फिंगरप्रिंट जैसी है छूटती सांस
२० मई २०१६जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री के वैज्ञानिकों ने सिनेमाघर की हवा का विश्लेषण किया. वैज्ञानिकों ने पाया कि हर फिल्म या हर सीन के दौरान दर्शकों का शरीर कुछ खास गैसें छोड़ता है. सुख, दुख, रोमांच, रोमांस या रहस्य के दौरान सिनेमा से बाहर निकलने वाली हवा एक जैसी नहीं होती है.
प्रयोग के तहत वैज्ञानिकों ने सिनेमाघर के वेटिंलेटर पर हवा का विश्लेषण करने वाला यंत्र लगाया. इससे उन्हें पता चला कि हर सीन के दौरान सिनेमाघर से निकलने वाली हवा अलग अलग थी. हर फिल्म के अलग अलग दृश्यों के दौरान हॉल में कॉर्बन डाय ऑक्साइड, एसीटोन और इसोप्रीन गैसों की मात्रा बदल रही थी.
फिल्म का फिंगरप्रिंट
माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के वैज्ञानिक और प्रोजेक्ट हेड जोनाथन विलियम्स नतीजों से बेहद हैरान हैं, "हमें उम्मीद थी कि लेदर जैकेट, परफ्यूम, पॉपकॉर्न, कोल्ड ड्रिंक्स का मिश्रण मिलेगा. लेकिन हमने देखा कि एक ही फिल्म को अगर बार बार दिखाया जाए तो हवा में खास तत्वों का मिश्रण काफी बढ़ जाता है."
'हंगर गेम्स: कैचिंग फायर' फिल्म के दौरान रोमांचक सीन आने पर हॉल की हवा का रासायनिक समीकरण बदलता रहा. हर सीन गुजरने के बाद रासायनिक समीकरण फिर बदल जाता. ये बार बार होता रहा. सिनेमाघर के चार हॉलों में जब जब यह फिल्म चली तब तब ऐसा हुआ. विलियम्स कहते हैं, "चाहे किसी भी कमरे में फिल्म दिखाओ, इस तरह का रासायनिक मिश्रण वहां भी पक्का मिलेगा."
इसके बाद वैज्ञानिकों ने 16 फिल्मों की समीक्षा की. ये फिल्में 108 बार दिखाई गईं. कुल दर्शकों की संख्या करीब 10,000 रही. इनमें 'वॉकिंग विद डायनासोर' और जर्मन फिल्म 'बडी' भी थी. इस दौरान सिनेमाघर से निकलने वाली हवा का विश्लेषण 287-टेराफ्लॉप सुपरकंप्यूटर पर किया गया. इसके आधार पर वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हवा का रासायनिक मिश्रण किसी फिल्म के फिंगरप्रिंट की तरह है.
क्यों अहम है ये जानकारी
एट्मोस्फेरिक साइंटिस्ट विलियम्स फुटबॉल मैच के दौरान भी ऐसा ही प्रयोग कर रहे हैं. 30,000 दर्शकों से भरे स्टेडियम में उन्होंने हवा का विश्लेषण करने वाले उपकरण लगाए. उनकी टीम देखना चाहती थी कि क्या गोल होने पर स्टेडियम की फिजा रासायनिक रूप से बदलती है. लेकिन दुर्भाग्य से उस दिन माइंज की टीम गोल नहीं कर सकी.
विलियम्स को यकीन है कि सांस के जरिये निकलने वाली हवा से इंसान की सेहत और मनोदशा का पता लगाया जा सकेगा, "आप उन्हें हंसाइये या फिर डराइये, उनकी सांस में चल रहा रिएक्शन हवा में आएगा. सिनेमा में हमने इसे माप लिया."
आम तौर पर शरीर में कॉलेस्ट्रॉल का संश्लेषण होने पर सांस में इसोप्रीन की मात्रा बढ़ जाती है. उम्मीद है कि इस रिसर्च से सांस के विश्लेषण से जुड़े मेडिकल साइंस का रास्ता खुलेगा. वैज्ञानिकों को लगता है कि इस नई खोज से बीमारियों के रासायनिक लक्षण समझे जा सकेंगे. इससे फेफड़े, लीवर के रोगों और कैंसर का भी पता लगाया जा सकेगा. रिसर्च टीम अब बच्चों और बड़ों की सांस की समीक्षा करना चाहती है, ताकि वे उम्र के साथ शरीर में आने वाले बदलावों को और बेहतर ढंग से समझ सके.