सदी की हार पर रोता ब्राजील
९ जुलाई २०१४वर्ल्ड कप के 7-1 वाले नतीजे और जर्मन जीत के अलग स्टेडियम का माहौल कुछ इस तरह दिखता था. ब्राजीली पीली जर्सी पहने राष्ट्रीय झंडे लपेटे लोगों की आंखें खेल के शुरुआती मिनटों में ही गीली होने लगीं, जब खतरनाक जर्मनों ने गोलों का पहाड़ खड़ा करना शुरू कर दिया.
टेलीविजन के कैमरामैनों के लेंस बार बार उस बुजुर्ग के पास सिमट जाया करते. झक सफेद मूंछों वाले इस शख्स को ब्राजील के दूसरे मैचों में भी देखा गया था. हर बार वह वर्ल्ड कप की इस रिप्लिका के साथ मौजूद होता. लेकिन तब उसकी सूरत कुछ अलग हुआ करती थी. ब्राजील जीत रहा होता था, तो उसके चेहरे पर भी खुशी झलक रही होती.
लेकिन सेमीफाइनल के इस मैच में सब कुछ बदला बदला था. आगे की पंक्ति में खड़ा यह शख्स समझ नहीं पा रहा था कि दुनिया की सबसे बड़ी फुटबॉल टीम को हुआ क्या है. आंखों के किनारे से झरते आंसू वह चाह कर भी रोक नहीं पा रहा था. उधर, निर्मम जर्मन टीम कभी मुलर, कभी क्लोजे, तो कभी खेदिरा के रूप में उस पर वज्रपात कर देती. वह वर्ल्ड कप की रिप्लिका कुछ और करीब भींच लेता.
पास खड़ा पांच छह साल का बच्चा उस बुजुर्ग का पोता है या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन इतना पक्का है कि वह पीढ़ियों को जोड़ने वाली तीसरी कड़ी जरूर है. बीच की पीढ़ी मैदान पर तार तार हो रही थी और तीनों पीढ़ियां इस ऐतिहासिक विध्वंस की अनचाही गवाह बन रही थीं. आंसू कप्तान डाविड लुइस के भी निकल रहे थे, इस बुजुर्ग के भी और वैसी ही पीली जर्सी पहने उस छोटे बच्चे के भी.
दुनिया भर में फुटबॉल से पहचाना जाने वाला देश ब्राजील भारी विडंबना और निराशा के बीच सिर पीट रहा था. साओ पाओलो में मैच देख रही 54 साल की मारीना गेनोजा ने कहा कि मैच से कोसों दूर सुपर स्टार नेमार शायद "उलटियां कर रहे हों", जब ब्राजील पूरी सदी के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका था
90 मिनट के मैच में नतीजा तो शायद 24वें मिनट में ही निकल आया था, जब जर्मनी ने तीसरा गोल ठोंक दिया और उसके बाद का वक्त ब्राजीली फैंस ने आंसू बहाते और बाकी की दुनिया ने सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाते हुए बिताया. साओ पाओलो में जहां गुस्साए दर्शकों ने बसों में आग लगा दी, वहीं कुछ लोग फेसबुक ट्विटर पर गम हलका करने लगे.
सबसे लोकप्रिय ब्राजील में ईसा मसीह की वह मूर्ति हुई, जो यूं तो बाहें फैलाए हुए है लेकिन फेसबुक, ट्विटर ने उसे शर्म से चेहरा ढंकते हुए दिखा दिया. कुछ तो और आगे भी निकल गए और उन्होंने इस मूर्ति की जगह बांहें फैलाए जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर लगा दी. अब इस जीत और हार में मैर्केल के योगदान को लेकर विशद चर्चा और बहस बाकी है.
लेकिन इंसानी जज्बात से शुरू हुई यह कहानी भला मैर्केल पर क्यों कर खत्म होने लगी. इसे तो हर हाल में उसी बुजुर्ग पर लौटना था, जिसकी पहचान मीडिया ने क्लोविस फर्नांडिस के तौर पर करता है और जो खुद को ब्राजीली टीम का 12वां सदस्य बताता है. भरे दिल और थके कदमों से स्टेडियम की सीढ़ियां उतरते हुए उसे एक लड़की मिल जाती है, जिसने माथे पर जर्मनी के राष्ट्रीय रंग वाली रिबन बांध रखी थी, जो जर्मनी की बड़ी फैन थी और जीत पर खुश भी.
यह बुजुर्ग उस वर्ल्ड कप के रिप्लिका को आखिरी बार देखता है. आंखें बंद कर इसे चूमता है और फिर उस जर्मन लड़की के हवाले कर देता है. किसी हारी हुई टीम के कप्तान की तरह नहीं, बल्कि रिले रेस में पास किए जाने वाले बेटन की तरह. कहता है, "इसे फाइनल मैच में स्टेडियम जरूर ले जाना. तुम तो देख ही रही हो. यह आसान नहीं. लेकिन मेरी शुभकामनाएं...तुम इसकी हकदार हो."
कौन कहता है कि फुटबॉल में दिल नहीं होता...
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी