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शरणार्थी समस्या सिर्फ राष्ट्रीय समस्या नहीं

२४ अगस्त २०१५

जर्मनी में सेक्सनी प्रदेश के हाइडेनाऊ में तीन दिनों तक शरणार्थियों के खिलाफ उग्र दक्षिणपंथियों के हिंसक प्रदर्शन के बाद जर्मन अखबारों ने शरणार्थियों के मुद्दे सरकारी प्रतिक्रिया की आलोचना की है.

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तस्वीर: Getty Images/M. Rietschel

मनहाइम से प्रकाशित दैनिक मनहाइमर मॉर्गेन ने जर्मनी और यूरोप में गहराती शरणार्थी समस्या के बारे में लिखा है, "बड़े पैमाने पर हो रहा आप्रवासन सिर्फ राष्ट्रीय समस्या नहीं है बल्कि यूरोप में लोगों की एकजुटता को भी खतरे में डाल रहा है. इसके अलावा समस्या का यूरोपीय पहलू भी है. उन राज्यों पर आक्रोश जो शरणार्थियों को पनाह देने से इंकार कर रहे हैं, हालांकि उचित है लेकिन वह समस्या से ध्यान हटाता है. यदि यूरोपीय संघ सचमुच मूल्यों वाला संघ है जैसा कि ब्रसेल्स में कहा जाता है, तो इस समय उसकी जड़ खोदी जा रही है. यूरोप की एकता को ग्रीस संकट से खतरा नहीं है बल्कि असली खतरा शरणार्थियों की अनसुलझी समस्या है."

और शरणार्थियों की समस्या जर्मनी में अपना विकराल रूप दिखा रही है. आसान शरणार्थी कानूनों और आर्थिक खुशहाली के कारण ज्यादातर शरणार्थी जर्मनी आना चाहते हैं जबकि देश में उग्र दक्षिणपंथियों को विदेशी विरोध को हवा देने का नया बहाना मिल गया है. अलग अलग शहरों में शरणार्थियों के रहने के लिए बनाए गए घर जलाए जाने की घटनाएं हुई हैं तो सेक्सनी के हाइडेनाऊ में पिछले कई दिनों से हिंसक विरोध प्रदर्शन किए गए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

राष्ट्रीय दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने साइटुंग ने हिंसक प्रदर्शनों पर टिप्पणी की है, "पूर्वी जर्मनी में शरणार्थियों और आपात रिहाइशों के खिलाफ विदेशियों से विद्वेष और नस्लवाद का सिर उठाता चेहरा शर्मनाक है. नशे में धुत भीड़ शरणार्थियों के अलावा उन्हें मदद करने वाले और सहानुभूति रखने वाले जर्मनों को भी धमकाना चाहती है."

श्वेबिशे साइटुंग का कहना है, "फिर भी उस समय रॉश्टॉक में हुई घटना से बहुत कुछ अलग है. मंत्री और मुख्यमंत्री हाइडेनाऊ में घटी घटना पर क्षोभ व्यक्त कर रहे हैं. पुलिस उग्रदक्षिणपंथियों के साथ भाईचारा दिखाने के बदले शरणार्थियों को सुरक्षा दे रही है. शरणार्थियों का मुद्दा समाज के केंद्र में आ गया है और हर कोई उस पर बहस कर रहा है. यह राजनीति की उपलब्धि नहीं है बल्किन नागरिक समाज की है जो 25 साल पहले नहीं था. शरणार्थियों की मदद करने वालों को इससे मदद मिलेगी कि बर्लिन में इस पर चर्चा हो कि हम भविष्य में शरणार्थियों के साथ किस तरह जीना चाहते हैं, जी सकते हैं."

कोलोन से प्रकाशित दैनिक कोएल्नर श्टाट अनसाइगर ने शरणार्थियों के मुद्दे पर जर्मनी की जिम्मेदारी की बात की है. अखबार लिखता है, "बहुत से लोग शरणार्थियों को शर्मनाक समझते हैं. दरअसल इसका उल्टा सही है. हम शर्मनाक हैं. धनी उत्तर में रहने वाले हम लोग मुफ्तखोर हैं, एक लाइफस्टाइल जो प्राकृतिक संसाधनों की लूट, पर्यावरण को नुकसान, पिछड़ेपन और दुनिया के कई हिस्सों की गरीबी की कीमत पर खरीदा गया है. कोई ये दावा भी नहीं कर सकता कि इसके लिए पश्चिमी देशों की गलतियां जिम्मेदार नहीं हैं कि आज सबसे ज्यादा शरणार्थी सीरिया से आ रहे हैं. सचमुच हम सबको शरण नहीं दे सकते, लेकिन हमें पहले से ज्यादा प्रयास करने होंगे, और उसके लिए अधिक खर्च भी करना होगा."

श्टुटगार्ट के दैनिक श्टुटगार्टर साइटुंग ने शरणार्थियों के मुद्दे पर चांसलर अंगेला मैर्केल के रवैये की आलोचना की है. अखबार लिखता है, "चांसलर एकबार फिर चुप हैं. सेक्सनी में हिंसा पर चांसलर की ओर से कोई दो टूक शब्द नहीं आया है जबकि इस बार आम नागरिकों ने भी इसमें हिस्सा लिया है. यह वह भंडार है जिससे उग्र दक्षिणपंथी समर्थन जुटाते हैं. इसलिए उनकी ओर से स्पष्ट संकेत मिलना चाहिए कि वे किस पक्ष में हैं, यानि शरणार्थियों के पक्ष में जिन्हें डर और हमले के बिना सांस लेने की फुर्सत चाहिए."

कोबलेंस से प्रकाशित होने वाले राइन साइटुंग ने प्रादेशिक सरकार की आलोचना करते हुए लिखा है, "परायों से विद्वेष के खिलाफ सेक्सनी का संघर्ष आधे मन का है. विदेशियों के साथ कम अनुभव वाले और असुरक्षित महसूस करने वाले निवासियों को स्पष्ट संदेश देने के बदले सेक्सनी की सीडीयू पार्टी शरणार्थियों को रोकने के लिए सीमा पर कंट्रोल शुरू करने की मांग कर रही है." और श्टाउबिंगेन के दैनिक श्टाउबिंगर टागब्लाट ने लिखा है, "गृहमंत्री थोमस डी मेजियेर ने कहा था कि कानून के राज्य की सारी ताकत के साथ विदेशी विरोधी हिंसा का मुकाबला किया जाएगा. हाइडेनाऊ में ऐसा नहीं लग रहा था."

एमजे/ओएसजे (एएफपी)