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समाज

मेकअप के बजाए, असलियत को अपनाती दक्षिण कोरियाई लड़कियां

६ फ़रवरी २०१९

दक्षिण कोरिया की महिलाओं ने ठान लिया है कि अब वे समाज के दवाब में आकर सुंदर दिखने के लिए खुद को परेशान नहीं करेंगी. असली रूप सामने लाने का साहस दिखाने में सोशल मीडिया निभा रहा है खास भूमिका.

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Founders Valley Südkorea
तस्वीर: DW/H. Ernst

पार्क सिउल ने कई सालों तक फैशन मॉडल बनने का सपना देखा और उसके लिए खाने पीने में बहुत परहेज किया. लेकिन ना तो वे रनवे मॉडलों जैसी लंबी थीं और ना ही उतनी पतली. और तो और, वे इतनी मोटी भी नहीं थीं कि प्लस साइज मॉडल बन सकें. बहुत बाद में उन्हें समझ आया कि अगर उनको दक्षिण कोरिया के सौंदर्य मानकों को पूरा करना है तो लगातार अपनी सच्चाई को नकारना होगा. इसीलिए 25 साल की उम्र में पार्क ने अपने आपको 'नैचुरल साइज' मॅाडल बताना शुरु किया.

इससे पहले किसी ने ये नाम नहीं सुना था. इसका मतलब है वे औरतें जो रोजमर्रा की जिंदगी में आपसे मिलती हैं और बिल्कुल सामान्य दिखती हैं. पार्क को काम मिलना शुरु हो गया और उन्होंने एक यूट्यूब चैनल भी शुरु किया. इस चैनल पर वे उन औरतों के लिए फैशन बताती हैं जो उन्हीं की तरह आम दिखती हैं ना की किसी सुपर मॉडल जैसी.

इसी के साथ पार्क ने अपने आपको एक सकारात्मक रोशनी में देखना शुरु किया, जो कि दक्षिण कोरिया में एक नए अभियान का हिस्सा है. इसमें औरतें अपने आपको हमेशा अच्छा दिखने के सामाजिक दवाब से आजाद कर रही हैं. हजारों लड़कियों ने सोशल मीडिया पर हैशटैग "टैल्कोसेट," या कोर्सेट उतारो नाम का अभियान शुरु किया है. इससे वे और औरतों को समाज के दवाब से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. पार्क ने सिओल में एक फैशन शो करवाया था, जिसको वे बिना किसी भेदभाव वाला बताती हैं. इस फैशन शो में हर साइज और शेप की महिलाओं ने हिस्सा लिया था. बाकी की औरतों ने सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो डाले हैं जिनमें वे आपने बाल काटती नजर आ रही हैं और बिना मेकअप के काम पर भी जा रही हैं. 

Südkoreanische Girlgroup Blackpink
तस्वीर: imago/imaginechina

दक्षिण कोरिया बहुत ही रूढ़िवादी देश है और जानकारों का कहना है कि पितृसत्तात्मक समाज उग्र लिंगवाद को प्रोत्साहित करता है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, ओईसीडी के आंकड़े बताते हैं कि यहां महिला और पुरुष के वेतन में विकसित देशों में सबसे ज्यादा अंतर है. विश्व आर्थिक मंच के 2018 के वैश्विक सूचकांक में भी दक्षिण कोरिया को लैंगिक बराबरी के मामले में 149 देशों में 115वें स्थान पर रखा गया. दक्षिण कोरिया की एक प्रमुख जॉब रिक्रूटमेंट वेबसाइट ने अपने 2018 के सर्वे में पाया कि दक्षिण कोरियाई कंपनियों के करीब 57 प्रतिशत मानव संसाधन प्रबंधक नौकरी मांगने वाले के ऊपरी रूप रंग से प्रभावित होते हैं. सर्वे में ये भी बताया गया कि पुरुषों से ज्यादा औरतों को उनके रूप रंग के आधार पर आंका जाता है. 

सिओल के योनसाई विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ जेंडर स्टडीज में रिसर्चर सोन ही-जेओंग का कहना है, "जैसे जैसे ज्यादा औरतें नारीवाद को अपना रही हैं, वैसे वैसे उनमें दक्षिण कोरिया में व्याप्त सुंदर दिखने के अत्यधिक दबाव को नकारने का साहस आ भी रहा है." आंदोलन स्कूलों तक पहुंच गया है. 18 साल की हांग को उनके स्कूल में कई ऐसे लेक्चर लेने पड़ते हैं जिनमें इस बारे में सिखाया जाता है कि औरतों को कैसा दिखना चाहिए. हांग ने इस पर आपत्ति जताई और कुछ और छात्रों के साथ मिल कर पत्रकारों से शिकायत भी की ताकि ऐसे लेक्चरों को हटाया जाए. हांग ने बताया कि उन्होंने प्राइमरी स्कूल में पहली बार मेकअप लगाया था और हाई स्कूल पहुंचते पहुंचते वे पूरा मेकअप लगाने लगीं थीं. लेकिन अब वे मेकअप नहीं करतीं और पूछती हैं कि क्यों हर औरत को उसके दिखावे पर आंका जाए. हांग ने बताया कि अब भी कई लड़कियां बिना मेकअप के घर से बाहर जाने में हिचकिचाती हैं.

इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ प्लास्टिक सर्जरी की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण कोरिया में दुनिया में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक सर्जनों का अनुपात सबसे ज्यादा है. गैलप कोरिया के 2015 के आंकड़ों के अनुसार, 19 और 29 साल के बीच की करीब एक तिहाई दक्षिण कोरियाई महिलाओं ने प्लास्टिक सर्जरी करवाई है.

एनआर/आरपी (एपी)