सिर्फ बीमारी नहीं फैलाते हैं चमगादड़
कोरोना वायरस का स्रोत माने जाने की वजह से चमगादड़ बड़े बदनाम हो गए हैं, लेकिन असल में धरती पर इनकी काफी उपयोगिता भी है. क्या आप जानते हैं ये सब इनके बारे में?
ना कैंसर और ना बुढ़ापा छू सके
साल में केवल एक ही संतान पैदा कर सकने वाले चमगादड़ ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 साल ही जीते हैं. लेकिन ये कभी बूढ़े नहीं होते यानि पुरानी पड़ती कोशिकाओं की लगातार मरम्मत करते रहते हैं. इसी खूबी के कारण इन्हें कभी कैंसर जैसी बीमारी भी नहीं होती.
हर कहीं मौजूद लेकिन फिर भी दुर्लभ
ऑस्ट्रेलिया की झाड़ियों से लेकर मेक्सिको के तट तक - कहीं पेड़ों में लटके, तो कहीं पहाड़ की चोटी पर, कहीं गुफाओं में छुपे तो कहीं चट्टान की दरारों में - यह अंटार्कटिक को छोड़कर धरती के लगभग हर हिस्से में पाए जाते हैं. स्तनधारियों में चूहों के परिवार के बाद संख्या के मामले में चमगादड़ ही आते हैं.
क्या सारे चमगादड़ अंधे होते हैं
इनकी आंखें छोटी होने और कान बड़े होने की बहुत जरूरी वजहें हैं. यह सच है कि ज्यादातर की नजर बहुत कमजोर होती है और अंधेरे में अपने लिए रास्ता तलाशने के लिए वे सोनार तरंगों का सहारा लेते हैं. अपने गले से ये बेहद हाई पिच वाली आवाज निकालते हैं और जब वह आगे किसी चीज से टकरा कर वापस आती है तो इससे उन्हें अपने आसपास के माहौल का अंदाजा होता है.
काले ही नहीं सफेद भी होते हैं चमगादड़
यह है होंडुरान व्हाइट बैट, जो यहां हेलिकोनिया पौधे की पत्ती में अपना टेंट सा बना कर चिपका हुआ है. दुनिया में पाई जाने वाली चमगादड़ों की 1,400 से भी अधिक किस्मों में से केवल पांच किस्में सफेद होती हैं और यह होंडुरान व्हाइट बैट तो केवल अंजीर खाते हैं.
यूं ही कहलाते हैं खून के प्यासे
चमगादड़ों को आम तौर पर दुष्ट खून चूसने वाले जीव समझा जाता है लेकिन असल में इनकी केवल तीन किस्में ही सचमुच खून पीती हैं. जो पीते हैं वे अपने दांतों को शिकार की त्वचा में गड़ा कर छेद करते हैं और फिर खून पीते हैं. यह किस्म अकसर सोते हुए गाय-भैंसों, घोड़ों को ही निशाना बनाते हैं लेकिन जब कभी ये इंसानों में दांत गड़ाते हैं तो उनमें कई तरह के संक्रमण और बीमारियां पहुंचा सकते हैं.
बीमारियों के लिए जिम्मेदार भी
कुदरती तौर पर चमगादड़ कई तरह के वायरसों के होस्ट होते हैं. सार्स, मर्स, कोविड-19, मारबुर्ग, निपा, हेन्ड्रा और शायद इबोला का वायरस भी इनमें रहता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका अनोखा इम्यूम सिस्टम इसके लिए जिम्मेदार है जिससे ये दूसरे जीवों के लिए खतरनाक बीमारियों के कैरियर बनते हैं. इनके शरीर का तापमान काफी ऊंचा रहता है और इनमें इंटरफेरॉन नामका एक खास एंटीवायरल पदार्थ होता है.
ये ना होते तो ना आम होते और ना केले
जी हां, आम, केले और आवोकाडो जैसे फलों के लिए जरूरी परागण का काम चमगादड़ ही करते हैं. ऐसी 500 से भी अधिक किस्में हैं जिनके फूलों में परागण की जिम्मेदारी इन पर ही है. तस्वीर में दिख रहे मेक्सिको केलंबी नाक वाले चमगादड़ और इक्वाडोर के ट्यूब जैसे होंठों वाले चमगादड़ अपनी लंबी जीभ से इस काम को अंजाम देते हैं. (चार्ली शील्ड/आरपी)