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सेक्स, मंगल, ब्रह्मांड और अगले 500 साल

जुल्फिकार अबानी
४ जून २०२१

मंगल पर जीवन की तलाश को लेकर दुनिया भर में अध्ययन और अंतरिक्ष के अभियान जारी हैं. क्या मंगल को रहने लायक बनाने के सूत्र इंसानी जीन्स में छिपे हैं? मशहूर अमेरिकी जनेटिसिस्ट क्रिस्टोफर जेसन ने ऐसे सवालों पर खोज की है.

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Life on Mars  - Expedition
मंगल ग्रह पर हमारी जिंदगी कैसी होगीतस्वीर: Astroland

अमेरिकी आनुवांशिकी विज्ञानी क्रिस मेसन का कहना है कि जीवन के तमाम रूपों की हिफाजत, हमारा नैतिक कर्तव्य है. उन्होंने मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश के लिए 500 साल का एक खाका तैयार किया है.

डीडब्ल्यू: जब बात आती है मंगल जैसे ग्रहों में इंसानीं जिंदगियों की, तो हमारा रुख टेक्नोलॉजी के समाधानों की ओर मुड़ जाता है, जैसे स्पेस सूट और सुरक्षित रिहाइशें. लेकिन अपनी किताब, द नेक्स्ट 500 इयर्सः इंजीनियरिंग लाइफ टू रीच न्यू वर्ल्ड्स, में आपने मनुष्य प्रजाति में ज्यादा बुनियादी, जैविक बदलाव प्रस्तावित किए हैं. आप जीवन के सभी रूपों की हिफाजत की दार्शनिक ड्यूटी की बात भी करते हैं. हमें जरा खुल कर बताइए.

क्रिस्टोफर मेसनः हम अक्सर अंतरिक्ष में भौतिक-प्राकृतिक या यांत्रिक सुरक्षा उपायों के बारे में सोचते हैं, या औषधीय उपायों के बारे में, जैसे जिंदा रहने में मददगार दवाएं. हम ये कर चुके हैं. मैं कहता हूं कि इन चीजों के विस्तार के रूप में बचाव और सुरक्षा के जैविक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए. 

मिसाल के लिए, सीएआर-टी कोशिकाएं (कार्ट सेल) एक तरह की डिजाइनदार टी कोशिकाएं हैं जिनका उपयोग हम अपनी लैब में करते हैं और रूटीनी तौर पर और जगह भी. लोगों को कैंसर से मुक्त रखने के लिए, वैज्ञानिक एक तयशुदा ढांचे के तहत निर्धारित विकास और निर्धारित स्वरूप वाली कोशिकाओं का उपयोग करते हैं. लेकिन इस पर लोग न हैरान होते हैं न चिंतित.

ऐसे ट्रायल भी हुए हैं जो जीवित मरीजों में सीआरआईएसपीआर (क्रिस्पर- जीन एडिटिंग प्रौद्योगिकी) का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये एक या दो नहीं, दर्जनों और सैकड़ों हैं.

USA  Professor E. Mason von der Abteilung für Physiologie und Biophysik an der Weill Cornell Medicine
क्रिस्टोफर मेसन आनुवांशिकी विज्ञानी हैंतस्वीर: Pershing Square Sohn Cancer Research Alliance

मंगल पर जीवित रहने के औजार

मैं इसे हर रोज देखता हूं. इसलिए मेरा विचार, मौजूदा उपचार से जुड़े हमारे परहेजों का बस एक तार्किक विस्तार ही है...लोग सर्वश्रेष्ठ कोशिकाएं बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, माइक्रोबायोम यानी जीवाणुओं को रूपांतरित करने से लेकर प्रतिरोधक कोशिकाओं को बदलने तक. ये सब हो रहा है बीमारी का उपचार करने या उसे रोकने के लिए.

हम यही कोशिश कर रहे हैं, दूसरे ग्रहों में हमारे जीने के लिए मददगार टूल बक्से में, टेक्नोलॉजी के उपयोग से एक अतिरिक्त औजार और मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं. यही एक तरीका नहीं हैं. मैं दूसरे यांत्रिक और औषधीय तरीकों की बात भी करता हूं. 20 साल और लगेंगे ये सब सही ढंग से कर पाने में. इसीलिए ये प्लान 500 साल का बनाया गया है!

ये दिलचस्प है कि आप नागवार और चरम हालातों में रह सकने वाले जीवाणुओं, एक्सट्रीमोफाइल्स से काफी सबक ले रहे हैं. ये जीव चरम पर्यावरणों जैसे महासागरों की अत्यधिक गहराइयों या उष्मजलीय निकासों (हाइड्रोथर्मल वेंट्स) में रहते हैं. अंतरिक्ष जैसे चरम पर्यावरण में हमारे भविष्य पर इसका क्या असर पड़ सकता है?

एक्सट्रीमोफाइल्स का अध्ययन करना दिलचस्प रहा है. इनमें वे सूक्ष्मजीव भी हैं जो अंतरिक्ष के निर्वात या अंतरिक्ष स्टेशन में रहते हैं. विकिरण के प्रतिरोध, सूखेपन के प्रतिरोध के अलावा एक्स्ट्रीमोफाइल में डीएनए मरम्मत के लिए हम बहुत सारी जीन्स की तलाश करते रहते हैं. लगता है कि चरम अवस्था वाले जीवन के हिसाब से ढलने लायक कई मिलतीजुलती खूबियां उनमें मौजूद हैं.

जितना ज्यादा हम देखते जाएंगे ये चरम हालात में टिके रह जाने वाले जीव हमें उन तमाम जगहों पर मिलेंगे जहां खारापन या तापमान या विकिरण के स्तरों को देखते हुए, आप आमतौर पर यही मानते आए हैं कि वहां तो जीवन हो ही नहीं सकता. लेकिन देखिए, हम लगातार गलत साबित होते रहते हैं. 

अगर हम जेनेटिक इंजीनियरिंग से जुड़े तमाम नैतिक और तकनीकी सवाल हम सुलझा लेते हैं, तब क्या होगा?

जी हां, ये मानते हुए कि तमाम प्रश्नों के उत्तर मिल गए तो फिर दो अहम सवाल उभरते हैं, क्या हम सोचते हैं कि ये चीज काम करेगी और क्या ऐसा किया ही जाना चाहिए. लेकिन क्रियात्मक रूप से हमने टार्डिग्रेडों (बहुत छोटे इनवर्टिब्रेट) की जीन्स का अध्ययन किया है जो विकिरण के खिलाफ अपनी प्रतिरोधी क्षमता को 80 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं. तो तकनीकी रूप से ये संभव है.   

लोग जीन के संपादन को लेकर या उनमे जोड़घटाव को लेकर अक्सर परेशान हो उठते हैं. जीन्स को बारबार खोलकर और बंद कर हम जीन्स की "क्षणिक सक्रियता” भी देख रहे हैं. अगर आप विकिरण की चपेट में हैं और मैं आपकी मौजूदा जीन्स लेकर उन्हें ऊपर नीचे खिसकाऊं और बाद में उन्हें वापस लौटा दूं तो मेरे ख्याल से एक अलग चीज होगी.  

Illustration Super Erde
हम लगातार नए ग्रह खोज रहे हैं, क्या कभी वहां जा भी पाएंगे?तस्वीर: Science Photo Library/imago images

अंतरिक्ष में सेक्स

सबसे बड़े मुद्दों में एक है कि हम मंगल में आबादी कैसे बढ़ाएंगे. आप कहते हैं कि मनुष्य अगले 200 साल तक मंगल में पैदा नहीं होगे.

हां, प्रारंभिक मंगलवासियों पर तो ये बात लागू होगी, जिनमें दोनों मातापिता वहां पैदा हुए हों और फिर उनकी संतानें भी वहीं पैदा हुई हों. 

मुझे यकीन है कि उससे पहले मंगल में लोग पैदा हो जाएंगे. चलिए मान लेते हैं कि 2030 के मध्य या 2040 में वहां पर लोग होंगे, तो हो सकता है कि लोगों को 10 साल वहां पर रह चुकने के दौरान बच्चा भी पैदा हो जाए. ये लगभग अवश्यंभावी है, अगर दोनों स्त्री पुरुष वहां है और लोग बोर होने लगें...तो ये तो होकर रहेगा...

हम करोड़ों साल से दूसरे बुरे पर्यावरणों में ये करते आ रहे हैं इसलिए ये वहां पर भी होगा. लेकिन दूसरी पीढ़ी के मंगलवासियों का, या मंगल के नागरिकों का बच्चा होने में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा.

मंगल पर नदियां बनीं और गायब हो गईं

अंतरिक्ष में प्रकाश के बारे में क्या कहेंगे या भूमिगत जीवन के बारे में? आप विटामिन संश्लेषण या विटामिन सिंथेसिस की बात भी करते हैं.

हां, मंगल में रोशनी अलग होगी...लिखते हुए ये हिस्सा मजेदार था, एक इच्छा सूची की तरहः क्या हो अगर हमारी आंखें अलग हों?

"सावधान, हम सबकुछ गुड़गोबर न कर दें

इवोल्युशन यानी क्रमिक विकास का अधिकांश इतिहास दुर्घटना ही रहा है. लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि हमारे पास कोई नियंत्रण आ जाए, अनियंत्रित विकास की अपेक्षा एक नियंत्रित विकास का. अगर हमें चीजों को थोड़ा बेहतर करने के तरीके हासिल हो जाएं?

ये भी हो सकता है कि आप सब कुछ गुड़गोबर कर दें, इसलिए आपको बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी.

लेकिन आप अलग अलग वेव लेंथों में देख पाने की कल्पना कर सकते हैं. या अपने तमाम विटामिनों या अमीनो एसिड्स को संश्लेषित कर सकने का ख्वाब देख सकते हैं. लेकिन निराशा की बात है कि आज हम ऐसा कर पाने की स्थिति में हैं ही नहीं. मैं इसे "मॉलीक्युलर इनेप्टिट्यूड” यानी "आणविक अयोग्यता” कहता हूं. अपने अमीनो एसिड या विटामिन सी को ही लीजिए, हम भला क्यों नहीं बना सकते हैं? गीली नाक वाले लेमुर जैसे प्राइमेट यानी नरवानर अभी भी ये कर सकते हैं लेकिन हमने ये क्षमता गंवा दी और देखा जाए तो बहुत लंबा समय नहीं हुआ है. ऐसा महज इसलिए हुआ क्योंकि हमें अपनी खुराक से ये चीजें पर्याप्त मात्रा में मिल गयीं.

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हम छोटे से छोटे ऑर्गेनिज्म से नया सीख रहे हैंतस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library/Last Refuge

लेकिन ये तो वाकई दिलचस्प चीज है कि ये बात सिर्फ आगे की ओर क्रमिक विकास की नहीं बल्कि पीछे लौटने की भी है कि हम कैसे हुआ करते थे. आपको इस बात की चिंता नहीं होती कि लोग आपको सनकी कहेंगें?

नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं! आज हम न कर पाएं लेकिन अगले कुछ दशक बहुत खोजपूर्ण होंगे. लेकिन ये एक जरूरी कर्तव्य है, हमारी तमाम नस्लों के लिए एक बहुत जरूरी ड्यूटी. अगर उन औजारों की बदौलत हम बचे रह पाते हैं और अपनी संरक्षक वाली भूमिका निभा पाते हैं, तो मैं उनके पक्ष में हूं.

संरक्षक के रूप में हमारा कर्तव्य

हो सकता है हम खुशकिस्मत हों, हम लोगों को मंगल पर भेज पाएं और वे वहां खुद को ढाल लें. फिर तो क्या ही बात होगी. लेकिन पर्यावरण को देखते हुए मुझे लगता है कि ये नहीं होगा. वैसे ये अनैतिक भी होगा क्योंकि हमारे पास अगर किसी को बचाने के औजार आ गए लेकिन हमने उनका उपयोग ये कहते हुए नहीं किया कि, "विकिरण की चपेट में आ रहे हो तो आ जाओ. हम तुम्हें बचा तो सकते हैं लेकिन हम ऐसा करेंगे नहीं,” तो मेरे हिसाब से ये बहुत बुरा होगा.  

विलुप्ति का अहसास सिर्फ इंसानी नस्ल को ही है.

लेकिन मैं जोर देकर कहूंगा कि ये सिर्फ इंसानी नजरिया नहीं है. अगर ऑक्टोपस भी सचेतन हो जाएं और सवाल पूछना शुरू कर दें तो मैं तब भी यही कहूंगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी. लेकिन जब तक कोई कारण या कर्तव्य-बोध नहीं होगा, कोई भी ये नहीं करेगा.

तो जैसा कि हम अपने जीवन को जानते हैं, ये उसकी हिफाजत की बात भी है. लेकिन आपका कहना है कि महाविस्फोट से पहले ब्रह्मांड किसी दूसरे रूप में रहा होगा, जैसा कि हम सोचते हैं कि हम पहले से ही "दूसरा संस्करण हों...

सबसे बड़ा सवाल ये हैः हम क्या करेंगे अगर ये हमारा दूसरा चक्कर हो? क्या ब्रह्मांड को दोबारा फटने और खुद को तीसरे महाविस्फोट से रोकना गलत होगा? क्या हमें ये उम्मीद है कि दोबारा जीवन घटित हो जाएगा? या हम अपने ब्रह्मांड के अंत को रोकने की कोशिश करेंगे? मैं सोचता हूं कि हमें ये करना पड़ेगा क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि ऐसा दोबारा भी होगा. सारी बात यही है. 

क्रिस्टोफर ई मेसन आनुवांशिकी विज्ञानी और कंप्यूटेशनल जीवविज्ञानी हैं. वो न्यू यार्क स्थित वाइल कॉरनेल मेडिसिन में प्रोफेसर भी हैं. उनकी किताब "द नेक्स्ट 500 इयर्सः इंजीनियरिंग लाइफ टू रीच न्यू वर्ल्ड्सअप्रैल 2021 में एमआईटी प्रेस से प्रकाशित हुई है.

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