सम्राट नारुहितो का राज्याभिषेक
जापान के सम्राट नारुहितो ने आज टोक्यो में करीब 2000 मेहमानों के सामने एक परंपरागत समारोह में सिंहासन पर बैठने की घोषणा की.
राज्याभिषेक की घोषणा
59 वर्षीय सम्राट ने काले और नारंगी रंग का लिबास पहन रखा था, जो उनके खानदान में 9वीं सदी से राज्याभिषेक के दौरान पहना जाता है. उन्होंने देश और विदेश के लोगों के सामने औपचारिक रूप से जापान के सिंहासन पर बैठने की घोषणा की.
साढ़े 6 मीटर ऊंची राजगद्दी
ऑक्सफोर्ड में शिक्षा ग्रहण करने वाले नारुहितो ने 30 मिनट चले समारोह के दौरान 6.5 मीटर ऊंचे सिंहासन पर बैठने के बाद अपने राज्याभिषेक की घोषणा की. उन्होंने संविधान के अनुरूप अपनी जिम्मेदारी पूरी करने का वचन दिया.
तोपों की सलामी
सम्राट नारुहितो के राज्याभिषेक की घोषणा का जापान की आत्मरक्षा टुकड़ी की विशेष यूनिट ने तोपों की सलामी देकर स्वागत किया. नारुहितो देश के 126वें सम्राट हैं.
रानी का अलग सिंहासन
समारोह के दौरान साम्राज्ञी मसाको 12 तहों वाले परंपरागत किमोनो में पास रखे सिंहासन पर बैठीं. नारुहितो से शादी से पहले वह जापान की विदेश सेवा में अधिकारी थीं.
अकिहितो के उत्तराधिकारी
सम्राट अकिहितो के 30 अप्रैल को पद छोड़ने के एक दिन बाद 1 मई को नारुहितो ने एक उत्तराधिकार समारोह में सिंहासन संभाला था. इसके साथ जापान में उनके शासनकाल की शुरुआत हुई, जिसे रैवा काल कहा जाएगा.
मंदिर में प्रार्थना
समारोह से पहले सम्राट और साम्राज्ञी राजमहल में स्थित तीन मंदिरों में गए. उनमें सूरज भगवान अमातेरासू ओमिकामी का मंदिर भी है. माना जाता है कि जापानी राजपरिवार भगवान सूर्य का वंशज है.
शिंजो आबे का संदेश
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी राज्याभिषेक समारोह में भाग लिया. शिंजो आबे ने अपने संदेश में कहा, "हम जापान के लिए शांतिपूर्ण और उम्मीदों से भरा सुनहरा भविष्य बनाने का पूरा प्रयास करेंगे."
युवराज ने भी लिया हिस्सा
समारोह में राजकुमार आकिशिनो ने भी हिस्सा लिया. अप्रलै में अपनी बढ़ती उम्र के कारण पद छोड़ने वाले पूर्व सम्राट आकिहितो और साम्राज्ञी मिचिको ने समारोह में हिस्सा नहीं लिया.
विदेशी मेहमान
राज्याभिषेक समारोह में 190 देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के उच्च प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. जर्मनी का प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर और उनकी पत्नी ने किया. श्टाइनमायर ने समारोह को इतिहास, परंपरा और खुशियों के साथ भविष्य की उम्मीदों का मेल बताया.