ले पेन की वाम और दक्षिणपंथी वोटरों को जीतने की कोशिश
५ मई २०१७मारीन ले पेन की एक समस्या है. चुनाव सर्वेक्षणों में वह अभी भी इमानुएल माक्रों के 60 प्रतिशत की तुलना में 40 प्रतिशत के साथ पीछे चल रही हैं. और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों या ब्रेक्जिट के जनमत संग्रह के विपरीत जब सर्वेक्षणों के नतीजे गलत साबित हुए थे, फ्रांस मे पहले चरण के चुनावों में सर्वेक्षण के आंकड़ें सही रहे थे. इसलिए चुनाव से ठीक पहले ले पेन अंतर को पाटने की कोशिश में लगी हैं. अब वे उन मतदाताओं को लुभाने में लगी हैं जो आम तौर पर कंजरवेटिव या वामपंथी उम्मीदवारों को चुनते हैं, लेकिन उनके विचार कम से कम आंशिक रूप से उनके कार्यक्रम से मिलते हैं. और ऐसे मतदाताओं की संख्या कम नहीं है.
पहले राउंड में बाहर हुए कम से कम एक उम्मीदवार निकोला दुपों-आइनान ने अपने वोटरों से खुले आम मारीन ले पेन को समर्थन देने की अपील की है. यूरो आलोचक दुपों-आइनान को पहले चरण में करीब 5 प्रतिशत मत मिले थे और उनकी पार्टी ले पेन का समर्थन करने के मामले में विभाजित है. लेकिन ले पेन ने उन्हें समर्थन के एवज में चुनाव जीतने पर प्रधानमंत्री बनाने का वादा किया है.
विभाजित वामपंथी
आंकड़ों के लिहाज से ले पेन के लिए पहले चरण में वामपंथी जाँ लुक मेलेंचाँ का समर्थन करने वाले वोटर ज्यादा दिलचस्प हैं. उनकी संख्या 20 प्रतिशत है. मेलेंचाँ देश को वैश्वीकरण से बचाना चाहते हैं, सरकारी हस्तक्षेप के पक्षधर हैं और जर्मनी के कथित दबाव में तय यूरोपीय बचत नीति के कट्टर विरोधी हैं. यही ले पेन का भी रुख है. मेलेंचाँ ने बड़ी हिचक के साथ अपने वोटरों को ले पेन का समर्थन न करने की बात कही है, लेकिन उन्होंने माक्रों का समर्थन नहीं किया है.
फ्रांस की बड़ी वामपंथी क्षमता का पता 1 मई की रैली के दौरान साफ हो गया, खासकर 15 साल पहले के मुकाबले, जब मारीन ले पेन के पिता जाँ मारीन बेटी की ही तरह चुनाव के दूसरे चरण में पहुंचे थे. लेकिन उस समय वामपंथी उग्र दक्षिणपंथ के खिलाफ एकजुट थे और उन्होंने कंजरवेटिव उम्मीदवार को 82 प्रतिशत की अभूतपूर्व जीत दिलाने में मदद दी थी. लेकिन आज फ्रांस के राजनीतिक दल और खासकर वामपंथी विभाजित हैं. दो ट्रेड यूनियनों सीएफडीटी और उन्सा ने माक्रों का समर्थन करने की अपील की है. लेकिन सबसे बड़े सीजीटी सहित तीन ट्रेड यूनियनों के लिए बैंकर रहे उदारवादी माक्रों पूंजी के प्रतिनिधि हैं. उनका तटस्थ रहना भी ले पेन को जीतने में मददगार साबित हो सकता है.
कंजरवेटिवों के लिए नरमपंथी
इसी तरह कंजरवेटिव फ्रांसोआ फियों के वोटर भी ले पेन के लिए अहम हैं. फियों को पहले चरण में करीब 20 प्रतिशत मत मिले थे. वामपंथी वोटरों का एक हिस्सा ले पेन को उनकी आर्थिक नीतियों के कारण चुन सकता है तो कंजरवेटिव वोटर सुरक्षा, आप्रवासन और अस्मिता के मुद्दे पर उनका समर्थन कर सकते हैं. ले पेन इन मतदाताओं को लुभाने की किस कदर कोशिश कर रही हैं, यह उन्होंने 1 मई को अपने भाषण में दिखाया था. कुछ जानकार वोटरों को भाषण सुनकर यह लगा कि पंक्तियां कहीं सुनी हुई हैं. सचमुच फियों ने दो हफ्ते पहले ही तीन समुद्री सीमाओं की बात की थी और पूर्व प्रधानमंत्री क्लेमेंसाँ की तरह फ्रांस को "आदर्शों का सिपाही" बताया था.
जर्मनी के बारे में कहे गये एक वाक्य में उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात जोड़ी. फियों और ले पेन ने राइन नदी को "जर्मन दुनिया" की सीमा बताया जिसके साथ इतिहास में फ्रांस के कई विवाद हुए हैं और जिसके साथ वह आज भी सहयोग कर रहा है. लेकिन यहां उन्होंने फियों से अलग जाकर एक बात जोड़ी, तब तक जब तक "हम फिर से सहयोगी का दर्जा नहीं पा लेते और उसके मातहत या गुलाम नहीं हैं." ले पेन के चुनाव मैनेजर इससे इंकार नहीं करते कि उनकी नेता ने फियों की कॉपी की है. ले पेन के पार्टनर लुई अलियो ने कहा, "मैं समझता हूं कि कंजरवेटिवों के एक हिस्से के साथ अस्मिता औरआजादी पर हमारे विचार साझा हैं." और वोट पाने के लिए ले पेन ने यूरो मुद्रा छोड़ने की मांग भी त्याग दी है. 70 प्रतिशत मतदाता यूरो छोड़ने के विरोधी हैं.
रक्षक माक्रों
ले पेन सालों से अपनी उग्र दक्षिणपंथी पार्टी को उदार चेहरा देने की कोशिश कर रही हैं. पिता को पार्टी से बाहर निकालना इसी कवायद का हिस्सा रहा है. फ्रांस की राजनीतिशास्त्री सेसिल आल्डुई कहती हैं, "उनके पास हर किसी के लिए कुछ न कुछ है." खासकर वे खुद को कमजोर वर्ग के लोगों का प्रतिनिधि साबित करने में कामयाब रही हैं और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की जगह ले ली है. महिला होने का भी उन्होंने खूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया है. एक चुनावी वीडियो में वह कहती हैं कि "एक महिला" के रूप में वे कट्टरपंथी इस्लाम पर चिंतित हैं और "एक मां" के रूप में उन्हें भविष्य की चिंता है. ऑल्डुई की राय में यह उनके पिता के मुकाबले कम आक्रामक दिखता है.
लेकिन अब तक की भविष्यवाणियों के अनुसार ये सब ले पेन की जीत के लिए काफी नहीं है. लेकिन कुछ पर्यवेक्षक अपनी निगाह अगले चुनाव पर डाल रहे हैं. पत्रकार क्रिस्टॉफ बार्बिये कहते हैं कि अब सारी जिम्मेदारी इमानुएल माक्रों के सफल कार्यकाल पर होगी. "यदि माक्रों कामयाब नहीं रहते हैं तो अगले राष्ट्रपति का नाम मारीन ले पेन या मारियोन मारेचाल ले पेन होगा." मारियोन ले पेन की भतीजी हैं. यह पुलिज्म का खूनी रोमांच शुरू होने से पहले फ्रांस के लिए अपने आप को संभालने का आखिरी मौका है. यदि 27 वर्षीया मारियोन कभी चुनाव लड़ती हैं तो एलिजी पैलेस में जाने की कोशिश करने वाली वह ले पेन की तीसरी पीढ़ी होगी.