सेउटा में दो दुनियाओं की टक्कर
३० अप्रैल २०१५पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी का कोनाक्री प्रांत, मोहम्मद सिसोको यहीं के रहने वाले हैं. लेकिन उन्हें अपना घर छोड़े हुए दो साल बीत चुके हैं. कोनाक्री की बुरी यादें आज भी उनका पीछा करती हैं. कबीलों की लड़ाई में उनके मां बाप की हत्या कर दी गई. जान बचाने के लिए सिसोको यूरोप की तरफ भागे. उन्होंने माली, मॉरिशियाना और मोरक्को पार किया. इसके बाद वह एक छोटी सी डोंगी में सवार हुए और उत्तरी अफ्रीका में बसे स्पेन के सेउटा शहर पहुंचे.
समंदर की वो खतरनाक यात्रा नौ घंटे की थी. लेकिन सिसोको को लगता है कि वह भाग्यशाली रहे, "कुछ लोग तो कई दिन और कई रात पानी में ही रहते हैं." फिलहाल सिसोको के बदन पर जो कपड़े हैं वे उन्हें सेउटा के अस्थायी आप्रवासन केंद्र ने दिए हैं. सेंटर शहर से बाहर एक चोटी पर है. सिसोको यहां पांच महीने बिता चुके हैं. वह कहते हैं, "मैं सेउटा में हूं और मैं नहीं जानता कि मैं यहां से कब निकलूंगा. यहां से मैं यूरोप जाना चाहता हूं और देखना चाहता हूं कि क्या मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूंगा. मुझे पढ़ना ही होगा, तभी नौकरी की गुंजाइश बनेगी."
सिसोको जैसे यहां करीब 500 शरणार्थी है, ज्यादातर सब सहारा अफ्रीका से आए हैं. ये सभी एक ही सेंटर में रह रहे हैं. लोगों को रखने की सेंटर की क्षमता करीबन पूरी हो चुकी है. तकनीकी रूप से सेउटा यूरोपीय संघ में आता है लेकिन इन लोगों को आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा पाने में कई महीने लगेंगे. हो सकता है कि इस प्रक्रिया में उन्हें या तो उनके देश लौटा दिया जाएगा या फिर स्पेन की मुख्य धरती पर लाया जाएगा. स्पेन पहुंचने वालों के पास नई जिंदगी शुरू करने का मौका होगा.
खतरनाक दांव
2014 में करीब 20,000 लोगों ने उत्तरी अफ्रीका में बसे स्पेन के शहर सेउटा और मेलिल्ला के रास्ते यूरोप आने की कोशिश की. हाल के सालों में स्पेन और मोरक्को के प्रशासन ने सीमा नियंत्रण को कड़ा किया है. यही वजह रही कि करीब 10 फीसदी विस्थापित ही वहां से यूरोप पहुंच सके हैं. लेकिन इसके बावजूद हजारों लोग अब भी उत्तर की तरफ बढ़ रहे हैं, इसी उम्मीद में कि शायद एक दिन वे स्पेन पहुंच जाएंगे.
मेलिल्ला में दाखिल होने के लिए छह मीटर ऊंची बेहद धारदार बाड़ को फांदना आम कोशिश है. सेउटा में हालात अलग हैं, वहां लोग अधिकारियों को गच्चा देने की कोशिश करते हैं. सेउटा में रहने वाले पत्रकार गोंजालो तेस्ता कहते हैं, "इन दिनों सीमा पार करने का सबसे आम तरीका कार में किसी भी तरह से छुपकर आना है. इससे पहले आम तौर पर लोग पानी के रास्ते या तो तैरकर या फिर खिलौने जैसी छोटी नावों में सवार होकर पहुंचते थे."
अल ताराजल त्रासदी
फरवरी में सेउटा पहुंचने की एक कोशिश एक हादसे के साथ खत्म हुई. करीब 200 सब सहारा अफ्रीकी समुद्र के रास्ते मोरक्को की सीमा तक पहुंचे. उन्हें उम्मीद थी कि वे भूमध्य सागर में तैरते हुए सेउटा पहुंच जाएंगे. लेकिन सेउटा में सुरक्षाकर्मी दंगा विरोधी उपकरणों, रबर की गोलियों और आंसू गैस से लैस थे. इससे पानी में तैरते लोगों में अफरा तफरी फैल गई और कम से कम 15 लोग डूब कर मारे गए. उस हादसे के बाद सुरक्षाकर्मियों की कड़ी आलोचना हुई. उस घटना को "अल ताराजल त्रासदी" कहा जाता है. अदालत के आदेश पर फिलहाल 16 सुरक्षाकर्मियों की भूमिका की जांच हो रही है.
सरकार का कहना है अप्रवासी मौत के लिए खुद जिम्मेदार हैं क्योंकि वे पानी में अफरा तफरी फैलाने लगे. लेकिन फॉरेंसिक विशेषज्ञओं के सबूत सिविल गार्ड के प्रमुख के बयान को गलत साबित कर रहे हैं. बाल बाल बचे लोगों ने आरोप लगाया है कि सिविल गार्डों ने पानी में उन पर निशाना साधकर फायरिंग की. कड़ी आलोचना के बाद प्रशासन को अपने तरीके बदलने पड़ रहे हैं. लेकिन सेउटा में अप्रवासियों को मानवीय मदद दे रही संस्था रेड क्रॉस का कहना है कि शरणार्थियों के मुद्दे पर अब भी सहयोग का अभाव साफ झलक रहा है.
गाय हेडगेसोए/ओएसजे