शेरपाओं के साहस में दरार
९ मई २०१५सिर्फ 16 साल की उम्र में सागरमाथा (एवरेस्ट का नेपाली नाम) की चढ़ाई का रिकॉर्ड बनाने वाले तेम्बा तिशेरी पूरी तरह टूट चुके हैं. सुर्खियों में आने के बाद तिशेरी ने एवरेस्ट की चढ़ाई आयोजित कराने का कारोबार शुरू किया. लेकिन 25 अप्रैल को आए भूकंप ने उन्हें बर्बाद कर दिया. उनके तीन विदेशी मेहमान और दो नेपाली कर्मचारी मारे गए. तिशेरी रुंधे गले से कहते हैं, "जो कुछ मैंने बीते पांच साल में कमाया था, सब कुछ एक झटके में चला गया. मेरे सारे टेंट, क्लाइम्बिंग उपकरण और उन्हें वहां तक पहुंचाने में लगा पैसा, सब चला गया."
लोग उन्हें फिर से कारोबार खड़ा करने का हौसला दे रहे हैं, लेकिन तिशेरी कहते हैं, "दूसरा कारोबार करते हुए मुझे इस नुकसान से निकलने में बरसों लगेंगे. मैं यह भी नहीं जानता हूं कि क्या मैं कभी नुकसान भी भरपाई कर भी सकूंगा या नहीं."
2014 के हिमस्खलन और इस साल 25 अप्रैल के विनाशकारी भूकंप के बाद हुए हिमस्खलन को देखने के बाद अब कई शेरपा माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई को अलविदा कहने का मन बना रहे हैं. एवरेस्ट को बार बार जीतने वाले नीमा शेरपा कहते हैं, "आप एक बार भाग्यशाली हो सकते हैं, या फिर दूसरी बार, लेकिन मैं तीसरी बार जोखिम नहीं उठाना चाहता हूं."
बीते साल हिमस्खलन में नीमा शेरपा के सामने 19 लोगों की मौत हुई. नीमा अब पर्वतारोहण छोड़कर कोई और काम करना चाहते हैं. बीच बीच में वह खाड़ी के देशों में जाकर नौकरी करने की भी सोच रहे हैं. उन्हें पता है कि खाड़ी में उन्हें नौकरी के नाम पर मजदूरी या चौकीदारी करनी पड़ सकती है, लेकिन इसके बावजूद नीमा अब अपनी प्यारी चोटी माउंट एवरेस्ट से नजरें फेर रहे हैं.
नेपाल माउंटेनियरिंग एसोसिएशन के आंग तिशेरिंग लंबी सांस भरने के बाद कुछ पलों के लिए खामोश रहते हैं और फिर नजरें जमीन पर गाड़कर कहते हैं, "इन आपदाओं का नेपाल के पर्वतारोहण पर लंबे समय तक असर दिखेगा. उद्योग को इससे बाहर आने में बहुत ज्यादा समय लगेगा." नेपाल का पर्वतारोहण उद्योग बीते साल के घातक हिमस्खलन से उबरने की कोशिश कर ही रहा था कि भूकंप ने दस्तक दी. देश भर में अब तक 8,000 लोग मारे जा चुके हैं. भूकंप की थर्राहट से आए हिमस्खलन से माउंट एवरेस्ट के बेस कैम्प में भी 19 पर्वतारोही मारे गए.
नेपाल की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का और उसमें भी खास तौर पर एवरेस्ट की चढ़ाई का बड़ा योगदान है. लेकिन लगातार दूसरे साल टूटे कुदरत के कहर से अब यह उद्योग कांप रहा है. हर साल हजारों विदेशी हिमालय की चोटियों को फतह करने के लिए नेपाल आते हैं. पर्वतारोहण के सीजन में इन सैलानियों की वजह से एक नेपाली शेरपा गाइड करीब 7,000 डॉलर कमाता है. यह नेपाल की 700 डॉलर प्रतिवर्ष की औसत आय से कहीं ज्यादा है.
दोनों हिमस्खल पीक सीजन की शुरुआत में हुए. दोनों मौके ऐसे थे जब कई पर्वातारोही और शेरपा बेस कैम्प में ठहकर कर आगे की चढ़ाई की योजना बना रहे थे. आम तौर पर मई के दूसरे हफ्ते को पर्वतारोहण के लिए आदर्श समय माना जाता है. इस दौरान बढ़िया धूप रहती है और बारिश भी नहीं होती. क्लाइम्बिंग सीजन मई के अंत तक होता है, लेकिन हिमस्खलन के बाद किसी को नहीं पता कि ऊपर कैसे हालात हैं. शेरपा ऊपर जाकर रास्ते की मरम्मत करने से इनकार कर रहे हैं.
ओएसजे/एमजे (एपी)