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सबसे ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं भारत में

३० अप्रैल २०१०

भारत में हर साल विश्व में सबसे ज़्यादा, यानी एक लाख 30 हज़ार से ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं. इस मामले में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है.

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भारत में ट्रक दुर्घटनातस्वीर: picture-alliance/ dpa

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर में सड़क सुरक्षा को लेकर एक नई रिपोर्ट निकाली है. रिपोर्ट के मुताबिक तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाना, हेल्मट या सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना और बच्चों को नियंत्रण में न रखना दुर्घटना का कारण बनते हैं.

विश्व भर में हर घंटे, 25 की उम्र से कम लगभग 40 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पांच से लेकर 29 वर्ष के लोगों में मौत का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है.

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जयपुर में हुआ मार्च में बस हादसातस्वीर: AP

2009 में भारत में हर घंटे 14 लोग सड़क हादसों में मारे गए. 2008 में यह आंकड़ा 13 था. नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो एनसीआरबी के मुताबिक सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या सालाना 1,35000 पार कर चुकी है.

ट्रक ड्राइवरों और टू व्हीलर चालक हादसे के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. शाम और सुबह सड़कों पर ज़्यादा गाड़ियों के होने की वजह से हादसे की संभावना बढ़ जाती है.

नशे में गाड़ी चलानाः एक बड़ी समस्या

एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नशे में गाड़ी चलाना हादसों के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है. पुलिस के संयुक्त कमिश्नर मैक्सवेल परेरा का मानना है कि चालकों को अपना रवैया बदलना होगा. कहते हैं, "ऐसा ज़रूरी नहीं है कि शहरों में हादसे शराब पी कर गाड़ी चलाने की वजह से होते हैं. लेकिन 99 प्रतिशत हादसों में से जो जानलेवा हादसे शहरों के बाहर होते हैं, उनमें शराब ज़िम्मेदार होता है. शहरों के बाहर नशे में चला रहे लोगों पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता. ट्रक ड्राइवरों का मानना है कि वे सड़कों पर तभी चलाने को तैयार हैं जब वह पूरी तरह नशे में धुत होते हैं. जब तक इस देश में हाइवे पर नशे में चलाने वाले लोगों पर नियंत्रण रखने का कोई तरीका नहीं निकलता तब तक इन हादसों को कम नहीं किया जा सकता."

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ट्रक ड्राइवरों से समस्यातस्वीर: AP

क़ानून लागू करने में ढील

नशे में गाड़ी चलाने के खिलाफ मुहिम कैंपेन एगेंस्ट ड्रंकन ड्राइविंग के प्रिंस सिंघल का कहना है कि सड़कों पर दुर्घटनाओं बढ़ने से साबित होता है कि राज्य सरकारें और पुलिस शराब पी कर चलाने वाले लोगों को गंभीरता से नहीं ले रही है. कहते हैं, "यह दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि शराब को लेकर राज्यों का अपना क़ानून है और यह देश भर में हो रहा है, केवल मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद और मेट्रो शहरों में नहीं. क़ानून फीका पड़ जाता है और कोई न्यायिक प्रक्रिया भी नहीं है. पुलिस क़ानून लागू नहीं करती और शराब पी कर चलाने के लिए वह लोगों पर मामला दर्ज नहीं कर सकती."

शराब पीने के खिलाफ अब तक किसी भी मुहिम को सफलता नहीं मिली है. और शराब पी कर गाड़ी चलाने पर कानूनी कार्रवाई से भी ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा है. लेकिन सिंघल इसे बदलना चाहते हैं. "अब कुछ बदल सकता है क्योंकि हमने सरकारी प्रतिनिधियों से मुलाकात की है और सड़क सुरक्षा पर एक श्वेत पत्र सौंपा है. अब इस मुद्दे पर एक राष्ट्रीय परिषद का गठन किया जाएगा. मामला संसद में है और मंत्रिमंडल ने इसे मंज़ूर कर दिया है. बहुत ही जल्द सड़क सुरक्षा पर एक अलग संस्था बनाई जाएगी."

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सुबह शाम सड़कों पर भीड़तस्वीर: AP

अब आगे क्या?

इस मामले में जल्द ही कुछ करने की ज़रूरत है. 2003 और 2008 के बीच भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिल नाडु जैसे देशों में विकास की रफ्तार के साथ साथ हादसे भी बढ़ रहे हैं.

सड़क सुरक्षा विश्लेषक कहते हैं कि मरने वाले लोगों की संख्या और भी ज़्यादा हो सकती है क्योंकि कई मामले पुलिस के सामने लाए ही नहीं जाते. और जहां तक उन लोगों का सवाल है जो दुर्घटना के कुछ घंटों बाद या कुछ दिनों बाद मर जाते हैं, उनको लेकर किसी भी तरह के आंकड़े नहीं हैं. उनकी मौत को सड़क हादसों से जोड़ा ही नहीं जाता.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन(एमजी)

संपादनः महेश झा