यूएन शुरु करेगा परमाणु हथियार बैन करने पर बात
२७ मार्च २०१७बाध्यकारी परमाणु प्रतिबंध संधि पर सम्मेलन में भाग लेने की घोषणा विश्व के 123 देशों ने अक्टूबर 2016 में ही कर दी थी. ब्रिटेन, फ्रांस, इस्राएल, रूस और अमेरिका ने इसके खिलाफ वोट दिया था. वहीं भारत, चीन और पाकिस्तान इस सम्मेलन से अपनी दूरी पहले ही जाहिर कर चुके हैं.
सन 1945 में परमाणु हमले का शिकार बने जापान तक ने इस सम्मेलन के खिलाफ अपनी राय व्यक्त की थी. जापान के मुताबिक वार्ता में आम सहमति की कमी प्रभावी परमाणु निशस्त्रीकरण के मार्ग को कमजोर कर सकता है. लेकिन जो देश इसका समर्थन कर रहे हैं उनमें ऑस्ट्रिया, मेक्सिको, आयरलैंड, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन प्रमुख हैं.
इन देशों के मुताबिक परमाणु संकट को उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार कार्यक्रम और वॉशिंगटन में अप्रत्याशित नये प्रशासन ने और हवा दी है. स्वीडन के विदेश मंत्री मारगोट वाल्सस्ट्रोम ने उम्मीद जताई थी कि वार्ता लंबी जरूर खिंच सकती है लेकिन यह बेकार नहीं जायेगी.
कई एनजीओ को मिलाकर बने अंतरराष्ट्रीय संगठन, इंटरनेशनल कैंपेन टू एबोलिश न्यूक्लिर वेपन्स की निदेशक बिआट्रिसे फिन के मुताबिक हाल के सालों में परमाणु निशस्त्रीकरण की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है. इस दिशा में जो अहम फैसला लिया गया था, वह साल 1968 की अप्रसार संधि के तहत निशस्त्रीकरण की ओर जताई गई प्रतिबद्धता है. उन्होंने कहा कि ओबामा प्रशासन ने इस मसले पर दावे और वादे जरूर किये थे लेकिन वे हकीकत में कारगर साबित नहीं हुये. बिआट्रिसे को अमेरिका के नये प्रशासन पर संदेह है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने पद पर काबिज होते ही ट्वीट कर परमाणु मसले पर सबको पीछे करने की जो बात कही थी वह डर पैदा करती है.
हालांकि फिन को भरोसा है कि संधि भविष्य में अपनायी जायेगी. उन्होंने कहा कि हो सकता है कि यह जुलाई में समाप्त हो रहे वार्ता के पहले चरण में ना अपनायी जाए. हालांकि अब तक किसी बड़ी शक्ति ने इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. संभावना है कि बातचीत शुरु होते ही संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली बयान जारी कर सकती हैं.
अमेरिका और फ्रांस पहले ही अक्टूबर में होने वाली इस वार्ता को लेकर अपना पक्ष साफ कर चुके हैं. दोनों ही देशों ने अपनी स्थितियों का हवाला देते हुये कहा कि इस मसले पर हथियारों के मौजूदा सामरिक संतुलन से छेड़छाड़ किये बिना ही बातचीत होनी चाहिये. फिन इस तर्क की चेनस्मोकरों द्वारा दिये जाने वाले तर्क से तुलना करती हैं, जिनके लिए सिगरेट छोड़ने का सही वक्त कभी नहीं आता. उन्होंने कहा कि दुनिया के तमाम देश इस मसले पर बात करना चाहते हैं और अब वे बड़ी शक्तियों के बात करने का इंतजार तो नहीं कर करेंगे.
एए/आरपी (एएफपी)