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शरोन को आखिरी विदाई

Frank Bettenfeld१३ जनवरी २०१४

इस्राएल ने संसद भवन के सामने राजकीय सम्मान के साथ विवादास्पद पूर्व प्रधानमंत्री आरिएल शरोन को अंतिम विदाई दी. आठ साल कोमा में रहने के बाद शनिवार को 85 वर्षीय शरोन का देहांत हो गया था. उन्हें उनके रैंच पर दफनाया गया.

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तस्वीर: Reuters

पहले सेना के जनरल के रूप में और फिर राजनीतिज्ञ के रूप में आरिएल शरोन ने दशकों तक इस्राएल के इतिहास में अहम भूमिका निभाई. नजदीकी लोगों में अरिक के नाम से पुकारे जाने वाले शरोन को अक्सर बाज, राजनेता और हार्डलाइनर पुकारा गया है. उनकी अंग्रेजी आत्मकथा का नाम 'वॉरियर' यानि योद्धा था. नजरिए के हिसाब से उनपर लोगों की राय थी. सराहना से लेकर नफरत तक. बहुत से देशवासियों के लिए वे जोम किपुर युद्ध के हीरो थे, जबकि बहुत से फलीस्तीनियों के लिए वे सबरा और शतीला के जल्लाद थे.

आरिएल शरोन का जन्म 1928 में तेल अवीव के निकट पूर्वी यूरोप के यहूदियों के परिवार में हुआ था. उनका जीवन इस्राएल के इतिहास के साथ करीबी तौर पर जुड़ा है. 1948 में आजादी की लड़ाई में वे एक इंफेंट्री ब्रिगेड में अरबों के खिलाफ लड़े. 1953 में उन्होंने फलीस्तीनियों के हमलों के बाद एक जवाबी टुकड़ी बनाई. 1973 में जोम किपुर की लड़ाई में टैंक टुकड़ी के साथ स्वेज नहर पार करने की उनकी साहसिक कार्रवाई मिस्र पर जीत की वजह बनी.

सेना से राजनीति

इस्राएल के दूसरे कई राजनीतिज्ञों की तरह शरोन ने सेना में अपनी नौकरी का इस्तेमाल राजनीतिक करियर के लिए किया. वे कंजरवेटिव लिकुद पार्टी के लिए संसद में चुने गए और देश के कृषि मंत्री बने. बाद में उन्होंने रक्षा मंत्रालय भी संभाला. इसी दौरान लेबनान पर अतिक्रमण हुआ जिसका लक्ष्य वहां से फलीस्तीनी मुक्ति संगठन पीएलओ को भगाना था. इस्राएल के साथ जुड़े एक ईसाई मिलिशिया ने पीएलओ के हटने के बाद हेरूत में सबरा और शतीला के शरणार्थी शिविरों पर हमला किया. छापामारों ने सैकड़ों फलीस्तीनियों को मार डाला. इस्राएल के नियंत्रण वाले इलाके में हुए जनसंहार की सारी दुनिया में निंदा हुई.

Ariel Sharon Trauerfeier Beisetzung Israel Jerusalem
तस्वीर: Reuters

इस्राएल के एक जांच आयोग ने इस खूनखराबे के लिए शरोन को भी दोषी माना. 1983 में उन्हें रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा लेकिन वह बिना किसी विभाग के मंत्री बने रहे. बाद में बेल्जियम में शरोन के खिलाफ जांच की कार्रवाई शुरू हुई लेकिन उसे आगे नहीं बढ़ाया गया. उस समय बेल्जियम के कानून में अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत ऐसी जांच संभव थी.

लेकिन इन सबसे उनके राजनीतिक करियर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. बाद के सालों में वे विदेश, व्यापार और निर्माण मंत्री रहे. 2001 में उन्हें देश का प्रधानमंत्री चुना गया. पार्टी के अंदर हुए झगड़े के बाद उन्होंने 2005 के अंत में प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और लिकुद पार्टी छोड़कर कदीमा पार्टी का गठन किया.

फलीस्तीनी राज्य का विरोध

आरिएल शरोन फलीस्तीनियों के मामले में समझौता न करने वाले हार्डलाइनर रहे. उन्होंने इस्राएल की सुरक्षा को हमेशा अपना मुख्य मकसद बताया. वे फलीस्तीन राज्य के समर्थक नहीं थे, इसलिए स्वायत्तता की वार्ता से हमेशा उन्होंने दूरी बनाए रखी. इस्राएलियों पर फलीस्तीनियों के कई आत्मघाती हमलों के बाद शरोन ने इसके लिए फलीस्तीनी राष्ट्रपति यासिर अराफात को जिम्मेदार ठहराया. अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद उन्होंने अराफात को उनके दफ्तर में नजरबंद करने के आदेश दिए.

शरोन उकसावे की कार्रवाई करने से भी पीछे नहीं हटते थे. उन्होंने येरूशलेम ओल्ड सिटी के अरब हिस्से में एक फ्लैट में रहना शुरू कर दिया. सितंबर 2000 में उन्होंने खुलेआम टेंपल माउंट का दौरा किया जहां इस्लामी पवित्र मस्जिद है. उसके बाद उपद्रव भड़क उठा. उग्र प्रदर्शन दूसरे इंतिफादा में बदल गया, जो साढ़े चार साल चला.

बाद में वे अपने अड़ियल रुख से पीछे हटे. लंबे समय तक बाज कहे जाने वाले शरोन ने गजा पट्टी से इस्राएली सैनिकों को हटा लिया और वहां की यहूदी बस्तियों को खाली करवा दिया. अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा कि यहूदी और अरब एक दूसरे के साथ रह सकते हैं. जर्मनी में इस्राएली राजदूत रहे एवी प्रिमोर का कहना है कि इसके बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे. उन्होंने एक यथार्थवादी के रूप में बदलती स्थिति को स्वीकार किया.

रिपोर्ट: आंद्रेयास गोरजेव्स्की/एमजे

संपादन: ईशा भाटिया

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