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साइंस की बात करने पर इमाम की छुट्टी

२१ अक्टूबर २०१९

क्या इस्लाम और विज्ञान एक साथ चल सकते हैं? कोसोवो का एक इमाम ऐसा ही सोचता था लेकिन इसकी कीमत उसे अपनी नौकरी गंवा कर चुकानी पड़ी.

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Kosovo Frauen als Islam-Prediger
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Kryeziu

पश्चिमी कोसोवो में अपने गांव की मस्जिद में इमाम रहे द्रिलोन गाशी को क्रमिक विकास के सिद्धांत में बहुत रुचि है. मस्जिद में इमामत के अलावा जब भी उन्हें समय मिलता था वे सोशल मीडिया पर इस बारे में अपने ख्यालात का इजहार करते थे. लेकिन इस्लाम और डार्विनवाद को एक साथ लेकर चलने के कारण उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. पिछले महीने उन्हें बेआबरू कर इमाम के पद से हटा दिया गया.

गाशी कहते हैं कि उन्हें हटाए जाने से पता चलता है कि कोसोवो में पारंरपरिक उदारवादी इस्लाम को किस कदर खतरा है. कोसोवो ने 2008 में सर्बिया से एकतरफा तौर पर आजादी का एलान किया. हालांकि अब भी कई देशों ने एक अलग देश के तौर पर उसे मान्यता नहीं दी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक कोसोवो की 18 लाख की आबादी में 90 प्रतिशत लोगों ने खुद को मुसलमान बताया है.

गाशी कहते हैं कि इस्लाम और विज्ञान एक साथ चल सकते हैं. उनका सिद्धांत है, "जीवित प्राणी क्रमिक विकास की प्रक्रिया में पैदा हुए हैं. लेकिन इस क्रमिक विकास का नेतृत्व ईश्वर करता है. सभी प्राकृतिक चीजों को अल्लाह ने बनाया है लेकिन विज्ञान उन्हें हमारे सामने पेश करता है." कोसोवो को उदारवादी इस्लाम के रास्ते पर चलने वाला इलाका माना जाता है. ऐसे में, अगर कोई वहां क्रमिक विकास के सिद्धांत को मानता है, तो इसमें कोई अनोखी बात नहीं है.

कोसोवो में शराब पर भी किसी तरह की पाबंदी नहीं है और वहां के लोगों को अमेरिकी चीजें बहुत पसंद हैं. वहां ज्यादातर लोग धार्मिक कपड़े पहने हुए भी नहीं दिखेंगे. लेकिन पिछले दो दशकों में यह पहचान तेजी से बदल रही है. ऐसे इमामों  की संख्या बढ़ रही है जो विदेशों में ट्रेनिंग लेकर आ रहे हैं. ऐसे में, पारंपरिक रीति रिवाजों पर उनकी आपत्तियां भी सामने आ रही हैं.

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सर्बिया के साथ 1998-99 में आजादी की जंग के बाद खाड़ी देशों से कोसोवो में बहुत पैसा आया जिससे सैकड़ों मस्जिदें बनाई गईं और नई धार्मिक शिक्षाओं का प्रचार प्रसार हुआ. स्कॉलरशिप देकर इमामों को सऊदी अरब और मिस्र जैसे देशों में पढ़ने भेजा  गया.

गाशी ने भी मदीना में जाकर पढ़ाई की. लेकिन उन्होंने वहां सिखाई जा रही धुर कट्टरपंथी विचारधारा को नहीं अपनाया. वह कहते हैं कि धार्मिक प्रतिष्ठान को उनके "उदारवादी विचार" पसंद नहीं हैं. सोशल मीडिया और स्थानीय प्रेस में होने वाली टिप्पणियों में वह अपने विवादास्पद विचारों को व्यक्त करते रहे हैं. कोसोवो में मौलवियों की सबसे बड़ी संस्था इस्लामिक कम्युनिटी ऑफ कोसोवो (बीआईके) ने उनके विचारों को "गंभीर उल्लंघन" का नाम दिया. बीआईके के प्रवक्ता अहमत सादरिऊ ने कहा, "सिद्धांत इस्लाम के सिद्धांतों और हमारे आतंरिक नियमों के विपरीत हैं."

वैश्विक स्तर पर डार्विन के सिद्धांत को लेकर मुस्लिम दुनिया में अलग अलग तरह की राय पाई जाती है. कुछ विद्वान कहते हैं कि सृष्टि के निर्माण को लेकर बाइबिल के मुकाबले कुरान में कम स्पष्टता नहीं है. इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर खाबिर हमिती कहते हैं कि गाशी के विचार विवादास्पद हो सकते हैं, लेकिन बेहतर होगा अगर इस मुद्दे पर कोसोवो में "एक बेहतर और सार्थक बहस कर पाएं."

गाशी के समर्थकों का कहना है कि उन्हें हटाए जाने से पता चलता है कि कोसोवो में उदारवादियों के लिए जगह कम होती जा रही है. उनके समर्थन में एक फेसबुक यूजर ने लिखा, "बधाई द्रिलोन! आपको इन अज्ञानी और रुढ़िवादी धार्मिक प्रतिनिधियों के मुकाबले कहीं ज्यादा जानकारी है."

लेकिन गाशी ने हाल में अपने फेसबुक  प्रोफाइल  में अपना स्टेटस बदलते हुए लिखा, "बेरोजगार."

एके/एमजे (एएफपी)

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