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राघव बहल पर इनकम टैक्स के सर्वे के मायने

समीरात्मज मिश्र
१२ अक्टूबर २०१८

चर्चित वेबसाइट ‘द क्विंट’ के दफ्तर और मालिक राघव बहल के घर पर इनकम टैक्स के छापे के बाद फिर ये सवाल उठा कि क्या सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले संस्थानों और लोगों की आवाज दबाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल हो रहा है?

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Screenshot - www.thequint.com
तस्वीर: thequint.com

आयकर विभाग ने गुरुवार को कथित तौर पर कर चोरी से जुड़े एक मामले में द क्विंट वेबसाइट के संस्थापक संपादक राघव बहल के नोएडा स्थित घर और दफ्तर पर छापा मारा. अधिकारियों ने बताया कि इस मामले में बहल के अलावा तीन अन्य लाभार्थियों और पेशेवरों जे. लालवानी, अनूप जैन और अभिमन्यु के परिसरों की भी तलाशी ली जा रही है. इसके अलावा विदेश में स्थित कपंनियों के साथ उनके कारोबारी संबंधों की जांच की जा रही है.

राघव बहल समाचार पोर्टल ‘द क्विंट' और ‘नेटवर्क 18' समूह के संस्थापक और जाने-माने मीडिया कारोबारी हैं. बहल क्विंटिलिअन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के मालिक हैं और यही कंपनी ‘द क्विंट' नाम की वेबसाइट हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में चलाती है. क्विंटिलिअन कंपनी की ‘द न्यूज मिनट' वेबसाइट में भी हिस्सेदारी है. इनकम टैक्स के अधिकारियों ने ‘द न्यूज मिनट' के बेंगलुरु ऑफिस में भी जांच की थी.

इस छापेमारी का सबसे अहम पहलू यह है कि राघव बहल ने इस खबर के तत्काल बाद संपादकों की संस्था, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को एक पत्र लिखकर चिंता जताई. उन्होंने लिखा, "जब मैं मुंबई में था, तब सुबह इनकम टैक्स के दर्जनों अफसर मेरे घर और ‘द क्विंट' के दफ्तर पर सर्वे के लिए पहुंचे. हम पूरी तरह से टैक्स चुकाते हैं और हम उन्हें इससे संबंधित सभी वित्तीय दस्तावेज उपलब्ध कराएंगे.”

उन्होंने आगे लिखा है, "हम ईमानदारी से कर भरने वाले प्रतिष्ठान हैं. हम सभी उचित वित्तीय दस्तावेज उपलब्ध कराएंगे. हालांकि, मैंने अभी-अभी मेरे परिसर में मौजूद अधिकारी, श्री यादव से बात की है और उनसे गंभीरता से अनुरोध किया है कि वह अन्य कोई चिट्ठी/दस्तावेज न देखें या न उठाएं, क्योंकि उसमें पत्रकारिता से जुड़ी बेहद गंभीर/संवेदनशील सामग्री हो सकती है.”

राघव बहल ने आशंका जताई कि जांच अधिकारियों को अनधिकृत तरीके से दस्तावेज़ों की प्रति बनाने के लिए अपने स्मार्टफोन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि उसमें तमाम ऐसी सामग्री हैं जिनका आयकर से तो कोई लेना-देना नहीं लेकिन पत्रकारिता के लिए वो बहुत मायने रखती हैं.

‘द क्विंट' वेबसाइट ऐसी कई रिपोर्टें प्रकाशित कर चुकी है जिन्हें लेकर केंद्र सरकार और बीजेपी नेतृत्व वाली कुछ राज्य सरकारों को असहज होना पड़ा था. मसलन, दो साल पहले भोपाल में जेल से भागने वाले प्रतिबंधित संगठन सिमी के आठ सदस्यों के एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट, जम्मू कश्मीर में सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले से संबंधित ग्राउंड रिपोर्ट या फिर नोटबंदी के वक्त की गई तमाम खबरें.

इसके अलावा भी ‘द क्विंट' में आए दिन ऐसी खबरें और लेख प्रकाशित होते रहते हैं जिन्हें कथित तौर पर आजकल सरकार विरोधी करार दिया जाता है. साथ ही सांसदों के गोद लिए आदर्श गांवों की जमीनी पड़ताल से भी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी क्योंकि मोदी सरकार में तमाम हाई प्रोफाइल मंत्रियों के गोद लिए गांवों की हालत काफी बदहाल पाई गई थी.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

राघव बहल के ठिकानों पर आईटी की कार्रवाई को उन कार्रवाइयों से जोड़कर देखा जा रहा है जो एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय से लेकर व्यक्तिगत तौर पर कई पत्रकारों के खिलाफ भी परोक्ष रूप से देखा जा सकता है. इस कड़ी में पिछले दिनों एबीपी न्यूज से पुण्य प्रसून वाजपेयी समेत कुछ बड़े पत्रकारों की चैनल से विदाई भी शामिल है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये सभी लोग कथित तौर पर केंद्र सरकार के दबाव की वजह से नौकरी से हटाए गए.

यही नहीं, इन पत्रकारों ने चैनल से रुखसत होने के बाद सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से अपने हटाए जाने के पीछे के कारण को अपनी तरह से लोगों के बीच रखने की कोशिश की है. पुण्य प्रसून वाजपेयी तो साफ तौर पर ये बात कह चुके हैं कि उन्हें उनके कार्यक्रम में दिखाई जाने वाली वास्तविक खबरों के चलते पहले चेतावनी दी गई और फिर चैनल पर दबाव बनाया गया कि उन्हें निकाल दिया जाए.

राघव बहल पर कार्रवाई के मामले में एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने फेसबुक पर लिखा है, "जनता को यह तय करना है कि क्या हम ऐसे बुजदिल इंडिया में रहेंगे जहां गिनती के सवाल करने वाले पत्रकार भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते? फिर ये क्या महान लोकतंत्र है? मीडिया के बड़े हिस्से ने आपको कब का छोड़ दिया है. गोदी मीडिया आपके जनता बने रहने के वजूद पर लगातार प्रहार कर रहा है. बता रहा है कि सत्ता के सामने कोई कुछ नहीं है."

Indien Zeitungen
तस्वीर: Getty Images

यही नहीं, सोशल मीडिया पर कई अन्य पत्रकारों और संगठनों ने भी इस कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं. राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इस प्रकरण पर कहा कि देश में लगातार मीडिया पर दबाव और हमला बढ़ता जा रहा है. ताजा मामला उसका एक प्रमाण है. उनके मुताबिक, ऐसा लगभग हर मीडिया संस्थान में हो रहा है.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी द क्विंट के दफ्तर में सर्वे के नाम पर इनकम टैक्स अफसरों के अचानक घुस आने की कड़ी आलोचना की है और आयकर विभाग से कहा है कि वह अपने अधिकारों का इस्तेमाल इस तरह से न करें जिससे उसका कदम सरकार के आलोचकों के काम-काज में बाधा डालने जैसा लगे. इनकम टैक्स अफसरों के मुताबिक वो द क्विंट के दफ्तर की एक मंजिल पर सर्च और दूसरे में सर्वे के लिए आए थे.

इस पूरे प्रकरण में सरकार की तरफ से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बयान दिया है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है, "हम लोकतंत्र की आजादी के पूरे पूरे पक्षधर हैं. हम लोगों ने इमरजेंसी का विरोध किया था. आज लोकतंत्र में मीडिया को आलोचना का पूरा अधिकार है. वो प्रधानमंत्री और सारे वरिष्ठ मंत्रियों की आलोचना करते हैं और सवाल पूछते हैं लेकिन अगर किसी मीडिया हाउस ने कोई भ्रष्टाचार किया है उसकी जवाबदेही होगी. लेकिन मुझे तथ्यों की जानकारी लेनी होगी.”

रविशंकर प्रसाद भले ही प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों से सवाल पूछने की आजादी का जिक्र कर रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि सवाल पूछना तो दूर, जिस किसी मीडिया हाउस ने सरकार को कठघरे में खड़ी करने वाली खबर भी प्रकाशित की, उसके खिलाफ कार्रवाई या फिर किसी अन्य तरह का दबाव साफ दिख जाता है.

जहां तक प्रधानमंत्री से सवाल पूछने की बात है तो साढ़े चार साल में प्रधानमंत्री ने एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है जहां उनसे कोई सीधे सवाल पूछ सके. यहां तक कि उन्होंने साक्षात्कार भी कुछ चुनिंदा चैनलों के चुनिंदा पत्रकारों को ही दिए हैं जिनके सवालों पर भी सवाल उठे. यही नहीं, अखबारों के लिए तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक ‘ईमेल इंटरव्यू' की एक नई परंपरा शुरू की, जाहिर है, ऐसे इंटरव्यू तो उस श्रेणी में नहीं ही आते हैं जिनमें सीधे और कड़े सवाल पूछे जा सकें.

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