सरकार संसद को भी जानकारी का साझेदार बनाये
८ नवम्बर २०१७जर्मन संवैधानिक न्यायालय ने सरकार से सवाल पूछने के सांसदों के अधिकार पर स्पष्टीकरण दिया है और उनकी स्थिति मजबूत की है. 2010 में ग्रीन पार्टी के सांसदों ने जर्मन रेल की परियोजनाओं और वित्तीय बाजार के नियमन संबंधी सवाल पूछे थे जिसका सरकार ने पर्याप्त जवाब नहीं दिया. अब देश की सर्वोच्च अदालत ने पाया है कि सांसदों की शिकायत सही है और सरकार ने सांसदों और संसद के अधिकारों का हनन किया है.
मामला थोड़ा पुराना है और देखने पर मामूली लग सकता है लेकिन सरकार और संसद दोनों के लिए ही अत्यंत संगीन सा है. संसद सार्वभौम है. दो चुनावों के बीच वह न सिर्फ सार्वभौम जनता का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि सरकार पर नियंत्रण भी करती है. हालांकि जर्मन संवैधानिक न्यायालय संसद के अधिकारों को लगातार मजबूत करता रहा है, लेकिन ताजा फैसले में मुख्य न्यायाधीश आंद्रेयास फोसकूले ने कहा है कि संसद सरकार की जानकारी में हिस्सेदारी के बिना सरकार के नियंत्रण की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकती.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि सांसदों के सूचना के अधिकार के संवैधानिक सुरक्षा के बिना संसद में विपक्ष का प्रभावी काम संभव नहीं है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार की गोपनीयता की जरूरत और प्रभावित लोगों के जरूरी मौलिक अधिकारों के लिए संसदीय गोपनीयता जरूरी होगी. अदालत ने साफ तौर पर कहा है कि एकल कंपनियों की प्रितयोगी परिस्थिति को राज्य का हित घोषित नहीं किया जा सकता.
आम तौर पर ज्यादातर सरकारें जनता को और संसद को शासन करने में बाधा मानती हैं, भले ही वह उसका एक हिस्सा ही क्यों न हो. जर्मन संवैधानिक न्यायालय का यह फैसला सरकार और संसद के बीच जानकारी की खाई पाटने में मदद करता है. इस फैसले का एक लोकतांत्रिक महत्व भी है. दुनिया भर की सरकारें और उनमें लोकतांत्रिक सरकारें भी शामिल हैं, जो सरकार के कामकाज का निजीकरण करती जा रही हैं और कारोबार की गोपनीयता के नाम पर सांसदों को सूचना नहीं देती. अब उनके लिए यह करना संभव नहीं होगा. इससे सरकारों और निजी कंपनियों के बीच हो रहे सौदों में भी पारदर्शिता आयेगी और सरकारों की जवाबदेही बढ़ेगी.
दूसरी सरकारों, संसदों और संवैधानिक अदालतों के लिए जर्मन संवैधानिक अदालत का फैसला सबक हो सकता है. कम से कम विचार करने लायक मुद्दा तो है ही ताकि संसद मजबूत हों और लोकतंत्र को व्यापक आधार मिले.