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सोलर ड्रोन कंपनी खरीदेगा फेसबुक

२८ मार्च २०१४

फेसबुक इंटरनेट को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचा देना चाहता है. इसके लिए अब वह ड्रोन, सैटेलाइट और लेजर की भी मदद लेगा. इस काम के लिए फेसबुक नासा के एयरोस्पेस एक्सपर्ट्स को नियुक्त भी कर लिया है.

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USA Internet Facebook Mark Zuckerberg Plan für Internet für alle
तस्वीर: picture-alliance/dpa

फेसबुक पहले से ही 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' नाम का एक प्रोजेक्ट चला रहा है. तमाम एक्सपर्ट्स से लैस फेसबुक की नई लैब का मकसद इसी प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाना है. अभी भी दुनिया के करीब सात अरब लोगों तक इंटरनेट नहीं पहुंचा है. 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' का मकसद है इनमें से करीब 70 फीसदी से ज्यादा लोगों को इंटरनेट से जोड़ना.

संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने कहा है कि फेसबुक की नई टीम लैब में ड्रोन, सैटेलाइट और लेजर बनाना चाहती है. जुकरबर्ग ने बताया कि इन्हीं साधनों से इतनी बड़ी आबादी तक इंटरनेट की सुविधा पहुंचाई जा सकेगी जिससे लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सुविधाओं से बेहतर तरीके से जुड़ पाएंगे. इससे पहले दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने इंटरनेट के विस्तार के लिए 'प्रोजेक्ट लून' लॉन्च किया था जिसमें सोलर गुब्बारे का इस्तेमाल होता है.

हाई स्पीड इंटरनेट

फेसबुक के इस प्रोजेक्ट की मदद से इंटरनेट एशिया और अफ्रीका के दूरदराज इलाकों में भी पहुंचाया जा सकेगा. इस प्रोजेक्ट में सोलर सिस्टम से चलने वाले ड्रोन की मदद ली जाएगी. पृथ्वी के सबसे निचले ऑरबिट के खास सैटेलाइट और इंफ्रारेड किरणों का उपयोग कर इंटरनेट की स्पीड में इजाफा हो सकेगा.

Oculus Datenbrille / Facebook
तस्वीर: AP

इसी महीने फेसबुक ने एक वर्चुअल रिएलिटी तकनीक वाली कंपनी ऑक्यूलस को दो अरब डॉलर में खरीदने की घोषणा की है. हार्डवेयर के क्षेत्र में फेसबुक का यह पहला अधिग्रहण है. फेसबुक की वर्चुअल रिएलिटी की दुनिया की इस दिग्गज कंपनी में दिलचस्पी इसलिए भी है क्योंकि वेयरेबल डिवाइस का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और फेसबुक इसमें पीछे नहीं रहना चाहता. वर्चुअल रिएलिटी में सॉफ्टवेयर से कृत्रिम वातावरण बनाया जाता है.

इस डील से फेसबुक अब ऑनलाइन गेम्स खेलने, काम करने और कम्युनिकेशन के तरीकों में बड़े बदलाव ला सकेगा. कुछ महीनों पहले ही फेसबुक ने ओनावो नाम की कंपनी भी खरीदी जिसके पास कंप्रेशन तकनीक से भारी डाटा को कम जगह में समेट कर रखा जा सकता है. विकासशील देशों में इस तकनीक से क्रांति आ सकती है जहां बहुत से लोगों के पास बहुत कम स्पीड वाला इंटरनेट कनेक्शन है.

आरआर/आईबी (एपी, एएफपी)