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खाने के उत्पादन के चलते बढ़ रहा जलवायु परिवर्तन

९ अगस्त २०१९

यूएन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि खाने को उगाने और खाने की बर्बादी से जलवायु परिवर्तन बढ़ रहा है. यहां तक की खेती करने की तकनीकों और फसल चक्र का भी इस पर असर पड़ रहा है.

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Le Mess Restaurant in Brüssel
तस्वीर: DW/J. Järviniemi

जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे संगठन इंटरगवरमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने कहा है कि दुनिया में हर किसी के लिए खाना उपलब्ध करवाने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ सकती है. आईपीसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक खाने की चीजें उगाने से होने वाला ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन दुनिया के कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का एक चौथाई होगा.

रिपोर्ट के मुताबिक खाने की बर्बादी को कम कर, सतत खेती की तकनीकें अपना कर और मांसाहारी खाने की जगह शाकाहारी खाना अपनाकर इसमें कुछ कमी लाई जा सकती है. इन तरीकों से सभी के लिए खाना उपलब्ध करवाने के साथ जलवायु परिवर्तन पर काबू किया जा सकता है. इस रिपोर्ट का अनुमान है कि इस साल 49 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होगा.

रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते फूड चेन भी प्रभावित हुई है. इसका कारण बढ़ रहा तापमान, तेजी से बदल रहे मौसम के स्वरूप और बार-बार आ रही प्राकृतिक आपदा हैं.

8 अगस्त को जलवायु परिवर्तन और जमीन के नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जमीन पर हो रहे बदलावों से किस तरह जलवायु परिवर्तन पर असर पड़ता है.  साथ ही जलवायु परिवर्तन से जमीन पर हो रहे प्रभावों के बारे में भी इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है. इस रिपोर्ट में जमीन पर होने वाली गतिविधियों में खेती, जंगलों का उगना और कटना, पशुपालन और शहरीकरण के पहलू शामिल है. इन सबका प्रभाव जलवायु परिवर्तन पर पड़ रहा है.

Nigreria Fulani-Nomaden
फसल चक्र बदलने से भी बढ़ रहा है जलवायु परिवर्तन.तस्वीर: AFP/Luis Tato

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में खाना उगाने के चलते 16 से 27 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है. अगर इसके साथ खाना उगाने के बाद होने वाले दूसरे कामों जैसे ट्रांसपोर्ट और फूड प्रोसेसिंग उद्योग को भी जोड़ लिया जाए तो यह कुल ग्रीनहाउस गैस उत्पादन का लगभग 37 प्रतिशत हिस्सा हो जाता है. अगर इसमें खाना उगाने से पकाने तक की गतिविधियों को शामिल कर लिया जाए तो यह कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्पादन का 21 से 37 प्रतिशत हिस्सा होगा.

इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में खाने के उत्पादन का एक चौथाई हिस्सा बेकार फेंक दिया जाता है. इसके विघटित होने में भी ग्रीन हाउस गैस निकलती हैं. 2010 से 2016 के बीच में बेकार फेंके गए खाने से करीब 8 से 10 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन हुआ. साथ ही रिपोर्ट का कहना है कि पृथ्वी पर जमीन पर दूसरे हिस्सों की तुलना में ज्यादा तापमान बढ़ा है. 2006 से 2015 के बीच में धरती पर तापमान 1850 से 1900 के औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा बढ़ा. उस समय पर जमीन और समुद्र का तापमान मिलाकर 0.87 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ा था. तापमान में इस अतिरिक्त बढ़ोत्तरी के चलते दुनियाभर में लू जैसी आपदाएं आम हो गई हैं,

जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण जमीन का इस्तेमाल बदल जाना. जमीन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन और सोखने दोनों का काम करती है. खेती से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. वहीं मिट्टी, पेड़ और वनस्पति कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखते हैं. यही वजह है कि जंगलों को काटने, शहरीकरण और यहां तक की फसल चक्र में बदलाव का भी जलवायु परिवर्तन पर सीधा असर पड़ता है.

आसएस/एनआर(एएफपी)

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