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वर्चुअल जुड़ाव के 10 साल

२७ मई २०१३

21वीं सदी के दूसरे दशक में सोशल मीडिया के जो रूप हमारे सामने हैं उनमें सबसे गंभीर और शायद सबसे अभिजात लिंक्डइन होगा. लिंक्डइन नेटवर्किंग साइट के 10 साल इस करीनेपन की खोज और उसे और निखारते रहने के दस साल भी हैं.

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तस्वीर: Fotolia/Photo-K

सूचना और मीडिया के कॉरपोरेटीकरण के समय में उद्यमियों और कंपनियों और संस्थानों को अपनी बात कहने, जीवन परिचय ऑनलाइन रखने और अपनी अभिरुचियों को भी सार्वजनिक बनाए रखने की प्रवृत्ति एक लालसा नहीं रह गई थी. ये इन खरीदव बिक्री मुनाफा के एजेंडा वाले वक्तों की मांग थी. वास्तविक जीवन में दोस्तियां टूट रही थीं, संदेह और अविश्वास थे.

उधर अलग किस्म की दोस्तियां सोशल नेटवर्किंग साइटों पर पनप रही थीं. कुछ लोग वहां मौकों की तलाश में भटक रहे थे तो कुछ मित्रों की तलाश में. पेशेवर लोग दोस्तियों का गठबंधन नहीं कर रहे थे, इन 10 सालों में वे प्रोफेशनल नेटवर्क बढ़ा रहे थे. लगातार जुड़ रहे थे, मित्रता का संदेश भेज रहे थे, लिंक्डइन में कनेक्ट होने की दावत अपने निकटस्थ और दूरस्थ परिचितों को भेज रहे थे, कनेक्टिविटी स्वीकार कर रहे थे और इस तरह अपने संपर्कों का दायरा बढ़ा रहे थे, वर्चुअल दुनिया में जिसे नेटवर्किंग कहा जाता था.

कैसे जुड़ते हैं तार

लिंक्डइन में कहने को आपके पांच दोस्त होंगे जो आपके साथ कनेक्ट होंगे लेकिन उन पांचों से पचासों और हजारों जुड़ाव निकल आएंगे. एक बीज फूटेगा, एक अदृश्य पेड़ उग आएगा और अदृश्य शाखाएं इधर उधर फैल जाएंगी, यह एक हवादार पत्तेदार और हो सकता है फूल या फलदार पेड़ होगा. लिंक्डइन के जुड़ाव का वर्चुअल पेड़.

मई 2003 में शुरू हुए लिंक्डइन का दावा है कि आज की तारीख में 22 करोड़ से ज्यादा प्रोफेशनल सूचना, विचार और अवसरों के आदान प्रदान के लिए लिंक्डइन का इस्तेमाल करते हैं. एक्टिव यूजर्स की संख्या नहीं बताई गई है. दो करोड़ मेम्बरान तो भारत में ही हैं. अमेरिका के बाद लिंक्डइन का सबसे बड़ा बाजार भारत ही है. 19 भाषाओं में लिंक्डइन नेटवर्क हैं.

LinkedIn Reid Hoffman und Jeff Weiner
लिंक्डइन सीईओ जेफ वाइनर और संस्थापक रीड हॉफमैनतस्वीर: picture-alliance/dpa

साइट का दावा है कि हर सेकेंड उससे करीब दो सदस्य जुड़ जाते हैं. तुर्की, कोलंबिया और इंडोनेशिया में लिंक्डइन तेज गति से बढ़ रहा है. मोबाइल पर चीन, ब्राजील, पुर्तगाल, भारत और इटली का बोलबाला है. उद्योग के लिहाज से देखें तो लिंक्डइन का दावा है कि उसके सदस्यों में से 40 लाख सदस्य सूचना प्रौद्योगिकी और सेवाओं से, 20 लाख से कुछ ज्यादा वित्तीय सेवाओं से, 20 लाख से कुछ कम उच्च शिक्षा के महानुभाव हैं, 16 लाख के करीब कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से जुड़े सदस्य हैं और 15 लाख के करीब दूरसंचार सेवाओं के उद्यमी हैं.

पेशेवरों की जन्नत

एक अनुमान के मुताबिक सूचना और अन्य उद्यमों से जुड़ी तकनीकी का बाजार 1000 अरब डॉलर का है. पेशेवर नेटवर्किंग के बहाने हाई सैलरी, हाई प्रमोशन और बिग जंप जैसी शब्दावलियां गले की माला जैसी हो जाती हैं. लिंक्डइन ने पिछले दिनों एक सर्वे कराया कि आईटी के लोग लिंक्डइन या दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट पर आखिर करते क्या हैं. नतीजे में पता चला कि आईटी प्रोफेशनलों के लिंक्डइन में एक औसत यूजर की अपेक्षा तीन गुना कनेक्शन हैं. और वे उनका इस्तेमाल हर उस काम के लिए कर रहे हैं जिससे उन्हें फायदा हो, मसलन अपने हमपेशा लोगों से बात, तकनीकी पर सूचना अपडेट, यहां तक कि उत्पाद का डेमो भी.

लिंक्डइन एक व्यापार केंद्रित सोशल नेटवर्किंग साइट है, पेशेवर समुदाय के लिए. यूजर्स जब लिंक्डइन में आते हैं, वे अपना एक प्रोफाइल बनाते हैं. जिसमें उनके प्रोफेशनल अनुभवों, कुशलताओं और उपलब्धियों और अभिरुचियों का ब्योरा रहता है. इस ब्योरे के आधार पर कोई कंपनी यूजर को नौकरी का ऑफर दे सकती है. यूं भी ये पेशेवरों की दुनिया में रसूख तो बनाती ही है. इस तरह लिंक्डइन अवसरों की तलाश का मंच है.

Barak Obama bei LinkedIn
लिंक्डइन के एक जलसे में राष्ट्रपति बराक ओबामातस्वीर: dapd

लेकिन लिंक्डइन में कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें नौकरी या पगार से नहीं अपने करियर और अपने काम के बारे में सूचना देते रहने से मतलब है. अपने विचार संप्रेषित करने के लिए कई लोग फेसबुक के मायाजाल और उससे पैदा हाहाकार के पास फटकने से घबराते हैं, लिहाजा लिंक्डइन के शांत माहौल वाली वर्चुअल दरिया में नाव खेना ज्यादा मुफीद पाते हैं. जहां कोई नाव नहीं टकराएगा, कोई पानी नहीं उड़ेगा न कोई पानी हिलाएगा. सब अपनी अपनी नावों पर सवार हैं और उम्मीद और अवसर की दरिया में बोटिंग का मजा ले रहे हैं. दूसरी नाव पर मौका मिलते ही सवार भी हो जाते हैं, लेकिन छीनाझपटी जैसी नहीं दिखती.

तमीजदार बाजार

तो आप देखिए बाजार का एक रूप ये भी है. कितना तमीजदार, कितना शांत, कितना सौम्य. इस बाजार के पास फेसबुक भी है जो सोशल नेटवर्किंग दुनिया का डॉन सरीखा है. वहां आक्रामकताएं, व्यर्थ भावुकताएं, शोर और लिजलिजापन हैं.

कई लेखक कवि लिंक्डइन की कुटिया में रहते हैं. कुछ उसमें सिर्फ कनेक्शन बढ़ाते खोजते रहते हैं तो कुछ अपने विचार, अपने अनुभव और कोई कार्यक्रम साझा करते रहते हैं. मीडिया से जुड़े एक सज्जन लिंक्डइन में हर दूसरे संदेश में बताते हैं कि उन्हें आज फलां चैनल पर देखिए, उनकी किताब ये रही, और उनकी कविता की पेश है कुछ लाइनें.. आदि आदि. इस तरह लिंक्डइन बहसों का भी एक गंभीर मंच बन जाता है. सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर लिंक्डइन पर फेसबुक से अलग तेवर वाली सार्थक बहसें देखी गई हैं.

कई सार्थक लेखकीय, राजनैतिक और सामाजिक सरोकार लिंक्डइन का वैकल्पिक इस्तेमाल कर रहे हैं. और यहीं मशहूर अमेरिकी चिंतक जॉन फिस्के की कही बात याद आती है जो उन्होंने जींस के हवाले से कही थी कि मास कल्चर को पॉप्युलर कल्चर कैसे बदलता रहता है. लिंक्डइन मास मीडिया के भूमंडलीकृत और नवउपनिवेशी बाजार का ही एक सांस्कृतिक उत्पाद है लेकिन उसे वैकल्पिक मुद्दों का जुड़ाव मंच भी बनाया जा सकता है. लिंक्डइन के इधर के आंकड़ों में दबे छिपे ये तथ्य भी जरूर होंगे.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

संपादनः अनवर जे अशरफ