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मृत भाषा को जिलाने की कोशिश

१० जनवरी २०११

हर साल 50 भाषाएं लुप्त हो रही हैं. भाषा विशेषज्ञों को डर है कि यदि ऐसा चला तो अगले सौ साल में 50 फीसदी भाषाएं नहीं रहेंगी. लेकिन दुनिया में एक व्यक्ति ऐसा भी है जो 2000 साल से मृत भाषा को जीवित करने की कोशिश कर रहा है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

बेबिलोनियन भाषा को अंतिम बार बोलने वाले 2000 साल से जीवित नहीं हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के मार्टिन वर्थिंग्टन ने अब अपने सहयोगियों के साथ मिलकर बेबिलोनियन भाषा में एक ऑनलाइन ऑडियो आर्काइव बनाया है, जिसे सुनकर हर आदमी महसूस कर सकता है कि यह भाषा कैसे बोली जाती रही होगी.

Entstehung der Schrift - Keilschrift Mesopotamien
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

इस आर्काइव के कारण अब उस भाषा को फिर से सुनना संभव हो गया है जो ताम्रयुग से लौहयुग के दौरान बेबीलोन की सड़कों पर बोली जाती थी. बेबिलोनियन और असीरियाई साहित्य प्रोजेक्ट के प्रयासों से शुरु हुआ और अब यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज की साइट पर इनकी रिकॉर्डिंग सुनी जा सकती है.

वेबसाइट के अनुसार इस परियोजना का लक्ष्य बेबिलोनिया और असीरिया का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए यह दिखाना है कि पहले ये भाषाएं कैसे बोली जाती थीं और आज किस तरह से बोली जा सकती हैं. इसके अलावा इसका लक्ष्य शोधकर्ताओं को एक मंच पर भी लाना है ताकि वे अपने सिद्धांतों को दूसरे विशेषज्ञों के सामने पेश कर सकें.

इस परियोजना का एक लाभ यह भी होगा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आज के शोधकर्ता अपनी आवाज में 2 सहस्राब्दी से लुप्त भाषा की रिकॉर्डिंग छोड़ जाएंगे. आज के विशेषज्ञों का एक मलाल यह भी है कि पिछली पीढ़ियों ने भी शोध किया था लेकिन भाषा की ध्वनि और मीटर पर कुछ भी छोड़ कर नहीं गई हैं.

कहा जाता है कि बेबिलोनिया के निवासी लिखने में उस्ताद थे. वे सब कुछ लिख डालते थे और उन्हें अपने अक्षरों में मिट्टी की प्लेटों पर छाप देते थे. यह लंबे समय तक बना रहने वाला साधन है. खुदाई में प्राप्त हुई इस तरह की मिट्टी की सबसे पुरानी स्लेट 5000 साल पुरानी है.

इस बीच मार्टिन वर्थिंग्टन की वेबसाइट दुनिया भर में जानी जाती है. बेबिलोनिया पर शोध करने वाले लोग उसका अपने ब्लॉगों में उल्लेख करते हैं या फिर लोग उनसे कुछ बताने को या कुछ जानने के लिए संपर्क करते हैं.

अपनी जान पहचान वालों के लिए वर्थिंग्टन अजूबा थे. वे कुछ ऐसा पढ़ रहे थे जिसके बारे में कोई नहीं जानता था. यहीं से उनके मन में वेबसाइट बनाने का विचार आया ताकि लोगों को पता चल सके कि बेबिलोनियन भाषा सुनने में कैसी लगती है. साइट पर जो कविताएं हैं वह बेबिलोनियन तो हैं ही लेकिन उनमें बोलने वाले की अपनी मातृभाषा का पुट भी है.

बेबिलोनियन और असीरियन व्याकरण के विशेषज्ञ मार्टिन वर्थिंग्टन मानते हैं कि यह वेबसाइट लोगों को मेसोपोटेमिया की संस्कृति की समृद्धि और जटिलता का परिचय देती है. मेसोपोटेमिया उस जगह पर था जहां आज इराक, सीरिया का कुछ हिस्सा, तुर्की और ईरान हैं.

रिपोर्ट: महेश झा

संपादन: वी कुमार

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