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रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर दबाव में सू ची

३ नवम्बर २०१६

म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जो सलूक हो रहा है, उसे लेकर देश की नेता आंग सान सू ची पर दबाव बढ़ रहा है. रखाइन प्रांत में बहुसंख्यक मुसलमानों से सरकार जैसे पेश आ रही है, उससे सरकार की चौतराफा आलोचना हो रही है.

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Myanmar Parlament wählt neuen Präsidenten
तस्वीर: Reuters/S. Zeya Tun

म्यांमार के मुस्लिम बहुल पश्चिमी प्रांत रखाइन में सैनिकों पर आम लोगों की हत्या और बलात्कार के आरोप अकसर लगते रहे हैं. ऐसी भी खबरें हैं कि सुरक्षा बल इन लोगों तक सहायता कर्मियों को नहीं पहुंचने दे रहे हैं. रखाइन प्रांत में सेना के अभियान के कारण सू ची और सेना के बीच तनाव बढ़ गया है. दशकों तक म्यांमार में राज करने वाली सेना ने लगभग छह महीने पहले ही चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपी है.

सेना का कहना है कि हालिया झड़पों में पांच सैनिक और 33 चरमपंथी मारे गए हैं. ये झडपें 400 सदस्यों वाले एक समूह के साथ हुईं जिनमें ज्यादातर मुस्लिम रोहिंग्या समुदाय से माने जाते हैं. रोहिंग्या नागरिकता विहीन लोग हैं, जो लंबे समय से म्यांमार में रह रहे हैं लेकिन म्यांमार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. म्यांमार के लिए वो बांग्लादेश से आए गैर कानूनी शरणार्थी हैं.

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सेना ने म्यांमार का जो संविधान बनाया है, उसमें सुरक्षा मामलों का नियंत्रण सेना के हाथ में है. ऐसे में, राजनयिक और सहायताकर्मी इस बात को लेकर हताशा जताते हैं कि सू ची रोहिंग्या संकट से प्रभावी तरीके से निपटने में सक्षम ही नहीं हैं.

सू ची सत्ताधारी पार्टी की सबसे बड़ी नेता हैं, लेकिन कानूनी अड़चन के कारण वो राष्ट्रपति नहीं बन सकतीं. वो स्टेट काउंसलर होने के साथ साथ म्यांमार की विदेश मंत्री भी हैं. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने म्यांमार की सरकार से कहा है कि वो सैनिकों पर लगने वाले मानवाधिकार हनन के आरोपों की जांच कराए. उन्होंने सहायताकर्मियों को प्रभावित इलाकों जाने की अनुमति देने की अपील भी की है.

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सू ची ने इस तरह की अपीलों या फिर मानवाधिकार संगठनों के बयानों पर कभी कुछ नहीं कहा है, लेकिन उन्होंने सेना से संयम बरतने और कानून के अंदर रहने को जरूर कहा है. रॉयटर्स को ऐसे 13 सवालों की सूची मिली है जो सरकार ने सेना को भेजे हैं और हत्या, लूट, गिरफ्तारियां और घरों को तोड़ने की घटनाओं के बारे में जानकारी मांगी है. एक अधिकारी ने इन सवालों को भेजने की पुष्टि भी की है. सू ची और म्यांमार के राष्ट्रपति तिन क्वा ने सैन्य अधिकारियों से मुलाकात भी की है. राष्ट्रपति के प्रवक्ता जा थे कहते हैं, "अधिकारी इस मामले पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं और इसे संभाल रहे हैं.”

Indien Rohingya Flüchtlinge
तस्वीर: DW/C. Kapoor

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अधिकारी और अभी यांगून में रहने वाले विश्लेषक रिचर्ड होरसे कहते हैं कि सू ची के सत्ता संभालने के बाद से ही सरकार और सेना के बीच एक हद तक आपसी भरोसा पैदा हुआ है. लेकिन ये अभी साफ नहीं है कि ये संबंध इस स्तर तक पहुंचा है या नहीं कि रखाइन की समस्या को हल किया जा सके.

स्थानीय लोग सेना पर न सिर्फ हत्या और बलात्कार के आरोप लगाते हैं, बल्कि उनका ये भी कहना है कि सेना ने उन्हें मीडिया से बात न करने को भी कहा है. ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है, "सरकार को यह कहना बंद कर देना चाहिए कि उसने कुछ गलत नहीं किया और राहत कर्मियों को प्रभावित इलाकों तक जाने दिया जाए. वो अंतररॉष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को इन इलाकों से दूर रखने के लिए बहाने बनाने भी छोड़े.”

एके/वीके (रॉयटर्स)