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लोमड़ियां कुत्तों की तरह दुम क्यों हिलाने लगीं?

८ अगस्त २०१८

लोमड़ियों में कुत्तों जैसी प्रवृत्ति का पता लगाने वाली एक रिसर्च में छह दशक तक लोमड़ियों की ब्रीडिंग कराने के बाद एक जीन को ढूंढने में कामयाबी हासिल हुई है. यह जीन भेड़ियों के भी पालतू और उग्र होने के कारण बता सकता है.

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Fuchse Russland Experiment
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/A. Geodakyan

लोमड़ियों की 50 पीढ़ियों से जमा की गई जीनोम की श्रृंखला की एक दूसरे गुट के जीनोम की श्रृंखला से तुलना करने के बाद दर्जनों ऐसे फर्क दिखाई पड़े हैं. नेचर इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन जर्नल की रिपोर्ट बताती है कि इसमें एक गुट में उनकी इंसानों से दोस्ती और दूसरे गुट में दुश्मनी के कारणों का पता लगाने की कोशिश की जा रही थी. इलिनॉय यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अन्ना कुकेकोवा इस रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम उस खास जीन को दिखाने में सफल हुए हैं, इसका लोमड़ियों के व्यवहार पर असर है और यह उन्हें ज्यादा पालतू बनाता है." इस जीन को सॉस सीएस1 नाम दिया गया है.

Fuchse Russland Experiment
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Sputnik/A. Kryazhev

रिसर्च के नतीजे इंसानों के व्यवहार से भी जुड़े हैं. उदाहरण के लिए कुछ ऐसे जेनेटिक इलाकों की पहचान हुई है जो ऑटिज्म और बाइपोलर डिजॉर्डर से जुड़े हैं जबकि कुछ दूसरे विलियम बॉयरेन सिंड्रोम से जुड़े हैं. विलियम बॉयरेन सिंड्रोम से पीड़ित इंसान जरूरत से ज्यादा दोस्ताना व्यवहार रखता है. कह सकते हैं कि उसे दोस्ती रखने की बीमारी होती है.

लोमड़ियों पर रिसर्च करीब 50 साल पहले शुरू हुई जब इन जानवरों को घरेलू बनाने के बारे में बहुत ज्यादा समझ नहीं थी और उस पर बड़ी बहस चल रही थी. 1959 में रूसी जीवविज्ञानी दिमित्री बेल्याएव ने इस सिद्धांत को परखने का फैसला किया कि भेड़ियों के धीरे धीरे इंसानों के दोस्त कुत्तों में बदलने के पीछे जीन की भूमिका अहम है या फिर इंसानों से मेलजोल की.

उसी वक्त नोबेल विजेता कोनराड लोरेंड की दलील थी कि नवजात भेड़ियों को अगर इंसानी लाड़ प्यार के साथ बड़ा किया जाए तो वे विनम्र और घरेलू बन जाएंगे. बेल्याएव को शक था कि ऐसा नहीं होगा. उन्होंने वुल्पेस वुल्पेस प्रजाति के जरिए अपनी बात साबित करने की कोशिश की. इस प्रजाति की लोमड़ियों को रेड या सिल्वर फॉक्स भी कहा जाता है.

रूस में लोमड़ियों के बहुत सारे फॉर्म हैं. रोएंदार फर के लिए उन्हें पाला जाता है. ऐसे में बड़े स्तर पर प्रयोग के लिए सुविधा की कमी नहीं थी. 16 साल पहले अन्ना कुकेकोवा ने जानवरों का अध्ययन शुरू किया उनका कहना है, "फार्म में रहने वाली लोमड़ियां घरेलू नहीं बन पाईँ, अगर आप उन्हें छूने की कोशिश करते हैं तो वो डर या गुस्सा दिखाती हैं," ठीक जंगली भेड़ियों की तरह ही.

Fuchse Russland Experiment
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/A. Geodakyan

बेल्याएव ने एक बड़ा फार्म ढूंढ लिया जो सहयोग करने पर रजामंद था. इसके बाद उन्होने बड़े यत्न से ऐसी लोमड़़ियों का चुनाव किया जिनमें आसपास के लोगों से तनाव और डर कम था. वह हर नई पीढ़ी के साथ प्रक्रिया दोहराते गए. कुकेकोवा ने बताया, "महज 10 पीढ़ियों के बाद ही उन्होंने कुछ ऐसे पिल्ले देखे जो इंसानों को देख कर कुत्तों की तरह दुम हिलाते थे वो भी तब जब वहां कोई खाने पीने की चीज नहीं होती थी. वो इंसानों को देख कर खुश होते थे."

आज वो सभी 500 जोड़े जिनकी ब्रीडिंग की गई इंसानों की मौजूदगी में बड़े आराम से रहते हैं वो भी तब जबकि उन्हें कुत्तों की तरह पालतू नहीं बनाया गया है. 1970 के आस पास बेल्याएव की टीम ने लोमड़ियों के एक नए समूह को इसमें जोड़ा. इन लोमड़ियों को उनकी उग्रता की वजह से चुना गया था. इसके साथ एक तीसरा गुट भी चुना गया जिसमें दोनों तरह की लोमड़ियां थीं.

नई स्टडी के लिए कुकेनोवा और उनके दो दर्जन सहकर्मियों ने तीनों समूह में से प्रत्येक में से 10 लोमड़ियों का चुनाव कर उनके जीनोम की श्रृंखला तैयार की. 

Fuchse Russland Experiment
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/A. Geodakyan

कुकेनोवा का कहना है, "हमारे लिए अगली पीढ़ी की सिक्वेंसिंग तकनीक गेमचेंजर साबित हुई. पहले स्टडी के दौरान दर्जनों या सैकड़ों जीनों के कोड एक साथ समूह में मिलते थे, ऐसे में उनमें से काम की जीन को अलग कर पाना मुश्किल होता था. अब रिसर्चर अपने काम के 103 जेनेटिक इलाकों पर ध्यान लगा सकते हैं.

60 फीसदी से ज्यादा विनम्र जानवरों में सॉर सीएस1 का कोई ना कोई प्रकार मिला. इसी तरह उग्र लोमड़ियों में यह जीन पूरी तरह से गायब था. इस स्टडी  में यह भी पता चला कि अलग अलग जीन कुछ खास व्यवहारों के लिए जिम्मेदार हैं. कुकेकोवा ने बताया, "उदाहरण के लिए अगर कोई लोमड़ी किसी इंसान को देख कर दुम हिलाती है तो उसके लिए एक जीन जिम्मेदार है और किसी इंसान को अपनी पेट छूने की अनुमति देने के लिए कोई और जीन."

इसी तरह से कोई लोमड़ी अगर इंसान से मेलजोल को बनाए रखना चाहती है तो इसका निर्धारण करने वाला जेनेटिक कोड भी अलग है.

एनआर/ओएसजे (एएफपी)

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