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युआन विवाद से भारत का लेना देना नहीं

७ अप्रैल २०१०

भारत ने कहा है कि चीनी मुद्रा युआन को लेकर अमेरिका और चीन के विवाद में उसकी कोई भूमिका नहीं है. यह इन दो देशों का मामला है. चीन पर आरोप लगते हैं कि उनसे जानबूझ कर अपनी मुद्रा का मूल्य कम रखा हुआ है.

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तस्वीर: picture-alliance / dpa

अमेरिका चाहता है कि युआन का मूल्य बाजार के हिसाब से तय हो. समझा जाता है कि युआन के कम मूल्य के चलते ही चीन को व्यापार में भारी फायदा होता है. भारतीय वित्त सचिव अशोक चावला ने इस विवाद से भारत को अलग बताया है. वह कहते हैं, "इस मुद्दे पर हमारी कोई भूमिका नहीं है. यह अमेरिका और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है."

वित्त सचिव ने यह बात भारतीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और भारत के दौरे पर गए अमेरिकी वित्त मंत्री टिमोथी गाइथनर की उच्चस्तरीय मुलाकात के बाद पत्रकारों से बातचीत में कही. यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका इस मुद्दे पर भारत का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है. साथ ही, भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा चीन के दौरे पर हैं.

युआन के मुद्दे पर पूछे गए सवाल पर अमेरिकी वित्त मंत्री ने कहा, "हम ऐसी अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं जिसमें ज्यादा बचत हो रही है ज्यादा निवेश हो रहा है. हम अमेरिका से बाहर भी व्यापक सुधार और बदलाव देखना चाहते हैं. यही दुनिया के हित में है."

अमेरिकी सांसद ओबामा प्रशासन पर इस बात के लिए दबाव डाल रहे हैं कि अमेरिका की सालाना मुद्रा रिपोर्ट के आधार पर चीन को "मुद्रा की हेराफेरी करने वाला" कहा जाए. हालांकि अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने 15 अप्रैल को आने वाली इस रिपोर्ट के प्रकाशन को टाल दिया है. समझा जाता है कि गाइथनर चीन को इस बात के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करेंगे कि वह बाजार की विनिमय दर को माने.

चीन ने जुलाई 2008 से अपनी मुद्रा को एक ही स्तर पर रखा हुआ है जो एक डॉलर में 6.68 युआन के आसपास है. इससे पहले युआन का मूल्य भी बाजार के हिसाब से घटता बढ़ता रहता था. खासकर दुनिया अब धीमी वृद्धि से संतुलित और सतत वृद्धि की तरफ बढ़ रही है. गाइथनर ने कहा, "अमेरिका में बदलाव की जरूरत है. पूरी दुनिया में भी बदलाव की जरूरत है. हम मिलकर काम कर रहे हैं ताकि बेहतर वृद्धि का माहौल बना सकें."

अमेरिकी वित्त मंत्री ने मजबूत घरेलू मांग के जरिए लगातार वृद्धि करने के लिए भारत की सराहना की और कहा कि बाकी देशों को भी इस मिसाल का अनुसरण करना चाहिए. अमेरिका इस बात के लिए भी चीन की आलोचना करता रहा है कि वह निर्यात पर तो खूब ध्यान दे रहा है लेकिन वहां आंतरिक मांग को बेहतर बनाने के लिए उतनी कोशिशें नहीं हो रही हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एस गौड़