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लाइफ लेती लाइफलाइन

१ मई २०१४

क्रिकेट का दीवाना धवल लोडाया मुंबई लोकल से मंदिर जा रहा था. तभी ट्रेन पटरी से उतर गई और लोडाया की मौत हो गई. वह उन औसत 10 लोगों में शामिल हो गया, जो हर रोज मुंबई रेल की चपेट में जान गंवा देते हैं.

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Mumbai Indien Regional Zug
तस्वीर: dapd

मुंबई लोकल को मुंबई की लाइफलाइन कहते हैं. हर रोज लाखों लोग इन ट्रेनों में सवार होते हैं. लेकिन इन्हीं ट्रेनों की वजह से पिछले साल रिकॉर्ड 3506 लोगों की जान भी गई है. यह शहर इन ट्रेनों की पटरियों के आस पास ही घूमता है. रेल की ये पटरियां ब्रिटिश जमाने में बिछाई गई थी.

Indien Verkehr Mumbai
भीड़ भाड़ वाली मुंबई की एक सड़कतस्वीर: P.Paranjpe/AFP/GettyImages

जान लेती रेल

लेकिन हर साल यह ज्यादा जानलेवा बनती जा रही है. कोई तेजी से पटरी पार करने के चक्कर में मारा जाता है, कोई भारी भीड़ की वजह से दिल के दौरे का शिकार हो जाता है और कोई गेट पर लटकते लटकते गिर जाता है. मुंबई एक सीधी लाइन में बसा शहर है, जहां आबादी एक तरफ रहती है और आम तौर पर दफ्तर दूसरी तरफ. हर सुबह लोगों को इन्हीं ट्रेनों की मदद से अपने काम पर पहुंचना पड़ता है और कई बार जब जगह पूरी नहीं पड़ती, तो छतों पर बैठ कर सफर करना पड़ता है.

सत्रह साल के लोडाया की मौत के बाद उसका परिवार बहुत गुस्से में है क्योंकि हादसे के घंटे भर तक वहां एंबुलेंस भी नहीं पहुंची. लोडाया के पिता का कहना है, "हमने अपने परिवार का प्रकाश खो दिया. हमने अधिकारियों से कहा कि उन्होंने हमें प्रदर्शन करने पर बाध्य किया. उन्हें हल निकालना चाहिए."

"धवल लोडाया को इंसाफ दो" के नाम से एक फेसबुक पेज भी बनाया गया है, जिस पर 30,000 लाइक मिल चुके हैं. हर रोज मुंबई लोकल में 75 लाख लोग सफर करते हैं लेकिन इसकी बुनियादी संरचना में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

वही पुराना भ्रष्टाचार

समीर झावेरी रेल हादसे में अपनी दोनों टांगें गंवा चुके हैं. इसके बाद से वह रेल सुरक्षा कार्यकर्ता बन गए हैं. वह दो दशक पहले रेल से गिर गए थे. झावेरी का कहना है कि भ्रष्टाचार और गलत प्रबंधन सारी समस्या की जड़ हैं, "रेलवे के लिए मुंबई सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है. चाहे अधिकारी कितना भी पैसों का रोना रोएं, सच तो यह है कि उनके पास बहुत पैसा है."

उनका आरोप है कि लोग रिश्वत देकर मनचाही पोस्टिंग लेते हैं ताकि ठेले खोमचों वालों पर हुक्म चला सकें.

मुंबई रेल के एक अधिकारी ने नाम नहीं बताया लेकिन महत्वपूर्ण जानकारी जरूर दी. उन्होंने कहा कि सभी ट्रेनों में ऑटोमेटिक दरवाजे लगाने की योजना को हरी झंडी मिल चुकी है, ताकि लोगों के गिरने की घटनाओं को कम किया जा सके. लेकिन इसमें बाधा आ रही है क्योंकि इससे ट्रेनों की नियमितता पर असर पड़ सकता है, "सुरक्षा की समस्या सबको पता है. लेकिन हल मुश्किल भरा है."

नाम बड़ा और दर्शन छोटे

भारत के तेज विकास में ढांचागत कमियां सबसे बड़ी बाधाएं हैं. सड़क, रेल और बिजली की सप्लाई से मुश्किलें आ रही हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों इन समस्याओं को दूर करने की बात करती आई हैं, जो हुआ अब तक नहीं है.

मुंबई में मोनोरेल प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है लेकिन अब तक सिर्फ 8.8 किलोमीटर पटरी ही तैयार हो पाई है. समयसीमा पार होती जा रही है और बहुत दिनों से जिसका इंतजार है, वह मेट्रो लाइन तो अभी नजर से भी दूर है. मुंबई यूनिवर्सिटी में नागरिक शास्त्र की प्रोफेसर उत्तरा सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि मुंबई तो महाराष्ट्र का हिस्सा है और विधायकों को अपने क्षेत्रों की चिंता ज्यादा होती है, "मुंबई का मामला फोकस से बाहर निकल जाता है."

Mumbai Indien Regional Zug
ट्रेनों में दिखती भीड़तस्वीर: dapd

तबाही की तैयारी

प्रोफेसर बताती हैं किस तरह जब 1990 में कांग्रेस नगरपालिका का चुनाव हार गई, तो अपने पास अधिकार रखने के चक्कर में कई नई एजेंसियां बना डालीं. इस वजह से प्रतिनिधि कई बार चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं. ऐसी ही एक एजेंसी है मुंबई महानगर विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए). इसके प्रवक्ता दिलीप कवाथकर कहते हैं, "मुंबई में सबसे बड़ी समस्या भूमि का अधिकार हासिल करने की है, ताकि आप अपना प्रोजेक्ट चला सकें."

हालांकि हाल में मुंबई ने ट्रांसपोर्ट के मामले में दो कामयाबी हासिल की है. एक तो एयरपोर्ट का नया टर्मिनल और दूसरा उत्तर और दक्षिण को जोड़ती सी लिंक. लेकिन जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट फेल हो रहा है, तो लोगों को अपनी सवारियों पर भरोसा करना पड़ रहा है. परिवहन एक्सपर्ट अशोक दत्तार का कहना है, "जहां जगह की कमी हो, वहां कोशिश होनी चाहिए कि कारों की संख्या बढ़ने से रोका जाए. लेकिन लगता है कि हम तबाही की योजना बना रहे हैं."

एजेए/एमजे (एएफपी)