लाहौर आतंकी हमले में 72 की मौत
२८ मार्च २०१६पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के राजनीतिक गढ़ लाहौर के एक पार्क में जहां आत्मघाती हमला हुआ लोग ईस्टर वीकएंड का मजा ले रहे थे. गुलशने इकबाल पार्क में ईसाइयों सहित बहुत से लोग मौजूद थे. मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में ईसाइयों की आबादी सिर्फ 20 लाख है. दिसंबर 2014 के बाद यह पाकिस्तान में हुआ सबसे बड़ा हमला है. उस समय पेशावर में सेना द्वारा चलाए जाने वाले स्कूल पर हुए हमले में 134 बच्चे मारे गए थे. उसके बाद सरकार ने इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था. लाहौर हमले के बाद सेना के प्रवक्ता आसिम बाजवा ने ट्वीट किया, "हमें अपने भाइयों, बहनों और बच्चों के हत्यारों को सजा दिलानी होगी. हम इन वहशी अमानुषों को अपनी जिंदगी और आजादी का अतिक्रमण नहीं करने देंगे."
"हम लाहौर पहुंच गए हैं"
पाकिस्तानी तालिबान के एक धड़े जमात उल अहरार ने रविवार देर रात लाहौर हमले की जिम्मेदारी ली और पाकिस्तान सरकार के खिलाफ सीधी चुनौती जारी की है. संगठन के एक प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान ने कहा, "लक्ष्य ईसाई लोग थे. हम प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को यह संदेश देना चाहते हैं कि हम लाहौर पहुंच गए हैं." लाहौर पाकिस्तान के सबसे धनी प्रांत पंजाब की राजधानी है और देश की राजनीति और संस्कृति का केंद्र माना जाता है. प्रधानमंत्री शरीफ के कार्यालय ने हमले को कायराना बताते हुए कहा है कि जवाबी कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं. इस गुट ने 2014 में तालिबान से अलग होने के बाद कई बड़े हमलों की जिम्मेदारी ली है.
लाहौर में सोमवार को बाजार, स्कूल और सरकारी दफ्तर बंद हैं. शहर आत्मघाती हमले में मारे गए लोगों का शोक मना रहा है. बचाव सेवा के एक प्रवक्ता ने कहा है कि अब तक कम से कम 72 लोग मारे गए हैं और 340 घायल हैं. 25 लोगों की हालत गंभीर है. बचाव कार्य में सेना ने भी हिस्सा लिया. शहर के अस्पतालों में इमरजेंसी घोषित कर दी गई है और लोगों से रक्त दान करने को कहा जा रहा है. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि शहर के पॉश इलाके में स्थित पार्क के आसपास कोई सुरक्षा नहीं थी.
ईसाइयों पर निशाना
पाकिस्तान अमेरिकी नेतृत्व वाले आतंकवाद विरोधी गठबंधन में शामिल होने के बाद से पिछले 15 सालों से उग्रपंथी हिंसा की चपेट में है. अमेरिका पर 2001 में हुए आतंकी हमले के बाद अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के सैनिक हस्तक्षेप के बाद से ही तालिबान सेना, पुलिस और पश्चिमी देशों के ठिकानों को अपने हमलों का निशाना बनाता रहा है. लेकिन उसके निशाने पर ईसाई और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यक भी हैं. लाहौर में ईसाइयों को लक्ष्य बनाकर हमला करने वाले तालिबानी गुट ने तालिबान से अलग होकर आईएस का साथ देने की घोषणा की थी लेकिन बाद में उसने कहा कि वह फिर से पाकिस्तानी तालिबान के विद्रोह में शामिल हो रहा है.
पेशावर हमले के बाद शुरू किए गए अभियान में पाकिस्तान सुरक्षा बलों ने सैकड़ों संदिग्ध उग्रपंथियों को या तो मार डाला या गिरफ्तार किया है. इसके बाद उग्रपंथी हिंसा में कमी आई है लेकिन कहीं भी बड़ा हमला करने की उनकी क्षमता बनी हुई है. पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों पर लंबे समय से भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल के लिए इस्लामी कट्टरपंथियों को समर्थन देने के आरोप लगते हैं. लेकिन पाकिस्तानी तालिबान जैसे कुछ संगठन अब सरकार के खिलाफ हो गए हैं. वे सरकार को गिराने और कठोर इस्लामी कानून लागू करने के लिए लड़ रहे हैं.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ही ट्वीट कर लाहौर हमले की निंदा की और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन कर गहरी संवेदना व्यक्त की.
नवाज शरीफ के विरोधियों का आरोप है कि वे अपने प्रांत में शांति के बदले उग्रपंथियों को बर्दाश्त कर रहे हैं. शरीफ ने इन आरोपों का हमेशा खंडन किया है. लेकिन इस्लामी कट्टरपंथ उनके लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है. रविवार को हजारों मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इस्लामाबाद में गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को फांसी देने का हिंसक विरोध किया. तासीर सख्त ईशनिंदा कानून में संशोधन के समर्थक थे और इसलिए उनके ही बॉडीगार्ड मुमताज ने उनकी हत्या कर दी थी. बहुत से पाकिस्तानी उसे हीरो समझते हैं.
एमजे/आईबी (रॉयटर्स, पीटीआई)