रेप पर संयुक्त राष्ट्र ने स्वीकारा नया प्रस्ताव
२४ अप्रैल २०१९एक महीने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की अध्यक्षता कर रहे जर्मनी ने युद्ध और हिंसाग्रस्त इलाकों में महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा को लेकर बड़ी बहस छेड़ी है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन को युद्धकाल में होने वाली यौन हिंसा से जुड़ी कुछ बातों और प्रस्ताव की भाषा पर आपत्ति थी. इसके चलते प्रस्ताव से कुछ अहम बातों को हटाना पड़ा. अमेरिका ने उसे ना हटाने पर प्रस्ताव के खिलाफ यूएन सुरक्षा परिषद में अपना वीटो लगाने की बात कही थी.
परिषद ने इस प्रस्ताव में विवादग्रस्त इलाकों में घटी यौन हिंसा के बारे में कदम उठाने और इसे रोकने की दिशा में हो रही बहुत "धीमी प्रगति" पर चिंता जताई है. परिषद ने माना कि कई मामलों में ऐसे कृत्य करने वालों को कभी सजा नहीं मिलती और "कुछ जगह हालात ऐसे बन जाते हैं कि यह क्रूरता के भयंकर स्तर तक पहुंच जाता है." प्रस्ताव में सरकारों से आह्वान किया गया है कि वे यौन हिंसा से बच कर निकले लोगों को "बिना किसी भेदभाव के और उनकी जरूरत के हिसाब से देखभाल मुहैया करवाएं." यह भी कहा गया है कि पीड़ितों की पहुंच "राष्ट्रीय राहत और क्षतिपूर्ति कार्यक्रमों तक हो और उनकी शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक सेहत सुधारने के साथ-साथ, रहने के लिए सुरक्षित आश्रय, जीविका के साधन और कानूनी मदद भी दी जाए."
जर्मनी ने जो प्रस्ताव तैयार किया था, उसमें इन सब बातों के अलावा यौन हिंसा की शिकार बने लोगों को यूएन संस्थाओं के माध्यम से समय रहते "यौन और प्रजनन स्वास्थ्य" से जुड़ी मदद मुहैया कराने की बात थी. ट्रंप प्रशासन इस प्रस्ताव को गर्भपात को समर्थन देने के तौर पर देखता है और इसके खिलाफ है. प्रस्ताव पर सभा में काफी बहस हुई और वोटिंग के बाद 15-सदस्यीय यूएनएससी को संबोधित करते हुए फ्रांस के राजदूत फ्रांसुआ डेलात्रे ने कहा, "यह बात ना तो समझ में आने और ना ही बर्दाश्त करने लायक है कि सुरक्षा परिषद को ऐसा मानने में दिक्कत आ रही है. हिंसाग्रस्त इलाकों की महिलाओं को यौन हिंसा और रेप झेलना पड़े तो वे उस गर्भ को नहीं रखना चाहेंगी और उन्हें इसे खत्म करने का अधिकार होना चाहिए."
संयुक्त राष्ट्र की ओर से अपनाया गया नया प्रस्ताव एक बार फिर सुरक्षा परिषद के 2009 और 2013 के प्रस्तावों की पुष्टि करता है. इन दोनों प्रस्तावों में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के उन मामलों का जिक्र था, जिनमें युद्ध और संकटग्रस्त इलाकों की महिलाओं और लड़कियों के साथ हुए गंभीर अपराधों को लेकर दोषियों को सजा दिलवाने की बात थी. इस प्रस्ताव की भाषा पर यूएन महासभा के 193 सदस्यों ने साल 2009 और 2013 में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति भी बना ली थी. लेकिन सुरक्षा परिषद में वोटिंग के समय 13 सदस्यों ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट डाला जबकि वीटो शक्ति वाले दो देशों रूस और चीन ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.
वीटो शक्ति वाला तीसरा देश अमेरिका पहले से ही राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र के साथ दोस्ताना नहीं रहा है. 2017 में अमेरिका ने यूएन जनसंख्या कोष के लिए अपनी फंडिंग काट ली क्योंकि उनके अनुसार यूएन "महिलाओं का जबरन गर्भपात करवाने और इच्छा के विरुद्ध लोगों को बंध्याकरण करवाने" का काम करता है. यूएन ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया था. 2018 में भी अमेरिका ने कई बार संयुक्त राष्ट्र आमसभा में पेश किए गए उन प्रस्तावों की भाषा बदलवाने के असफल प्रयास किए थे, जहां यौन हिंसा और प्रजनन से जुड़ी बातें लिखी थीं.
आरपी/एए (रॉयटर्स, एपी)