण दिलवाएंगे. चुनाव जीतने के बाद अपने वादे को पूरा करते हुए उन्होंने पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और निजी क्षेत्र में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को देने के लिए रास्ता साफ कर दिया है.

 नए कानून के अनुसार यदि कंपनियों को अनुभवी मजदूर नहीं मिलते हैं तो सरकार के साथ मिलकर स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें ही रोजगार देना होगा. ऐसी स्थिति में कंपनियां ये नहीं कह सकती कि उन्हें कुशल मजदूर नहीं मिल रहे हैं और इस वजह से वे दूसरे प्रदेश के लोगों को नौकरी दे रहे हैं.

नए कानून से लाभ

नए कानून से स्थानीय लोगों को काफी सहूलियत होगी. जो लोग प्रशिक्षित नहीं हैं, उन्हें पहले प्रशिक्षण दिया जाएगा और फिर नौकरी दी जाएगी. कंपनियों को स्थानीय लोगों को नौकरी देने की रिपोर्ट हर तीन माह में नोडल अधिकारी को देनी होगी. हालांकि, नई नीति के अनुसार फैक्ट्रीज एक्ट के फर्स्ट शिड्यूल के तहत रजिस्टर्ड कंपनियों को छूट मिलेगी. इनमें ज्यादातर पेट्रोलियम, फार्मास्यूटिकल्स, कोयला, उर्वरक और सीमेंट जैसे उद्योग शामिल हैं.

निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों को अधिक महत्व देने और उन्हें आरक्षण देने की मांग के पहले भी उठती रही है. कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र समेत कई ऐसे राज्य हैं जहां के स्थानीय लोगों तथा नेताओं ने पहले ऐसी मांग की है. कुछ दिनों पहले ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों को 70 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी. कांग्रेस सरकार की इस घोषणा पर बीजेपी सहित कई राजनीतिक दलों ने सवाल खड़े किए थे. कई लोगों का मानना है कि इस नए कानून से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलेगा. क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों पर हावी होने लगेंगे.

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