सहयोग की साझा जमीन तय करने की जरूरत
भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाने के हर प्रयास के बाद शांति को तोड़ने की बड़ी घटना होती रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक लाहौर यात्रा के बाद पठानकोट एयरबेस पर हुआ आतंकी हमला भी उसी परंपरा की कड़ी साबित हुआ. हमला हुआ, भारत के सैनिक जवान मारे गए, लोगों में गुस्सा भी दिखा, लेकिन इस बार वह नहीं हुआ जो इस तरह के हमलों के बाद हर बार होता था. भारतीय नेताओं ने ताबड़तोड़ पाकिस्तान पर आरोप नहीं लगाए, पाकिस्तान ने भारत के साथ संवेदना व्यक्त की, भारतीय अधिकारियों ने हमले के बारे में सूचना साझा की और पाकिस्तान ने कार्रवाई करने का वायदा किया.
भारत और पाकिस्तान के संबंधों में यह अभूतपूर्व बदलाव है. शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर भारत आकर नवाज शरीफ ने राजनीतिक हिम्मत का परिचय तो दिया ही था एक दांव भी खेला था. उसके बाद हुए हमलों के कारण कई महीनों तक इसका कोई नतीजा नहीं निकला, लेकिन पठानकोट के हमले के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने ही दिखाया है कि विवादों और समस्याओं से अलग तरह से भी निबटा जा सकता है.
रिश्ते साझा जमीन और मूल्यों पर बनते और लहलहाते हैं. विभाजन के बाद वह साझा जमीन भारत और पाकिस्तान ने खो दी है. समय के अंतराल में मूल्य भी एक जैसे नहीं रहे. उसे फिर से बनाने की जरूरत है. ये साझा मूल्य पारस्परिक सम्मान, लोकतंत्र और न्याय आधारिक शासन ही हो सकते हैं. पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार और सेना की खींचतान और सेना के वर्चस्व की बात होती है, वहां भी निर्वाचित सरकार और संस्थानों को मजबूत करने की जरूरत है. एक स्थिर लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत इसमें बड़ी भूमिका निभा सकता है.
पाकिस्तान के लिए यह परीक्षा की घड़ी भी है. अब तक वह भारत के आरोपों के पीछे छुपता रहा है और नाक बचाने के नाम पर या तो आतंकवादी गुटों को पनाह देता रहा है, उनका इस्तेमाल करता रहा है या उनका बचाव करता रहा है. संप्रभुता के नाम पर ऐसा करना उसे छोड़ना होगा. नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी को फोन पर पठानकोट जांच में मदद का आश्वासन देकर अच्छी पहल की है. यह साथ दक्षिण एशिया में आतंकवाद की कमर तोड़ने में कारगर साबित हो सकता है.
भारत को अब इस सहयोग को औपचारिक रूप देने की पहल करनी चाहिए और नागरिकों की सुरक्षा के लिए सहयोग को संस्थागत रूप देने की शुरुआत करनी चाहिए. यह पहल पूरे दक्षिण एशिया के लिए स्वागतयोग्य होगी क्योंकि भारत और पाकिस्तान का झगड़ा ही सार्क के विकास को बाधित करता रहा है. अगर भारत और पाकिस्तान सहयोग की इस भावना को आगे बढ़ा पाते हैं तो पठानकोट को रिश्तों में नई शुरुआत माना जा सकता है.