1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

शिक्षा मौलिक अधिकार बनी, ऐतिहासिक क़ानून लागू

१ अप्रैल २०१०

शिक्षा को हर बच्चे का मौलिक अधिकार बनाने वाला क़ानून आज से लागू हो गया है. इसके तहत देश के क़रीब एक करोड़ बच्चों को सीधे लाभ होगा जो फ़िलहाल स्कूल नहीं जाते. प्रधानमंत्री ने किया राष्ट्र को संबोधित.

https://p.dw.com/p/Mjfr
सब को शिक्षित करने का वादातस्वीर: AP

मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा क़ानून के लागू होने के बाद राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी होगी कि 6 से 14 साल के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराई जाए. इस क़ानून से 92 लाख से ज़्यादा बच्चों को सीधे फ़ायदा होने की उम्मीद है.

Indischer Premierminister Manmohan Singh
सबकी शिक्षा करेंगे सुनिश्चितः मनमोहनतस्वीर: UNI

इस क़ानून के लागू होने के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि सरकार हर वर्ग के हर बच्चे को शिक्षा मुहैया कराने के लिए वचनबद्ध है. उन्होने कहा, "मैं चाहता हूं कि हर भारतीय बच्चे, लड़का हो या लड़की, उस तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचे. वह बेहतर ज़िंदगी का सपना देख पाए और उसे सच भी कर सके. "

केंद्र और राज्य सरकारों में इस क़ानून के कुछ पहलूओं पर बातचीत चल रही थी और सभी मुद्दों पर सहमति बनने के बाद यह गुरुवार से लागू हो गया. इसके लिए ज़रूरी धन को केंद्र और राज्य सरकारें 55-45 के अनुपात में साझा करेंगी.

शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने वाला क़ानून संसद ने पिछले साल पास किया था. यूपीए सरकार इस क़ानून के लागू होने को अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है. इस समय देश में 6 से 14 साल की उम्र के लगभग 22 करोड़ बच्चे हैं. माना जाता है कि इनमें से लगभग 92 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते.

शिक्षा का अधिकार क़ानून के लागू होने से अब संबंधित सरकार की ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करने की होगी कि हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा हासिल हो. इस क़ानून के अन्तर्गत निजी शिक्षण संस्थानों को भी कमज़ोर वर्ग के बच्चों के लिए 25 फ़ीसदी सीटें आरक्षित करनी होंगी.

Der indische Wissenschaftsminister Kapil Sibal
मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, अदालती मुकदमों का कानून पर असर नहींतस्वीर: DW

वित्त आयोग ने इस क़ानून के लिए राज्य सरकारों को 25 हज़ार करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं. सरकार का अनुमान है कि अगले पांच सालों में क़ानून को पूरी तरह अमल में लाने के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी.

हालांकि कुछ स्कूल पहले ही इस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं. उन्होंने क़ानून को असंवैधानिक बताया है और ऐसे निजी शिक्षण संस्थानों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है जिन्हें किसी तरह की मदद हासिल नहीं है. हालांकि मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल का कहना है कि मुक़दमे का क़ानून के लागू होने पर असर नहीं होगा.

स्कूल मैनेजमेंट कमेटी या स्थानीय प्रशासन को पढ़ाई न कर रहे और 6 साल से ज़्यादा उम्र के बच्चों की पहचान करनी होगी और उन्होंने उचित कक्षा में दाख़िला दिलाना होगा. क़ानून में कहा गया है कि कोई भी स्कूल छात्र को एडमिशन देने से इनकार नहीं कर सकता और हर स्कूल में प्रशिक्षित अध्यापकों की ज़रूरत होगी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार