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लिक्विड सोखेगा कंप्यूटर की गर्मी

२१ मार्च २०१३

किसी भी मशीन को ज्यादा देर तक चलाएं तो वह गर्म हो जाती है. कंप्यूटर के साथ भी ऐसा ही है. इसे ठंडा रखने के लिए अब एक नई तकनीक इस्तेमाल हो रही है जो सस्ती भी है, कारगर भी. यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकती है.

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तस्वीर: Bilderbox

घर पर इस्तेमाल होने वाले पीसी के सीपीयू में लगा पंखा तो शायद सभी ने देखा ही होगा. लैपटॉप पर काम करने वाले भी जानते हैं कि लगातार इस्तेमाल से उसकी मशीन गर्म होने लगती है. इसे ठंडा रखने के लिए इसमें छोटा सा पंखा लगाया जाता है. लेकिन अगर कंप्यूटर सर्वर गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों के हों तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितने बड़े होंगे. अधिकतर सर्वर अलमारी के आकार के होते हैं. कई तो कमरे जितने बड़े भी होते हैं. इतने बड़े सर्वर को ठंडा रखने के लिए पंखे और एयर कंडीशनर भी बहुत बड़े बड़े ही इस्तेमाल किए जाते हैं. कुल मिला कर इस से बिजली की बहुत बर्बादी होती है. जानकार मानते हैं कि बिजली की जितनी खपत सर्वर को चलाने में होती है, उतनी ही उन्हें ठंडा करने में भी.

Google Daten Zentrum Data Center Oregon USA
अमेरिका में गूगल के डाटा सेंटर का सर्वरतस्वीर: dapd

कम होगा कार्बन फुटप्रिंट

इंटरनेट और क्लाउड कंप्यूटिंग को ठीक तरह चलाने के लिए दुनिया भर में बिजली की कुल खपत का दो फीसदी हिस्सा खर्च होता है. इसे कम करने के लिए अब इंग्लैंड की एक कंपनी आइसोटोप ने रास्ता निकाला है. कंपनी ने एक ऐसा कुचालक द्रव यानी नॉनकन्डक्टिव लिक्विड तैयार किया है जो कंप्यूटर की मशीनों की गर्मी को सोख लेता है. आइसोटोप के रिचर्ड बैरिंगटन ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया, "हाल ही में हुई रिसर्च से पता चलता है कि इसी साल वे (गूगल और फेसबुक जैसे डाटा सेंटर) 43 गीगावाट खर्च करेंगे. यह 90 परमाणु ऊर्जा स्टेशनों के बराबर है." बैरिंगटन का मानना है कि तरल पदार्थ का इस्तेमाल ऊर्जा को बचाने के लिहाज से 1,000 गुना ज्यादा कारगर साबित होगा. इससे ये कंपनियां पैसा भी बचा पाएंगी और उनका कार्बन फुटप्रिंट भी कम होगा.

इस तरल को बनाने के लिए आइसोटोप ने इंगलैंड की लीड्स यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर काम किया है. यूनिवर्सिटी के जॉन समर्स बताते हैं, "हमने ऐसा तरल पदार्थ इस्तेमाल किया है जिसकी पारद्युतिक क्षमता बहुत अधिक है. इसमें बिजली का प्रवाह नहीं होता." एक तरल पदार्थ में भी कंप्यूटर ठीक तरह काम कर सकते हैं यह सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक मोबाइल फोन को लिक्विड से भरे एक बीकर में डाला और उस फोन पर कॉल किया. फोन सामान्य रूप से बजा और तरल पदार्थ से बाहर निकाले जाने पर भी उसमें कोई खराबी नहीं देखी गयी.

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लिक्विड में भी फोन सामान्य रूप से बजातस्वीर: DW/L. Bevanger

कैसे करेगा काम

आइसोटोप कंपनी चाहती है कि बड़े बड़े सर्वर में इस तरल पदार्थ का इस्तेमाल किया जाए. इसे पूरे सर्वर में पहुंचाने के लिए एक पम्प की जरूरत होगी जिसकी खपत केवल 80 वॉट होगी. आइसोटोप का दावा है कि इस तरह से 80 से 97 फीसदी बिजली बचाई जा सकेगी. इस तरल को इस तरह से पाइपों में डाला जाएगा कि यह भाप बन कर उड़ भी ना सके और बार बार इस्तेमाल किया जा सके.

यह तरल पदार्थ मशीन की गर्मी तो सोख लेगा. लेकिन गर्म हो चुके इस तरल पदार्थ का क्या किया जाएगा. इसे रिसाइकल करने की योजना है. प्रोजक्ट पर काम कर रहे निखिल कपूर ने इस बारे में बताया, "इसको हम घरों में हीटिंग के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, या फिर ग्रीन हाउस की तरह इस्तेमाल कर टमाटर उगाए जा सकते हैं."

Dr. Jon Summers and Richard Barrington
रिचर्ड बैरिंगटन (बाएं) और जॉन समरसतस्वीर: DW/L. Bevanger

आर्कटिक पहुंचेगा गूगल

गूगल भी इस तरह के विकल्पों की खोज में है. सर्वर को ठंडा करने के लिए उसे काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. हाल ही में गूगल ने उत्तरी ध्रुव पर एक डाटा सेंटर बनाने की भी बात कही है. रिचर्ड बैरिंगटन का कहना है कि फिलहाल भले ही यह अच्छा विकल्प लगे लेकिन आगे चल कर इस से दिक्कतें आ सकती हैं, "हम सभी डाटा सेंटरों को उठा कर उत्तरी ध्रुव नहीं ले जा सकते. ना ही हमारे पास इतनी क्षमता है, ना ही इतने लोग और ना ही इतनी जगह. और हमें मध्य पूर्व जैसी जगहों पर भी डाटा सेंटर की जरूरत है, जहां तापमान बहुत अधिक होता है."

फिलहाल आइसोटोप ने इस तरल पदार्थ को दो ही सर्वरों में लगाया है. एक लीड्स यूनिवर्सिटी में है तो दूसरा पोलैंड की एक यूनिवर्सिटी में. कंपनी बड़े प्रोजेक्ट की उम्मीद कर रही है. हो सकता है आने वाले वक्त में हम लिक्विड कूलिंग वाले लैपटॉप खरीदा करें.

रिपोर्ट: लार्स बेवैंजर/आईबी

संपादन: आभा मोंढे

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