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शरणार्थी संकट पर यूरोप में फूट

४ सितम्बर २०१५

अभूतपूर्व शरणार्थी संकट का सामना करते यूरोप में फूट दिखाई पड़ने लगी है. ब्रिटेन के अड़ियल रुख के चलते जर्मनी ने विवादित कोटा सिस्टम की बात पर जोर दिया.

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तस्वीर: Reuters/L. Foeger

यूरोपीय संघ के देशों के प्रतिनिधि लाखों आप्रवासियों के समुचित इंतजाम के लिए समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है. शुक्रवार को हंगरी के नेता यूरोपीय संघ के पूर्वी देशों स्लोवाकिया, चेक गणराज्य और पोलैंड के नेताओं से मिलेंगे. चारों एक गुट के तौर पर यूरोपीय संघ के सामने अपने तर्क रखना चाहते हैं.

चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में होने वाली इस बैठक में हंगरी के शरणार्थी संकट पर चर्चा होगी. हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हजारों विस्थापित जमा हुए हैं. इनमें से ज्यादातर किसी तरह पश्चिमी यूरोप पहुंचना चाहते हैं. हंगरी ने हजारों शरणार्थियों को ऑस्ट्रिया और जर्मनी आने से रोका हुआ है. हंगरी की पुलिस पर बल प्रयोग करने के आरोप लग रहे हैं. देश सर्बिया से लगी अपनी सीमा पर ब्लेडों वाली बाड़ भी लगा रहा है.

Ungarn Flüchtlinge am Bahnhof in Bicske
बुडापेस्ट का रेलवे स्टेशनतस्वीर: Reuters/L. Foeger

चेक गणराज्य ने यूरोपीय संघ से मांग की है कि वे आर्थिक परेशानी में घिरे आप्रवासियों और हिंसा के चलते भागे विस्थापितों में फर्क करे. स्लोवाकिया मुस्लिम देशों से आने वाले लोगों को पनाह देने से इनकार कर रहा है. हंगरी भी मुसलमानों को शरण देने से हिचकिचा रहा है. स्लोवाकिया, पोलैंड के साथ मिलकर अपनी बात यूरोपीय संघ के सामने रखना चाहता है.

यूरोपीय संघ के पूर्वी देशों के विसेग्राड गुट की प्राग में होने वाली बैठक यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों की बैठक के समानान्तर चलेगी. विदेश मंत्री लक्जेमबर्ग में मिलेंगे. यूरोपीय संघ के नेता आप्रवासियों के मूल देश और उनकी आगामी यात्रा पर चर्चा करेंगे. बैठक में डबलिन समझौते में बदलाव करने की बात भी हो सकती है. डबलिन समझौते के मुताबिक विस्थापित यूरोपीय संघ के जिस देश में सबसे पहले पहुंचेंगे, वही उनकी जिम्मेदारी उठाएगा.

यूरोपीय संघ के अधिकारी ग्रीस के कॉस द्वीप में भी बातचीत करेंगे. बीते हफ्तों में कॉस में हजारों की संख्या में विस्थापित पहुंचे हैं. यूरोपीय आयोग के उपाध्यक्ष फ्रांस टिमरमान्स ने स्थिति को "अभूतपूर्व मानवीय और राजनैतिक संकट" करार दिया है.

इस बीच ऑस्ट्रिया के अधिकारी ट्रक कंटनेटर में मारे गए 71 लोगों के शव परीक्षण के नतीजे सामने रखने वाले हैं. बीते हफ्ते ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना के पास हाइवे पर खड़े एक ट्रक में 71 लोगों के शव मिले. ये सभी विस्थापित थे जिन्हें कबूतरबाजों ने कंटेनर में छुपाकर यूरोपीय संघ के भीतर भेजने की कोशिश की. इस घटना ने यूरोप को खासा विचलित किया. कई देशों ने कबूतरबाजों के खिलाफ अभियान छेड़ा है.

ब्रिटेन के सुर बदले

गुरुवार को तुर्की के तट पर तीन साल के बच्चे का शव मिलने के बाद दुनिया भर में यूरोप के शरणार्थी संकट की चर्चा हो रही है. बच्चे की तस्वीर सोशल नेटवर्किंग साइट्स के साथ ही मीडिया में भी खूब दिखाई गई. दुनिया भर के कई अखबारों ने बेहद शोक भरी हेडलाइन के साथ सवाल किया कि, "क्या यही मानवता है?"

Ungarn Flüchtlinge am Bahnhof in Bicske
जर्मनी आना चाहते हैं ज्यादातर विस्थापिततस्वीर: Reuters/L. Foeger

ब्रिटेन अब तक विस्थापितों को अपने यहां आने से रोकता रहा है. यूरोपीय संघ के दवाब के बावजूद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री शरणार्थियों के मुद्दे पर किसी भी तरह का सहयोग करने से किनारा करते रहे. यही वजह है कि यूरोपीय संघ में शरणार्थी संकट पर ब्रिटेन के रुख को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. लेकिन गुरुवार को सीरियाई बच्चे की तस्वीर सामने आने के बाद ब्रिटिश नेताओं को शर्मिंदगी महसूस हुई. ब्रिटेन के कुछ अखबारों ने अपनी ही सरकार की खिंचाई की. यूरोपीय संघ के अलग होने की मांग करने वाली ब्रिटेन की यूकिप पार्टी के एक वरिष्ठ नेता तक ने ब्रिटेन से अपने भीतर झांकने को कहा.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डैविड कैमरन के मुताबिक बच्चे की उस तस्वीर ने उन्हें विचलित किया है. ब्रिटिश मीडिया के मुताबिक कैमरन अब सीरिया के यूएन कैम्प से शरणार्थियों को अपने यहां लाने का मन बना रहे हैं. हालांकि इस बारे में अभी तक कोई योजना सामने नहीं रखी गई है.

ब्रिटेने की सोच में यह यू टर्न असल में जर्मन चासंलर अंगेला मैर्केल और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद की मुलाकात के बाद आया है. मैर्केल और ओलांद ने यूरोपीय संघ के हर देश के लिए बाध्यकारी शरणार्थी कोटा लागू करने के प्रस्ताव पर सहमति जताई है. अगर इस पर अमल हुआ तो यूरोपीय संघ का सदस्य होने के नाते ब्रिटेन इससे किनारा नहीं कर पाएगा. बर्लिन का अनुमान है कि इस साल आठ लाख लोग जर्मनी में शरण का आवेदन देंगे. इनमें से ज्यादातर मध्य पूर्व और अफ्रीका से भागकर यूरोप आने वाले लोग हैं.

मानसी गोपालकृष्णन/ओएसजे