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पूजा स्थल पर महिलाओं से भेदभाव का सवाल

विश्वरत्न २७ जनवरी २०१६

सदियों पुराने शनि शिंगणापुर मंदिर और उससे जुड़ी सदियों पुरानी परंपरा में वहां महिलाओं के प्रवेश की मनाही रही है. जानिए कैसे और क्यों महिलाओं का एक दल इसे धता बताकर मंदिर के गर्भगृह तक जाना चाहता है.

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तस्वीर: Fotolia/milkovasa

लगभग चार सौ साल पुराने शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश करने की महिलाओं की कोशिश नाकाम हो गयी है. दरअसल इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. कोशिश करने वाली लगभग 400 महिलाओं को पुलिस ने हिरासत में लिया और बाद में चेतावनी देकर छोड़ दिया. पूजा का अधिकार पाने के लिए गणतंत्र दिवस का दिन चुनने वाली कुछ प्रदर्शनकारी महिलाएं अभी भी हिरासत में हैं.

महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगी पाबंदी के खिलाफ संभवतः यह अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन है. यह महिला कार्यकर्ताएं मंगलवार को ही पुणे से बसों में सवार रवाना हुई थीं, जिन्हें शिंगणापुर से काफी पहले पुलिस ने रोक लिया. प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि वे पूजा स्थलों पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ हैं. अहमदनगर के शिंगणापुर में स्थित इस प्रतिष्ठित शनि मंदिर में महिलाओं को भीतरी हिस्से में प्रवेश पर रोक है.

क्यों बरपा आंदोलन

दरअसल पिछले साल पुणे की ही एक महिला ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर शनि देव को तेल चढ़ा दिया था. महिलाओं के लिए वर्जित माने जाने वाले इस कृत्य के बाद मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर का शुद्धिकरण करवाया था. बाद में पूजा करने वाली महिला ने तो माफ़ी मांग ली, पर शुद्धिकरण को लेकर महिलाओं ने काफी आक्रोश व्यक्त किया. पिछले महीने भी रणरागिनी ब्रिगेड की 4 महिलाएं शनिदेव की पूजा करना चाहती थीं, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई थी. ब्रिगेड की महिलाओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन मंदिर प्रशासन ने महिलाओं के मूर्ति पर तेल अपर्ण नहीं करने देने की परंपरा को कायम रखा.

अभिनेत्री और भाजपा सांसद हेमा मालिनी सहित कई महिला कार्यकर्ताओं ने लिंग के आधार पर मंदिरों में हो रहे भेदभाव को गलत ठहराया था. महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को मानव निर्मित नियम बताने वाली हेमा मालिनी मानती है कि मंदिरों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव नहीं होना चाहिए. इस आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर भाग ले रही भूमाता ब्रिगेड की अध्‍यक्ष तृप्ति देसाई ने हर हाल में प्रवेश करने की घोषणा की थी, इसके लिए उन्होंने एक गुप्त योजना भी बनायी थी लेकिन अब तक कोई योजना उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिला पाई है.

पुलिस का बंदोबस्त

क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका को देखते हुए पुलिस ने पुख्ता इंतजाम किये हैं. किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए भरी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है. मंदिर के आसपास महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती की गयी है. पुलिस ने मंदिर प्रशासन और स्थानीय निवासियों के साथ मिलकर प्रदर्शनकारी महिलाओं को रोकने की व्यवस्था की है. मंदिर के आसपास पुलिस की कड़ी निगरानी है. शनिदेव के चबूतरे पर आंदोलनकारी महिलाएं ना चढ़ सकें इसलिए तीन घेरों में सुरक्षा व्यवस्था की गई है. पहले घेरे में मंदिर सुरक्षा रक्षक हैं. दूसरे घेरे में मंदिर प्रशासन द्वारा मंगवाए गए निजी सुरक्षा रक्षक और तीसरे घेरे में पुलिस के जवान. मंदिर के बाहर भी पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं और शनिदेव मंदिर की तरफ आने वाली मुख्य सड़क पर पुलिस ने नाकाबंदी की है. इस आशंका के चलते कि प्रदर्शनकारी महिलायें रात या दूसरे दिन भी प्रवेश की कोशिश कर सकती हैं, पुलिस हर अहम ठिकाने पर नाकाबंदी कर गाड़ियों की चेकिंग कर रही है.

परंपरा के साथ भी लोग

महिला प्रदर्शनकारियों की आलोचना करने वालों और परंपरा के समर्थकों की कमी नहीं है. मंदिर के पुजारियों तथा मंदिर के संचालक बोर्ड के सदस्यों का कहना है कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जायेगा. मंदिर प्रशासन को स्थानीय लोगों का पूरा सहयोग मिल रहा है. स्थानीय महिलाएं भी मंदिर प्रशासन के साथ हैं. प्रदर्शनकारी महिलाओं से मंदिर की सुरक्षा के लिए स्थानीय महिलाओं की मदद ली जा रही है. मंदिर के चारों ओर महिलाओं का एक सुरक्षा घेरा तैयार है जो प्रदर्शनकारी महिलाओं को मंदिर प्रवेश से रोकेगा. प्रवेश पर रोक को बरकरार रखने के पक्षधर स्थानीय निवासियों का कहना है कि 'भगवान शनि के प्रचंड प्रकोप से' महिलाओं को हानि पहुंच सकती है.

महाराष्ट्र की ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे भी परम्परा को बनाये रखने की पक्षधर हैं. उनका कहना है कि इसमें महिलाओं के अपमान जैसी कोई बात नहीं है. उनका मानना है कि सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ा नहीं जा सकता. मंदिर के गवर्निंग बोर्ड की अध्यक्ष अनिता शेटे ने भी रोक को बनाये रखने का समर्थन किया है. मंदिर के गवर्निंग बोर्ड में पहली महिला अध्यक्ष के रूप में चुनी गई अनिता शेटे का कहना है कि उनके कार्यकाल में परंपरा नहीं टूटेगी.