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शशि थरूर यानी विवाद मंत्री

१९ अप्रैल २०१०

शशि थरूर के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस ने राहत की सांस ली. पार्टी में थरूर के कट्टर विरोधी माने जाने वाले नेताओं के चेहरे पर भी मुस्कान लौटी. थरूर का राजनीति में 11 महीने का सफर काफ़ी विवादित रहा.

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विवाद मंत्रीतस्वीर: AP

कभी संयुक्त राष्ट्र महासचिव की कुर्सी पर बैठने का सपना देखने वाले शशि थरूर 2009 में अंतरराष्ट्रीय राजनीति से भारतीय राजनीति में आए. केरल से लोकसभा चुनाव जीतकर वह संसद में पहुंचे और फिर विदेश राज्यमंत्री बने. 54 साल के थरूर से कांग्रेस को भी कई उम्मीदें थी लेकिन पहला ही झटका सितंबर में लगा.

मंदी में बेहताशा सरकारी खर्च को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं से विमान के इकोनॉमी क्लास में सफर करने की अपील की. सोनिया गांधी और पार्टी के कई बड़े नेताओं ने ख़ुद ऐसा किया लेकिन थरूर ने खुलकर इसका विरोध कर डाला. थरूर ने तब कहा था कि इकोनॉमी क्लास से सफ़र करना मुश्किल है क्योंकि यह 'भेड़ बकरियों' के सफ़र का क्लास होता है.

इस बयान के बाद अशोक गहलोत जैसे बड़े नेताओं ने थरूर के ख़िलाफ कार्रवाई की मांग की लेकिन कुछ नहीं हुआ. अक्टूबर और नवंबर शांति से बीते लेकिन दिसंबर फिर विवाद लेकर आया. थरूर सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर भारतीय विदेश नीति की चर्चा करते नज़र आए, इससे विदेश मंत्री एसएम कृष्णा नाराज़ हुए. थरूर को झिड़की लगी और मामला शांत हो गया.

लेकिन वह विवाद ही क्या जो थरूर का दामन छोड़ दे. अगले ही महीने यानी जनवरी में नए नवेले विदेश राज्यमंत्री ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आलोचना कर दी. अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर हो रहे एक सेमिनार में थरूर ने कहा कि नेहरू के समय की भारतीय विदेश नीति सिर्फ नैतिकता का नमूना थी." उस समय की विदेश नीति नैतिकता की रनिंग कमेंट्री थी."

इस दौरान थरूर मीडिया पर बयान को ग़लत ढंग से पेश करने का आरोप लगाते हुए बच निकले. तीन महीने बाद आईपीएल की धूम शुरू हुई. इस बार थरूर कुछ नहीं बोले. विवाद ललित मोदी के बयान से शुरू हुआ और शशि थरूर का इस्तीफ़ा लेते हुए इनकम टैक्स विभाग के दफ़्तर तक पहुंचा. मोदी ने कोच्चि टीम में शशि थरूर की हिस्सेदारी होने की बात कही थी.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: आभा मोंढे