1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

लिंग निर्धारण से बचेंगी जानें

१९ अगस्त २०१३

मुर्गीपालन में अंडा देने वाली मुर्गियों का बड़ा महत्व होता है. नर या मादा का सवाल जीवन और मृत्यु का फैसला करता है. नर चूजों को मार दिया जाता है. नए तरीकों से लिंग निर्धारण टेस्ट संभव है. फिर चूजों की जान नहीं जाएगी.

https://p.dw.com/p/19SHw
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अंडा उद्योग में नर चूजे अवांछित होते हैं, क्योंकि वे अंडे नहीं दे सकते. उन्हें मीट के लिए बड़ा करने का भी कोई फायदा नहीं होता क्योंकि उन पर मांस नहीं चढ़ता. इस मुश्किल का भयानक नतीजा यह होता है कि अंडे से फुदक कर बाहर आते ही उन्हें मार दिया जाता है.सिर्फ जर्मनी में हर साल 4 करोड़ नर चूजे मारे जाते हैं. विश्व भर में उनकी तादाद ढाई अरब से ज्यादा है. यदि पहले से पता हो कि अंडे से मुर्गी निकलेगी या मुर्गा, तो सिर्फ मुर्गियों को ही सेया जाएगा.

जर्मन पशुरक्षा संघ के प्रवक्ता मारिउस टुंटे कहते हैं, "यह निश्चित तौर पर अच्छी बात होगी, क्योंकि तब जान नहीं ली जाएगी." इसके लिए जरूरी होगा कि विकास के दसवें दिन से पहले ही लिंग निर्धारण हो जाए. इसके बाद मुर्गे का भ्रूण दर्द महसूस करने लगता है. गीसेन यूनिवर्सिटी में एक पीएचडी शोध में इस बात की जांच की गई कि क्या अंडे के आकार से भ्रूण के लिंग का निर्धारण संभव है. यब इतना आसान नहीं. सारे तरीके जिनसे यह पता लगाना संभव है, बहुत ही जटिल हैं.

Die Hühnerzuchtexpertin Inga Tiemann
अंडे से बाहर निकले चूजेतस्वीर: picture-alliance/dpa

यदि ऐसे अंडे से, जिसमें भ्रूण का विकास हो रहा है, सही जगह से थोड़ा सा तरल लिया जाए तो यह भ्रूण के लिंग का पता देता है. मुर्गी में मादा हारमोन होते हैं, जिसमें ओएसट्राडियोल होता है, लेकिन मुर्गे में नहीं. लाइपजिष यूनिवर्सिटी में काम करने वाली पशु चिकित्सक मारिया एलिजाबेथ क्राउटवाल्ड-युंगहंस कहती हैं, "यह तरीका अच्छा है. हम जीवन के नवें दिन भ्रूण के लिंग का विश्वसनीय निर्धारण कर सकते हैं." उनकी टीम ड्रेसडेन यूनिवर्सिटी की एक टीम के साथ जांच के तरीकों पर एक शोध परियोजना पर काम रही है.

उन्होंने हारमोन आधारित इस तरीके को बड़े मुर्गीपालन केंद्रों पर हेचरी में आजमाया है लेकिन इस प्रक्रिया में एक नुकसान भी है. चूजे 21वें दिन अंडे से बाहर निकलते हैं, इसलिए 9वें दिन भ्रूण अपेक्षाकृत विकसित होता है, दिल, आंख और दूसरी चीजों के साथ. क्राउटवाल्ड-युंगहंस कहती हैं, "पशुरक्षक कहेंगे कि यह गर्भपात की तरह है." इसके अलावा यह विधि बहुत महंगी भी है, क्योंकि इसके लिए गर्भ निर्धारण टेस्ट की ही तरह एक टेस्ट किट की जरूरत होती है. पशुरक्षक, शोधकर्ता और उद्योग इस बात पर एकमत हैं कि अच्छा होगा कि इंक्यूबेशन से पहले ही लिंग का पता चल जाए, जब लिंग निर्धारण हो चुका होता है.

Hühner: Vom Ei zum Küken
इंक्यूबेशन के 18 घंटे बादतस्वीर: picture-alliance/dpa

झांके अंडे के अंदर

पक्षियों में नर क्रोमोसोम की संख्या मादा क्रोमोसोम से ज्यादा होती है, यानि उनमें ज्यादा डीएनए होते हैं. इसलिए अंडे में डीएनए की तादाद से लिंग का पता भी किया जा सकता है.अब तक इसके लिए रिसर्चर अंडे से कुछ सेल लेते हैं. भविष्य में यह अंडे को छुए बिना ही होगा, रोशनी की किरण से जो अंडे तक जाएगा. इसके लिए रिसर्चर एक लेजर की मदद से अंडे की खोल में छोटा सा छेद करेंगे और इसके जरिए जर्मिनल डिस्क तक पहुंचेंगे.

"इस विधि की समस्या यह है कि निषेचित अंडा तय जगहों पर तय पुर्जों वाली मशीन नहीं, बल्कि एक जीव है", क्राउटवाल्ड-युंगहंस बताती हैं, "जर्मिनल डिस्क हमेशा एक ही जगह पर नहीं होता, बल्कि एक जगह से दूसरी जगह जाता रहता है." और अंडे में बहुत ज्यादा छेद नहीं होना चाहिए नहीं तो उसमें स्वस्थ मुर्गी का विकास नहीं हो सकता. इस विधि का फायदा यह है कि इंक्यूबेशन नहीं हुए अंडे का इस्तेमाल हो सकता है. खाने वाले अंडे के रूप में नहीं, लेकिन पशुओं के चारे के रूप में. मौजूदा रिसर्च के बारे में क्राउटवाल्ड-युंगहंस कहती हैं, "पहली विधि हाथ आई गोरैया है, जबकि दूसरा छत पर बैठा कबूतर है."

Geflügel - Küken
बिकने को तैयार चूजेतस्वीर: picture-alliance/dpa

भारी चुनौती

अब तक दोनों में से कोई विधि इतनी विकसित नहीं है कि उसका इस्तेमाल किया जा सके. अंडों में लिंग निर्धारण की विधि को सस्ता होना होगा और तेज भी. इस विधि से हर मिनट एक अंडे की जांच करनी होगी. चूंकि एक इंक्यूबेटर में हर दिन औसत 100,000 अंडे रखे जाते हैं, यह मशीन से ही करना होगा. इस तरह की एक मशीन को एक अत्यंत पतली सूई के जरिए अंडे से तरल लेना होगा ताकि उसमें मादा हारमोन की जांच की जा सके या लेजर के जरिए खोल में छेद कर डीएनए का पता लगाया जा सके.

लेकिन इस तरह की मशीन अभी तक बनी नहीं है. क्राउटवाल्ड-युंगहंस कहती हैं, "हमें उम्मीद है कि 2014 के अंत तक समाधान ढूंढ लिया जाएगा. उसके बाद हम असे केंद्र सरकार को सौंप देंगे जो हमें हमारे प्रोजेक्ट के लिए धन दे रही है." उसके बाद किसी कंपनी को यह मशीन विकसित करने का ऑर्डर मिलेगा. लेकिन ऐसा होने में कुछ साल और गुजर जाएंगे. तब तक नर चूजे मौत का शिकार होते रहेंगे.

रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी