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मोदी और शरीफ की जिम्मेदारी

महेश झा ८ अक्टूबर २०१४

सीमा पर हो रही गोलीबारी में आम नागरिकों की जान जा रही है. डॉयचे वेले के महेश झा का मानना है कि पूरा मामला विदेश मंत्रालय और सेना तथा पुलिस पर छोड़ने के बदले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगाम अपने हाथों में लेनी होगी.

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Indien Pakistan Beziehungen Amtseinführung Sandkunst
तस्वीर: Reuters

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेशनीति के परखचे उड़ रहे हैं. चार महीने पहले पड़ोस के देशों के सरकार प्रमुखों को अपने शपथग्रहण में बुलाकर उन्होंने जो पहल की थी उसका लाभ पाकिस्तान के साथ संबंधों में नहीं दिख रहा है. सीमा पर गोलियां चल रही हैं, आम नागरिक मारे जा रहे हैं और दोनों ही देशों में नागरिक सरकार का कोई भी तंत्र सक्रिय नहीं दिख रहा है. अधिकारियों के बीच किसी भी स्तर पर गोलाबारी को रोकने या उसके पीछे की समस्याओं पर बात करने की कोशिश नहीं हो रही है.

दोनों ही देशों में युद्ध की, करारा जवाब देने और मजा चखाने की भाषणबाजी हो रही है. और इसमें वे बड़े अधिकारी भी शामिल हैं जिनका काम देशवासियों की रक्षा करना तो है ही, लेकिन उनका ही काम है राजनीतिक स्तर पर बातचीत के जरिए तनाव को कम करने और शांतिपूर्ण माहौल की नींव रखने का.

Deutsche Welle Mahesh Jha Hindi Redaktion
तस्वीर: DW

सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में रक्षा और विदेश नीति की जिम्मेदारी नागरिक सरकार के पास न होकर सेना के पास है. भारत के मामले में भी पाकिस्तान सेना और उसके तहत काम करने वाली खुफिया एजेंसी आईएसआई अपनी मनमानी करती रही है. ऐसे में भारत के पास दो ही विकल्प हैं. या तो वह पाकिस्तान की नागरिक सरकार को इतना मजबूत करे कि वह अपनी सेना पर काबू कर सके. या फिर भारत को पाकिस्तान की सेना के साथ समझौते का आधार बनाना होगा.

दोनों ही मोर्चों पर भारतीय कूटनीति विफल रही है. न तो भारतीय सेना पाकिस्तान की सेना को इस जगह पर ला सकी है कि वह उकसावे की कार्रवाईयों का विकल्प छोड़े और न ही भारतीय राजनीतिज्ञ पाकिस्तान को शांति के फायदों से आश्वस्त करा पाए हैं. जब तक यह नहीं होता है अघोषित युद्ध जारी रहेगा और लोगों की जानें जाती रहेंगी. पूरा मामला विदेश मंत्रालय के अधिकारियों और सेना तथा पुलिस पर छोड़ने के बदले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगाम अपने हाथों में लेनी होगी.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने मोदी के शपथग्रहण में आकर हिम्मत और उम्मीद का परिचय दिया था. यह वक्त है दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बने आपसी रिश्तों का फायदा उठाने का. मोदी शरीफ को फोन उठाकर गोलीबारी रुकवाने के लिए कह सकते हैं और यही काम नवाज शरीफ भी कर सकते हैं. लेकिन लोकतांत्रिक रूप से चुने गए दोनों प्रधानमंत्रियों में कोई यह कदम नहीं उठा रहा है. आखिर इंतजार किस बात का है? भारत पाक संबंधों को ऐसे ही कदमों की जरूरत है.