रास्ता खोजती डॉल्फिन
डॉल्फिन सोनार सिग्नल से रास्ता ढूंढती हैं, यानी वे जो आवाज करते हैं, वह टकरा कर लौटती है जिस से वह समझ पाते हैं कि समुद्र तट कितना दूर है, लेकिन इंसानी गतिविधियों के कारण उन्हें परेशानी होती है.
पानी के भीतर माइक्रोफोन डाल कर रिसर्चर पता लगाते हैं कि यॉट, मोटरबोट या जहाज कितना शोर पैदा करते हैं और इनसे डॉल्फिनों को क्या कुछ सहना पड़ता है.
पानी के नीचे आवाज हवा के मुकाबले पांच गुना तेज होती है. इस शोर से डॉल्फिन परेशान होती हैं, खास तौर से गर्मी के मौसम में.
जीव विज्ञानियों के पास डॉल्फिनों की तस्वीरें और उनकी आदतों का पूरा ब्यौरा मौजूद है. इन्हीं से वे डॉल्फिनों की हरकतों पर नजर रख पाते हैं.
हरेक डॉल्फिन अपने पंखड़ों की वजह से अलग होती है. समय के साथ इस पर खरोचें, चोट और दरारें आती हैं, वैसे ही जैसे कि हमारे अंगुलियों के निशानों पर. कोई दो डॉल्फिन ऐसी नहीं, जिनके पंखड़े एक जैसे हों.
मेक्सिको की खाड़ी में पिछले चार साल में बहुत ज्यादा व्हेल और डॉल्फिन मछलियां मारी गईं. अप्रैल 2010 का तेल रिसाव इतिहास के सबसे खराब हादसों में गिना जाता है.
डॉल्फिन जैसी मछलियों को सांस लेने के लिए साफ तल की जरूरत पड़ती है. तेल फैलने के बाद मेक्सिको की पूरी खाड़ी प्रदूषित हो गई थी. उनके शरीर में सांस के साथ तेल भी जा रहा था.
डॉल्फिन बेहद खूबसूरत मछलियां हैं जो इंसानों के हाथों अपनी जान गंवा रही हैं. इनके संरक्षण की अहमियत को समझना जरूरी है.