सूनामी के सबक
11 मार्च 2011 को समुद्र के भीतर रिक्टर स्केल पर 9 तीव्रता का भूकंप भीषण सूनामी लेकर आया. इसके क्या कुछ सबक थे देखें इन तस्वीरों में.
फुकुशिमा: एक स्थाई सबक
2011 की सूनामी तब और भयानक हो गई थी जब समुद्र से उठे तूफान और भीषण लहरों की चपेट में जापान के फुकुशिमा का परमाणु संयंत्र भी आ गया. परमाणु ऊर्जा के पक्षधर इसे बेहद सुरक्षित और पर्यावरण सम्मत बताते थे. लेकिन सूनामी से बर्बाद हो फुकुशिमा संयंत्र से पैदा हुई रेडियो सक्रियता ने इन दावों को गलत साबित कर दिया.
परमाणु दुर्घटना
9 तीव्रता वाले भूकंप से उपजी सूनामी के कारण जापान के उत्तरी तटीय इलाके में मौजूद फुकुशिमा परमाणु संयंत्रों पर भी शक्तिशाली तूफान और लहरों का हमला हुआ. रिएक्टरों में टूट फूट हुई और परमाणु छड़ों के गलने से निकले विकिरणों के कारण जापान को भीषण परमाणु दुर्घटना झेलनी पड़ी.
परमाणु ऊर्जा: नो थैंक्स!
कुछ देशों ने फुकुशिमा की तबाही से सबक लिया और परमाणु ऊर्जा से परहेज की बात की. केवल जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा को पूरी तरह नकार दिया और सौर तथा पवन ऊर्जा के विकल्प की ओर ज्यादा निवेश करना शुरू किया. जर्मनी में अभी भी 8 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं. कभी 20 हुआ करते थे. अगले 6 सालों में उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा.
आपदा या हादसा
हालांकि ये सबक सारे देशों ने नहीं लिए हैं. बहुत से देशों में फुकुशिमा को मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदा समझा गया. खुद जापान ने कुछ साल परमाणु बिजली घरों को बंद करने के बाद फिर से परमाणु संयंत्रों को चालू कर दिया है. फ्रांस और अमेरिका ने कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं. सिर्फ जर्मनी ने फुकुशिमा के सबक को लागू किया है.
परमाणु संयंत्र के बदले साहसिक पार्क
नीदरलैंड से लगी जर्मनी की सीमा के पास ही काल्कर के एक पुराने न्यूक्लियर पावर प्लांट को साहसिक खेलों के लिए एक रोचक पार्क में बदल दिया गया है. ये सबक सुनामी से भी पहले का है. यूक्रेन में हुए चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र हादसे की तबाही को देखते हुए पूरी तरह तैयार हो गए इस परमाणु संयंत्र को कभी भी इस्तेमाल न करने का फैसला लिया गया.
कुडनकुलम का विरोध
भारत में भी समुद्रतटीय राज्य तमिलनाडु के कुडनकुलम में भी रूस की मदद से 2000 मेगावाट का परमाणु संयंत्र लगाया गया है. इस परमाणु संयंत्र का भी स्थानीय लोगों और पर्यावरणवादियों की ओर से भारी विरोध हुआ है. विरोध कर रहे लोग फुकुशिमा की दुर्घटना और तबाही से सबक लेने की बात कर रहे हैं.
पीड़ितों का विरोध
भारत दिसंबर 1984 में पहले ही भोपाल गैस त्रासदी झेल चुका है. जिसमें यूनियन कार्बाइड के कारखाने से हुए गैस रिसाव के चलते करीब 3,787 लोग मारे गए थे और लाखों लोगों को भयानक रोगों से जूझना पड़ा. इसके चलते भोपाल गैस पीड़ित भी कुडनकुलम में लगाए गए परमाणु संयंत्र का विरोध कर रहे हैं.