1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

'समीक्षा के पोप' रानित्सकी का निधन

१९ सितम्बर २०१३

मार्सेल राइष रानित्सकी जर्मनी के सबसे अच्छे साहित्य आलोचकों में माने जाते हैं. उनका 93 साल की उम्र में निधन हो गया. लंबे करियर और पक्की समीक्षा के कारण उन्हें जर्मन अक्षरों का पोप कहा जाता था.

https://p.dw.com/p/19kTU
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी के जाने माने साहित्य समीक्षक मार्सेल राइष रानित्सकी 1970 के दशक में राष्ट्रीय अखबारों में साहित्य का कॉलम देखते थे और 1990 के दशक में टीवी पुस्तक समीक्षा "द लिटररी क्वार्टेट" पेश करते थे. उन्होंने इन कार्यक्रमों के जरिए जर्मन किताबों पर अपनी समीक्षा लिखी और उनके लेखन के कारण वह देश के सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक समीक्षक के तौर पर मशहूर हुए.

राइष रानिकी उन गिने चुने यहूदी लोगों में शामिल हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध में बचने के बाद, फिर जर्मनी में रहने के लिए आए. राइष रानिकी का जन्म 1920 में पोलैंड के वॉत्सुवॉवेक में हुआ था. उनके पिता फैक्ट्री के मालिक थे. राइष रानित्सकी ने स्कूली पढ़ाई तो बर्लिन में की लेकिन उन्हें यूनिवर्सिटी में दाखिला देने से इनकार कर दिया गया, कारण कि वह यहूदी थे.

उन्होंने खुद के बारे में कभी कहा था, "स्कूल में मैं हमेशा बाहरी ही था. मेरा कोई घर नहीं था. 1930 के दशक में मेरा घर थर्ड राइष (हिटलर राज) था. लेकिन मेरे लिए एक घर बना, साहित्य का घर."

Marcel Reich-Ranicki in seinem "Wohnzimmer"
तस्वीर: picture-alliance/dpa

1938 में पोलैंड भेज दिए जाने पर राइष रानित्सकी की मुलाकात उनकी पत्नी तोफिला (तोसिया) से हुई. वो दोनों वॉरसा से भाग गए. राइष रानित्सकी के पिता और भाई की नाजी शासन में हत्या कर दी गई. 1958 में मार्सेल राइष रानित्सकी जर्मनी लौटे और जर्मन भाषा और साहित्य की पढ़ाई शुरू की. उनकी पहली पसंद क्लासिक साहित्यकार गोएथे, हाइने, क्लाइस्ट, फॉन्टाने और थोमास मान थे.

जोखिम भरा कदम

2005 में नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य का पुरस्कार दिए जाने के मौके पर उन्होंने कहा, "जब मैं 58 में जर्मनी आया तो देखा कि लोग साहित्य के बारे में अखबारों में क्या लिख रहे हैं. मैंने अपने पत्नी से कहा, मैं एक प्रयोग करना चाहता हूं. ये लोग बहुत भ्रमित और रहस्यमय तरीके से लिखते हैं. मुझे उनकी समीक्षा अच्छी नहीं लगती. मैं बिलकुल साफ कहूंगा कि मुझे इन किताबों के बारे में क्या लगता है. यह जोखिम भरा है, दो चीजें हो सकती हैं. या तो मैं साहित्य समीक्षा में सबसे ऊपर पहुंच जाऊंगा या फिर एकदम नीचे. लेकिन मुझे कोशिश तो करनी होगी."

Marcel Reich-Ranicki Filmbiografie "Mein Leben"
तस्वीर: picture-alliance/dpa

वह पहले साप्ताहिक अखबार डी साइट के लिए और फिर फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने दैनिक के लिए समीक्षा लिखते थे. इसके अलावा वह लिटररी सोसायटी, ग्रुपे 47 के सदस्य थे. राइष रानित्सकी के विचार सच्चे और तीखे बने रहे इसके लिए उन्हें पसंद भी किया जाता और वह गुस्से का शिकार भी हुए.

तीखे और बेबाक विचारों के कारण लंबे करियर के बावजूद राइष रानित्सकी के दोस्त कम ही थे. जो दिमाग में आया, वो बोल देने की उनकी आदत ने 2008 में बड़ा विवाद पैदा किया. उस साल उन्हें सांस्कृतिक योगदान के लिए जर्मन टीवी पुरस्कार दिया गया था. उन्होंने पुरस्कार लेने से इनकार करते हुए कहा कि टीवी की क्वालिटी बहुत ही खराब है.
उनकी सबसे बड़ी सफलता उनकी समीक्षाओं की किताबें नहीं थी, लेकिन उनकी अपनी जीवन गाथा जो 1999 में छपी, वह काफी मशहूर हुई. उनका कहना है, "मैंने अपने जीवन पर एक किताब लिखी. बिलकुल वही जो मेरे अनुभव थे." 2009 के अप्रैल में वॉरसा घेटो में उनके जीवन के बारे में एक फीचर फिल्म बनाई गई. राइष रानित्सकी ने इसकी सफलता पर कहा, "इस किताब की प्रतिध्वनि मुझे हैरान करने वाली है."

रिपोर्टः ओलिवर सेपेलफ्रिके/आभा मोंढे

संपादनः एन रंजन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें