सड़क से वर्ल्ड कप तक
२५ मार्च २०१४ब्राजील में स्ट्रीट चाइल्ड वर्ल्ड कप फुटबॉल हो रहा है, जिसमें फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे हिस्सा लेते हैं. सलमान इसमें अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाला है. मां बाप से झगड़े के बाद 13 साल की उम्र में उसने घर छोड़ दिया था. उसका कहना है, "पहले मैं आवारा था. ड्रग्स लेता था. स्कूल से भाग जाता था. मैं नशेड़ी बन गया था. मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा हूं. हम घर से दूर थे."
सलमान की तकदीर उस वक्त बदलनी शुरू हुई, जब आजाद फाउंडेशन ने उसे देखा. यह देश के मेट्रो शहरों में सड़कों पर रह रहे बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था है. सलमान का कहना है, "उन्होंने फुटबॉल में मेरी दिलचस्पी को आगे बढ़ाया. मैं स्ट्रीट चाइल्ड वर्ल्ड कप का हिस्सा बन कर खुश हूं."
वर्ल्ड कप के साथ साथ
ब्रिटेन की गैरसरकारी संस्था अमोस ट्रस्ट ने फीफा को इस बात के लिए राजी किया कि वर्ल्ड कप के साथ फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए भी वर्ल्ड कप का आयोजन किया जाए. इसकी शुरुआत 2010 में हुई. उसमें ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, निकारागुआ, यूक्रेन, भारत, फिलीपींस, तंजानिया और इंग्लैंड की टीमों ने हिस्सा लिया. भारत के बच्चों ने पिछला वर्ल्ड कप जीता और इसे इतनी कामयाबी मिली कि हर वर्ल्ड कप के साथ इसके आयोजन का फैसला किया गया. दूसरा स्ट्रीट चाइल्ड वर्ल्ड कप छह अप्रैल से रियो दे जनेरो में होने वाला है.
फुटपाथ पर रहने वाले दूसरे युवा उवैश अली का कहना है कि फुटबॉल की वजह से उसे सम्मान मिला है, "जब मैं फुटपाथ पर रह रहा था, कोई मुझे सम्मान से नहीं देखता था. मुझे कुछ नहीं पता था क्योंकि मैं अनपढ़ था." सलमान की तरह उवैश भी कराची के ओरंगी टाउन का है, जहां झुग्गियां हैं.
उवैश का कहना है, "जब मैंने घर छोड़ा तो मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. शहर में मुश्किलें भरी थीं. तब मुझे आजाद फाउंडेशन का पता चला, जिसने मेरी पढ़ाई की व्यवस्था की. अब मैं नौवीं में पढ़ता हूं. फुटबॉल खेलने के बाद मेरे नए दोस्त बने और अब लोग मेरी इज्जत करते हैं."
कैसे मिली ट्रेनिंग
स्ट्रीट चाइल्ड वर्ल्ड कप में हर टीम में सात खिलाड़ी होते हैं और वहां सड़कों पर फुटबॉल नहीं खेली जाती, बल्कि बाकायदा ग्राउंड में खेली जाती है. आयोजक इसके अलावा कुछ नामी गिरामी लोगों से मुलाकात की भी व्यवस्था करते हैं.
आजाद फाउंडेशन का कहना है कि टूर्नामेंट में पाकिस्तान को जगह मिलना आसान नहीं था. संगठन के इफतान मकबूल का कहना है, "यह एक अच्छा प्रयास था और हम चाहते थे कि पाकिस्तान की पहचान बने." फाउंडेशन का कहना है कि कराची में दो लाख बेघर बच्चे रहते हैं. इनमें से कई अलग अलग गैंग के चंगुल में फंस जाते हैं.
बच्चों के कोच अब्दुल रशीद का कहना है कि ऐसी पृष्ठभूमि वाले बच्चों को तैयार करना आसान नहीं था, "पहली बार जब हमने उनकी तरफ गेंद फेंकी, तो मुश्किल था. वे लोग ठीक से काम नहीं कर पा रहे थे लेकिन हमने प्रयास जारी रखा और आखिर में इन बच्चों की टीम तैयार कर ली."
उनका कहना है कि अब अगला संघर्ष ब्राजील में ट्रॉफी जीतने का होगा.
एजेए/एमजे (एएफपी)