यूरोपीय नेतृत्व में युंकर की वापसी
१६ जुलाई २०१४लंबे समय तक युंकर यूरोपीय नेताओं में सबसे युवा थे. अब 60 का होने से पहले ही वे यूरोप के वरिष्ट नेताओं में गिने जा रहे हैं. उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक करियर में शासन ही किया. लक्जमबर्ग के प्रधानमंत्री रह चुके युंकर नवंबर से यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष का पद संभालेंगे. कभी वे कहा करते थे, "यूरोपीय राजनीति सदस्य देशों की राजधानियों में की जाती है." तब वे लक्जमबर्ग के प्रधानमंत्री थे और 18 साल के कार्यकाल के साथ यूरोपीय नेताओं में सबसे सीनियर.
अब उनकी कुर्सी ब्रसेल्स में होगी. यूरोपीय आयोग के प्रमुख के रूप में वे 33,000 कर्मचारियों वाले आयोग के मुखिया होंगे. आयोग यूरोपीय संघ की कार्यकारिणी तो है ही, वह नए कानूनों का प्रस्ताव भी देता है, सदस्य देशों में यूरोपीय कानून के अमल की निगरानी करता है और यूरोपीय संघ का अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करता है. यूरोपीय सत्ता के तीन पायों में आयोग, यूरोपीय संसद और 28 सदस्यों देशों की सरकारों की परिषद है. बहुत से लोग अपने देश में लंबे समय तक शासन करने वाले युंकर को आयोग प्रमुख और परिषद के प्रमुख के रूप में देख रहे थे.
वे पर्दे के पीछे खेलने वाले खिलाड़ियों में हैं. लेकिन अब वे यूरोपीय संघ के रोजाना खुलेआम काम करने वाले महानिदेशक हैं. इसके लिए उन्हें महीने में 30,800 यूरो की तनख्वाह मिलेगी. युंकर में वे सारे गुण हैं जिसकी इस पद के लिए जरूरत है. सबसे बढ़कर यूरोप के लिए उत्साह. जर्मन कब्जावरों द्वारा बहाल किए गए पुलिसकर्मी के बेटे युंकर जर्मनी और फ्रांस जैसे पड़ोसियों के सांस्कृतिक तनाव के माहौल में पले बढ़े हैं. शांति उनके लिए स्वाभाविक नहीं है. वे यूरोपीय संघ को बड़ी शांति परियोजना मानते हैं. उनका कहना है, "दो हफ्ते का युद्ध यूरोपीय संघ के दस साल के बजट से महंगा है."
28 साल की उम्र में कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद युंकर लक्जमबर्ग की विभिन्न सरकारों में सदस्य रहे. 1989 में वे देश के वित्त मंत्री बने और मासट्रिस्ट संधि के लेखकों में शामिल रहे, जिसके साथ यूरोपीय संघ राजनीतिक और मौद्रिक संघ बना. 1995 में वे प्रधानमंत्री बने और साझा मुद्रा यूरो के जनकों में शामिल हुए. वे 2005 से 2013 तक यूरो मुद्रा वाले देशों यूरो ग्रुप के अध्यक्ष रहे और इसके साथ कर्ज संकट के बाद महत्वपूर्ण संकटमोचक. वे ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो पूरी फाइल पढ़ता है और जिसे वित्तीय मामलों का हर जटिल पहलू पता है.
असल में वे रिटायर करने के पहले लक्जमबर्ग में ही रहना चाहते थे और प्रधानमंत्री के रूप में देश का शासन करते रहना चाहते थे. लेकिन एक फोन टैपिंग और जासूसी कांड ने उनका सपना पूरा नहीं होने दिया. इस कांड के सामने आने के बाद उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि उन्होंने लक्जमबर्ग के एजेंटों पर पर्याप्त निगरानी नहीं रखी. इसके बाद हुए आम चुनावों में उनकी पार्टी हालांकि सबसे बड़ा पार्टी बनकर उभरी लेकिन बाकी दलों ने मिलकर उनके बिना ही सरकार बना ली.
दिसंबर 2013 में पद से हटने के बाद उनके लिए जिंदगी नीरस हो गई. प्रधानमंत्री का पद उनसे छिन गया था और विपक्षी नेता के रूप में उनके पास पर्याप्त काम नहीं था. इस साल संसदीय चुनावों से पहले जब कंजरवेटिव पार्टियां नेता खोज रही थीं तो लक्जेमबुर्गिश के अलावा धाराप्रवाह जर्मन, फ्रांसीसी और अंग्रेजी बोलने वाले युंकर ने मना नहीं किया. उनकी पार्टी जीती, संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनी और अब वे ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के विरोध के बावजूद आयोग के अध्यक्ष बने हैं. वे कहते हैं, "मैं अध्यक्ष इसलिए नहीं बन रहा हूं कि यूरोप वैसा ही रहे जैसा है."
एमजे/ओएसजे (डीपीए)