यहां आदमियों की नहीं औरतों की चलती है
पितृसत्तात्मक माने जाने वाले एशियाई समाज में कुछ ऐसी भी जगहें और समुदाय हैं, जहां महिलाओं के पास पुरुषों जैसे ही अधिकार हैं. महिलाओं के आवाज बुलंद है और फैसलों में भी इनकी समान भागदारी है.
समान हक
मातृसत्तात्मक समाज में ऐसा अक्सर देखा जाता है कि घरों की जिम्मेदारी महिलाओं के पास होती है. जायदाद पर मालिकाना हक महिलाओं का होता है और वे इसे अपनी बेटियों को देती हैं. यहां पति शादी कर महिला के घर में रहने जाते हैं. वहीं पुरूषों के पास राजनीतिक और सामाजिक मसलों पर निर्णय लेने का हक होता है. ऐसी व्यवस्था को यहां शक्तियों का सही बंटवारा माना जाता है.
खासी (भारत)
पूर्वोत्तर के खासी समुदाय में लड़की का जन्म जश्न का मौका होता है और वहीं लड़का पैदा होना एक साधारण बात. आमतौर पर परिवार की बड़ी बेटी का परिवार की विरासत पर हक होता है. अगर किसी दंपत्ति के बेटी नहीं होती तो वे लड़की गोद लेकर अपनी जायदाद उसे सौंप सकते हैं. खासी समुदाय की इस प्रथा के चलते काफी पुरूषों ने अपने हकों के लिये नये समुदाय बना लिये हैं.
चाम (दक्षिण भारत)
कंबोडिया, वियतनाम और थाईलैंड में भी दक्षिण भारत के चाम समुदाय की मान्यतायें बहुत अधिक प्रचलित हैं. चाम समुदाय भी मातृसत्तात्मक व्यवस्था पर विश्वास करता है और परिवार की जायदाद भी महिलाओं को मिलती है. यहां की लड़कियों को अपने लिये पति चुनने का भी अधिकार है. आमतौर पर लड़की के मां-बाप लड़के के परिवार से बात करते हैं और शादी के बाद लड़के ज्यादातर लड़की के परिवार क साथ रहने जाते हैं.
गारो (भारत)
गारो समुदाय में मां शब्द एक पदवी की तरह है. परिवार कि सबसे छोटी बेटी को मां अपनी पारिवारिक जायदाद सौंपती है. पहले किशोरावस्था में लड़के अपने माता-पिता का घर छोड़कर गांव की डॉर्मेटरी में रहने चले जाते थे. लेकिन ईसाई धर्म का प्रभाव इन पर पड़ा और अब समुदाय में भी मां-बाप अपने बच्चों को बराबरी के अधिकार और माहौल दे रहे हैं.
मोस (चीन)
मोस समुदाय में लोग महिलाओं के नेतृत्व वाले बड़े परिवारों में रहते हैं. इस समुदाय में पति और पिता जैसे कोई मसला ही नहीं है. यहां के लोग चलते-फिरते विवाह (वाकिंग मैरिज) पर भरोसा करते हैं, जहां पुरूष महिलाओं से मिलने जा सकते हैं, रूक सकते हैं लेकिन यहां लोग साथ नहीं रहते. इन शादियों से पैदा हुये बच्चों को पालने की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है. जैविक पिता की बच्चों को पालने में कोई भूमिका नहीं होती.
मिनांगकाबाऊ (इंडोनेशिया)
करीब 40 लाख की आबादी वाले इंडोनेशिया के इस समुदाय को विश्व का सबसे बड़ा मातृसत्तात्मक समाज कहा जाता है. मूल रूप से इन्हें जीववादी (एनिमिस्ट) माना जाता था लेकिन हिंदु और बौद्ध धर्म का इन पर काफी असर पड़ा, कई लोगों ने इस्लाम भी अपना लिया. ये अपने समाज को कुरान पर आधारित मानते हैं, जो महिलाओं को जायदाद पर अधिकार देने और सामुदायिक निर्णय लेने से नहीं रोकता.
छोड़ी पुरानी रीतियां
आज इन मातृसत्तात्मक समाजों में भी बदलाव महसूस किया जा रहा है. ये समाज भी बदल रहा है और नये रीति-रिवाजों को अपना रहा है. कुछ समुदायों में पुरूषों ने अपने हक के लिये आवाजें उठाईं हैं और अब वे ऐसी परंपराओं की खिलाफत कर रहे हैं. रिपोर्ट- ब्रेंडा हास/एए
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