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यूरोपीय कंपनियों की मदद से कचरा बिजली में बदलते एशियाई देश

१३ जनवरी २०२३

दक्षिणपूर्व एशियाई देश कचरे से ऊर्जा तैयार करने के और ठिकाने बनाना चाहते हैं. और यूरोपीय कंपनियां इस बाजार में उतरने को उत्सुक हैं. लेकिन कचरे को जलाने से जुड़े पर्यावरणीय नुकसान को लेकर चिंताएं भी हैं.

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Deutschland | Müllheizkraftwerk Essen-Karnap
तस्वीर: Rudy Fessel/Zoonar/picture alliance

यूरोपीय कंपनियां दक्षिणपूर्व एशिया में वेस्ट टू एनर्जी (डब्लूटीई) मार्केट यानी कचरे से ऊर्जा उत्पादन में भारी निवेश करने लगी हैं. इस भूभाग की ऊर्जा जरूरतें आने वाले दशकों में और बढ़ने की संभावना है और कचरे को जलाने की यूरोप की खुद की मांग अब कम होने लगी है. यूरोपीय और जापानी कंपनियों का लंबे समय से डब्लूटीई उद्योग पर प्रभुत्व रहा है. सामान्य रूप से ये देखा जाता है कि ये पावर प्लांट उस कचरे को जला देते हैं जो बिजली उत्पादन के लिए रिसाइकिल नहीं किया जा सकता.

साफ ऊर्जा से जुड़ी समाचार वेबसाइट, एनर्जीमॉनीटर.एआई ने हाल में अनुमान लगाया था कि फिलीपींस, इंडोनेशिया और थाईलैंड में 100 से ज्यादा वेस्ट-टू-एनर्जी परियोजनाएं या तो हाल में पूरी हो चुकी हैं या निर्माणाधीन हैं. इनमें फिलीपींस स्थित पांगासिनान का प्लांट भी है जिसे ब्रिटेन की एलीड प्रोजेक्ट सर्विसेज से वित्तीय मदद मिली है. डेनमार्क सरकार की मदद के तहत एक प्रोजेक्ट, इंडोनेशियाई शहर सेमारांग में भी चल रहा है.

थाईलैंड स्थित चोनबुरी में जारी एक प्रोजेक्ट को फ्रांसीसी कंपनियां एन्जी और स्यूज एनवायर्नमेंट सहायता दे रही हैं. पहले अम्स्टरडम में वेस्ट एनवायर्नमेंटल कंसलटेंसी एंड टेक्नोलॉजी के नाम से मशहूर, नीदरलैंड्स स्थित हार्वेस्ट वेस्ट कंपनी ने पिछले साल वियतनाम के मेकांग डेल्टा स्थित सोक ट्रांग प्रांत में 10 करोड़ डॉलर की अनुमानित लागत से चल रहे वेस्ट-टू-एनर्जी प्रोजेक्ट पर शुरुआती अध्ययन किए थे. 

गरीब देशों में क्यों जा रहा है अमीरों का कूड़ा

2021 में, हार्वेस्ट वेस्ट ने फिलीपींस के केबु में ठिकाना बनाने के एक प्रस्ताव के लिए जरूरी आनुपातिक दर्जा भी हासिल कर दिया था. एशिया में ये सबसे उच्चीकृत डब्लूटीई प्लांट बनने की ओर है. कंपनी के दस्तावेजों के मुताबिक, अम्स्टरडम के ऐतिहासिक ठिकाने जैसी तकनीक यहां भी इस्तेमाल होगी जो एक टन कचरे से 900 किलोवॉट घंटे बिजली पैदा कर सकती है.

नये बाजार देखता यूरोप

हार्वेस्ट वेस्ट के एशिया-प्रशांत प्रमुख लुक रिकवेस्ट ने बताया कि दक्षिण एशियाई बाजार बढ़ रहा है क्योंकि प्रमुख विकास बैंकों से फंडिंग मिल रही है और इस क्षेत्र की सरकारें निवेश बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही हैं जिनमें फीड-इन टैरिफ भी शामिल हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "पूरे एशिया में तमाम म्युनिसिपल कचरा और कमर्शियल वेस्ट, एक ही जगह पर डाल दिया जाता है या विकल्पों के अभाव में खुले में फेंक दिया जाता है."

कंफेडरेशन ऑफ यूरोपियन वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स के मुताबिक यूरोप में, करीब 500 डब्लूटीई इस समय सक्रिय हैं. लेकिन जीरो वेस्ट यूरोप एनजीओ के वायु प्रदूषण प्रोग्राम समन्वयक यानेक वाक का कहना है कि यूरोपीय तकनीक प्रदाता, दूसरी जगहों पर बढ़ती मांग के अवसर और घरेलू स्तर पर हो रही छंटाई की वजह से नये बाजारों की ओर देख रहे हैं.

ऊर्जा परामर्शदाता संस्थान इकोप्रोग के, सालाना डब्लूटीई इंडस्ट्री बेरोमीटर के अक्टूबर में जारी ताजा सर्वे के मुताबिक, यूरोप की डब्लूटीई इंडस्ट्री के लिए "बिजनेस क्लाइमेट" में एक दशक के दौरान सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है. इसी तरह, वाक कहते हैं, "दुनिया के बहुत से दूसरे देशों और क्षेत्रों में काफी कम या बामुश्किल ही कोई भट्टी होंगे लिहाजा उन इलाकों में जर्बदस्त बाजार संभावना मौजूद है. 

दक्षिणपूर्वी एशिया ऐसा ही एक क्षेत्र

विभिन्न आकलनों के मुताबिक, दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों की शहरी आबादी, 2030 तक बढ़कर 40 करोड़ होने का अनुमान है, जबकि 2017 में ये 28 करोड़ थी. ऊर्जा की मांग में, 2040 तक दो-तिहाई वृद्धि हो जाएगी. इसी वजह से, विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में कचरे के ढेर और रिसाइकलविहीन कचरे की मात्रा बढ़ती जाएगी. और उस तरह उसे उपयोगी बनाने का कोई न कोई तरीका भी निकाला जाएगा.

कचरे को जलाना दक्षिणपूर्व एशिया में बहुत आम है
कचरे को जलाना दक्षिणपूर्व एशिया में बहुत आम हैतस्वीर: Jean-Pierre De Mann/Robert Hardi/picture alliance

जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी में वेस्ट टू एनर्जी रिसर्च काउंसिल के चेयर और प्रोफेसर मसाकी तकाओका ने डीडब्ल्यू को बताया कि कचरा उत्पादन रोकने की नीतियां लागू की जाएगीं लेकिन इलाके में आपात उपचार की जरूरत होगी. वो कहते हैं, "अनुमान है कि कई शहर कचरे को जलाकर ऊर्जा पैदा करने की तकनीक पर ध्यान लगाएंगे." जून में चालू हुए वियतनाम के सबसे बड़े डब्लूटीई प्लांट में हर रोज 4000 टन सूखे कचरे के निस्तारण की क्षमता है.

रिसर्च कंपनी मोरडोर इंटेलिजेंस के हालिया आकलन के मुताबिक, दक्षिणपूर्वी एशिया का वेस्ट-टू-एनर्जी मार्केट 2021 से 2028 के दरमियान 3.5 फीसदी की दोगुना सालाना वृद्धि दर के साथ बढ़ सकता है. मोरडोर इंटेलिजेंस के मुताबिक फ्रांस स्थित ट्रांस नेशनल कंपनी विओलिया एनवायर्नमेंट एसए उन पांच बड़ी कंपनियों में से है जो दक्षिणपूर्वी एशिया के डब्लूटीई सेक्टर में सक्रिय थी. अन्य कंपनियों में जापान की मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज और इंडोनेशियाई और सिंगापुर की स्थानीय कंपनियां शामिल हैं.

विकास के रास्ते में अवरोध

हालांकि समस्याएं भी हैं. एक समस्या है फंडिंग की. वाक के मुताबिक यूरोप में हाइटेक डब्लूटीई भट्टियों की कीमत करीब हर साल 1000 यूरो प्रति टन बैठती है. एशिया के कुछ देशों में ये अत्यधिक महंगी हो सकती है. फिर भी अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम और एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे चुनिंदा विशालतम विकास बैंक इस उद्योग में भारी निवेश कर रहे हैं. यूरोपीय संघ से नकदी मिलने की कोई गुंजायश नहीं है.

वेस्ट-टू-एनर्जी में निवेश के लिहाज से, ईयू ने टिकाऊ गतिविधियों को लेकर अपने वर्गीकरण के आधार पर इस उद्योग को सस्टेनेबल फाइनेंस मानी जाने वाली आर्थिक गतिविधियों से बाहर रखा है. दूसरे निवेशक भी जलवायु एक्टिविस्टों की तीखी आलोचना का सामना कर रहे हैं. पिछले साल पर्यावरण समूहों के कंसॉर्टियम ने वियतनाम के बिन डुओंग प्रांत में एक नए डब्लूटीई इन्सिनरेशन प्रोजेक्ट को फंडिंग देने के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक के समक्ष एतराज जताया था.

यूरोप से उलट, एशियाई कचरा ठिकानों में रिसाइकिल होने योग्य या रिसाइकिल न होने योग्य सामग्रियों और प्राकृतिक और कृत्रिम वस्तुओं के बीच कोई ज्यादा भिन्नता नहीं है. लिहाजा भट्टियों में बाजदफा ऐसा कचरा भी चला जाता है जो जलाया नहीं जा सकता. जलवायु एक्टिविस्टों ने इस बारे में आगाह किया है. भट्टियों के लिए जरूरी ताप बढ़ाने के उद्देश्य से अगर ज्यादा प्लास्टिक जलाने की जरूरत पड़े तो उससे बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और बढ़ सकता है.

सब्जी के कचरे से ईंधन

पर्यावरणवादी इसलिए भी चिंतित हैं कि कचरे से ऊर्जा इन्सिनरेशन के लिए चलाया जाने वाला अभियान, रिसाइक्लिंग की प्रक्रिया और पर्यावरणीय दृष्टि से कम हानिकारक कचरे के वैकल्पिक इस्तेमाल को बढ़ावा देने की स्थानीय कोशिशों को हतोत्साहित करेगा. जीरो वेस्ट यूरोप से जुड़े वाक कहते हैं, "हमारे नजरिए से, इन्सिनरेटरों यानी भट्टियों के निर्माण का न कोई औचित्य है न उसकी कोई जरूरत है.

कचरा जलाने की पर्यावरणीय कीमत

यूरोपीय संघ ने दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिशों की दिशा में जलवायु कार्रवाई को केंद्रीय स्थान दिया है. ईयू का वेस्ट फ्रेमवर्क डाइरेक्टिव कहता है कि कचरा प्रबंधन के और दूसरे भी तरीके उपलब्ध हैं जो इन्सिनरेशन की अपेक्षा ज्यादा उपयुक्त हैं. यूरोपीय संघ के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारा लक्ष्य, ये सुनिश्चित करना है कि यूरोपीय संघ में कचरे से ऊर्जा निकालने की प्रक्रिया, सर्कुलर इकोनॉमी के उद्देश्यों का पालन करे और ईयू की वेस्ट हाइआर्की से दृढ़तापूर्वक निर्देशित हो."

प्रवक्ता के मुताबिक, "ऊर्जा की बचत और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिहाज से कचरे की रोकथाम और रिसाइक्लिंग ही सबसे ज्यादा योगदान देती हैं." लेकिन डब्लूटीई उद्योगों की वकालत करने वाला पक्ष कहता है कि दक्षिणपूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों में कचरे के बड़े पैमाने पर लग रहे ढेरों को लेकर कुछ किए जाने की जरूरत है. इसके अलावा बिजली की मांग में आ रही तेजी से भी निपटना होगा.

ये पक्ष उस अध्ययन की ओर भी इशारा करता है जो पिछले साल साइंस एडवांसेस जर्नल में प्रकाशित हुआ था. नीदरलैंड्स के कई अकादमिक विद्वानों के इस अध्ययन में बताया गया था कि कचरा ठिकानों से, जितना पहले अंदाजा था, उससे दोगुना मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा हो सकता है. एक दलील ये भी है, चूंकि दक्षिणपूर्वी एशिया के देश, कचरे से बिजली बनाने के रास्ते पर पहले ही काफी आगे निकल चुके हैं तो क्यों न यूरोपीय कंपनियां भी आगे बढ़ें.