विश्व धरोहर: हाजिया सोफिया
आधुनिक तुर्की की नींव रखने वाले मुस्तफा केमाल अतातुर्क ने 1934 में इस्तांबुल की इस मशहूर इमारत को संग्रहालय बना दिया. 1985 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया.
छठी शताब्दी में रोमन राजा के शासनकाल में 10 हजार से ज्यादा लोगों ने मिल कर एक चर्च बनाया जो आगे चलकर दुनिया में वास्तुकला के अद्धुत नमूने के रूप में जाना गया.
हाजिया सोफिया को बनाने में करीब 150 टन सोना लगा. तब इसकी संरचना ज्यादातर समतल थी. 1453 में ओटोमन शासकों के सत्ता में आने के साथ ही इस चर्च को एक मस्जिद बना दिया गया और इसके चारों ओर मीनार जैसी संरचनाएं बनाई गईं.
अतातुर्क ने 1934 में उठाए गए अपने सुधारवादी कदमों के तहत बहुत सावधानी से यहां खुदाई करवाई. इस तरह सदियों पुरानी वास्तुकला को फिर उजागर किया गया.
यह जगह इस मायने में बेहद खास है कि यहां इस्लाम और ईसाइयत साथ साथ दिखती है. यहां आने वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास को सहेजकर रखा गया है.
फिलहाल इस विश्व धरोहर में प्रार्थना सभाएं आयोजित नहीं होतीं. साल 2006 में जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने यहां का दौरा किया तो उन्होंने भी इस मनाही को स्वीकार किया.
हाजिया सोफिया इस्तांबुल में मशहूर नीली मस्जिद के पास ही स्थित है. इस पूरे इलाके को मिलाकर ब्लू क्वार्टर कहा जाता है.
हाजिया सोफिया का समृद्ध इतिहास के बावजूद आज उसके भविष्य पर सवालिया निशान लगाए हुए हैं. कुछ लोग इसे पहले की तरह मस्जिद बनते देखना चाहते हैं तो कुछ चर्च.
1985 से लेकर अब तक रियासत और विरासत की कहानी बयां करती यह इमारत दुनिया की एक धरोहर है.