बहुत मुश्किल से ही यूरोपीय संघ के वर्तमान अध्यक्ष लक्जेमबर्ग ने सभी सदस्यों को मोटे तौर पर एक सहमति पर पहुंचने के लिए तैयार किया था. सदस्य देशों के गृह मंत्री लगातार गहराते जा रहे शरणार्थी संकट पर एकजुट होकर किसी आम राय पर पहुंचने से काफी दूर दिख रहे हैं. ईयू में प्रवेश करने वाले लोगों के न्यायोचित वितरण से संबंधित कोई भी फैसला अक्टूबर तक के लिए स्थगित करना पड़ा है. कई पूर्वी यूरोपीय देशों के अलावा ब्रिटेन भी इसमें अड़चन खड़ी कर रहा है.
इस बैठक से सिर्फ एक "राजनैतिक समझौता" निकल कर आया और वह भी बहुत सार्थक नहीं लगता. इससे शरणार्थियों की मुश्किलें, उनके मददगारों या बॉर्डर पर नियंत्रण का काम संभाल रहे लोगों की आज की सच्चाई पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता. जर्मन गृहमंत्री थोमस दे मेजियेर ने कहा, "यह हमारे लिए पर्याप्त नहीं है." बॉर्डर कंट्रोल के साथ मेजियेर अपने यूरोपीय साझेदारों पर जिस तरह का दबाव बनाना चाहते थे, जाहिर है वह पर्याप्त नहीं रहा. हालांकि ज्यादातर ईयू सदस्य देश शरणार्थियों के पुनर्वितरण के पक्ष में हैं लेकिन अनिवार्य कोटा लागू करने के पक्ष में नहीं.
कहीं कोई समाधान नहीं
ग्रीस, इटली और हंगरी से आने वाले करीब 1,60,000 शरणार्थियों की पहली पुनर्वितरण योजना में दो साल लगेंगे. जाहिर है कि इससे सीमाओं पर बरकरार वर्तमान नाटकीय स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. इस बीच कितने ही लोग बाल्कन रूट से जर्मनी पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे सैकड़ों, हजारों लोगों को कैसे और कहां रखा जाए, इस चुनौती पर ब्रसेल्स की ओर से कोई जवाब नहीं मिल पाया है. मंत्रियों ने ईयू की बाहरी सीमाओं की बेहतर सुरक्षा की मांगें लगातार उठाईं जिनका मतलब ये निकाला जा सकता है कि कम से कम शरणार्थियों को प्रवेश करने दिया जाए.
गृह मंत्रियों की इस बैठक के बाद भी कड़वी सच्चाई यही है कि यूरोपीय शरणार्थी नीति में कोई वास्तविक विकास नहीं हुआ है. लक्जेमबर्ग आयोग के अध्यक्ष जौं आसेलबॉर्न ने इस बैठक का सार इन शब्दों में बखूबी बताया है: अगर अब यूरोप साथ नहीं आता है, तो यही यूरोप के टुकड़े टुकड़े कर देगा.