विकास की राह में धर्मांतरण का रोड़ा
१८ दिसम्बर २०१४ताजमहल के लिए मशहूर शहर आगरा इन दिनों धर्मांतरण के मुद्दे की वजह से सुर्खियों में है. पिछले दिनों गरीब तबके के लगभग 100 लोगों का धोखे से धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें हिन्दू बना दिया गया. भारतीय मीडिया ने खबर दी कि कूड़ा बीनने वाले इन लोगों को वोटर आईकार्ड और सस्ते राशन कार्ड देने का झांसा दिया गया "और वे खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं" क्योंकि धर्म बदलने के बाद भी उन्हें कूड़ा बीनना पड़ रहा है और उनके सामाजिक ढांचे में कोई बदलाव नहीं आया है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि कट्टर हिन्दू नेता की रही है, जिसकी वजह से धर्मांतरण का यह मुद्दा और भी संवेदनशील हो गया है. हालांकि इस साल का चुनाव उन्होंने भ्रष्टाचार खत्म करने, विदेशों में पड़े काले धन को वापस लाने और विकास के एजेंडे पर लड़ा. लेकिन धर्म से जुड़े इस मुद्दे की वजह से सरकार की किरकिरी होने लगी तो उन्होंने नेताओं से लक्ष्मण रेखा नहीं लांघने की अपील की है, "हमारी पार्टी का एजेंडा विकास और सुशासन है और हम इससे नहीं डिगेंगे. हमें अपनी प्रतिबद्धता नहीं छोड़नी है."
25 दिसंबर का विवाद
लेकिन सुशासन के इस तर्क को सरकार के उस फैसले से झटका लगा है, जिसमें 25 दिसंबर को भारत भर के स्कूलों में सुशासन के लिए लेख लिखने की प्रतियोगिता रखी गई है. बीजेपी यह काम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में करने की बात कर रही है, जिनका जन्मदिन 25 दिसंबर है. लेकिन यह क्रिसमस का भी दिन है और भारत में राजपत्रित अवकाश है. आम तौर पर इस दिन स्कूल कॉलेज और सरकारी प्रतिष्ठान बंद रहते हैं. कुछ इसी तरह का काम इस साल 15 अगस्त को भी किया गया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने पूरे देश के स्कूलों को खुला रखा गया था.
आगरा की तरह उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ शहर अपनी विश्वस्तरीय यूनिवर्सिटी की वजह से जाना जाता है. लेकिन इसी 25 दिसंबर को वहां भी धर्मांतरण का आयोजन कराने की रिपोर्टें हैं. धर्मांतरण में लगे कुछ नेताओं को गिरफ्तार किया गया है और अलीगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक प्रकाश का कहना है, "इस कार्यक्रम के आयोजकों ने न तो हमसे इजाजत मांगी है और ना ही इसे रद्द करने के बारे में लिखित में कुछ दिया है. हम निगरानी रख रहे हैं." शहर में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
आरएसएस से नाता
सत्ताधारी बीजेपी कट्टर हिन्दू संस्था आरएसएस से जुड़ी है. आरएसएस से ही विश्व हिन्दू परिषद, धर्म जागरण मंच और बजरंग दल जैसे कट्टर संगठन भी जुड़े हैं, जो धर्मांतरण को मुद्दा बनाते आए हैं. वे इसे "घरवापसी" कहते हैं, जिसका मतलब कि जिन लोगों ने इतिहास में कभी हिन्दू धर्म को छोड़ कर दूसरा धर्म अपना लिया था, उन्हें हिन्दू धर्म में वापस लाया जा रहा है. मोदी की पार्टी बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी इसे गलत नहीं मानते. बीजेपी के चार बार के सांसद योगी आदित्यनाथ का कहना है, "हम पिछले 10 साल से यह करते आ रहे हैं. यह धर्मांतरण नहीं, बल्कि घरवापसी है. यह तो चलता रहेगा."
लघु और कुटीर उद्योग राज्यमंत्री गिरिराज सिंह और खाद्य संस्करण राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति जैसे बड़े नेता भी आए दिन धर्म से जुड़े भड़काऊ बयान दे रहे हैं. "सबका साथ, सबका विकास" जैसा नारा देकर बहुमत में आए मोदी ऐसे विवादों से खुद को दूर रख रहे हैं. लेकिन विपक्ष की मांग है कि सरकार का मुखिया होने के नाते उन्हें इस पर गंभीर रुख अख्तियार करना चाहिए.
बराबरी का हक
भारत की करीब सवा अरब आबादी में लगभग एक अरब हिन्दू हैं, जबकि मुसलमानों की आबादी 18 करोड़ से ज्यादा है. ईसाई, सिख और बौद्ध धर्म के अनुयायियों की भी खासी तादाद है. भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और मजहब से परे सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है. समाज में आम तौर पर धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होता.
आलोचकों का कहना है कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद आरएसएस और बीजेपी ने धर्म को लेकर तीखे तेवर अपनाए हैं. मोदी पर गुजरात के 2002 वाले दंगों को रोकने के कदम नहीं उठाने के आरोप भी रहे हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ किसी तरह का सबूत नहीं पाया. उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेता और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने चेतावनी दी है, "ये धर्मांतरण सिर्फ शुरुआत भर हैं. अगर यह देश के दूसरे हिस्सों में फैले, तो सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं."
एजेए/ओएसजे (एएफपी, डीपीए, पीटीआई)